नाम तुम्हार पुकारे - सुव्रत शुक्ल | Naam Tumhar Pukare - Suvrat Shukla

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"नाम तुम्हार पुकारे "

मेरो मन, नाम तुम्हार पुकारे । 
मेरो मन, री मोरी सजनिया, नाम तुम्हार पुकारे।
बरस चार, कैसन बीते हैं, जुग समान दिन भारे। 
लागत है मोहि, अबहिं मिले थे, जे दिन आन पिया रे। 
बूझत हैं मन, तुमहिं पाय के, सबकछु तुमहिं हमारे । 
जाके आगे, तोरि दोउ पग, फूटहिं धार, हमारे ।
रोवत हैं जेहि, मोल रीत कै, असुवन नैन बहा रे।
जेहि कहवावत, सुजन स्वारथी, तेहि नहिं लाज हया रे। 
नैनहिं भींचि, दरस तुमही के खुलत नैन तुम ना रे । 
मनहीं बसत, सोई तुम्हरी छबि, साथ देहि के जारे।
तुमहि फेरि, बैकुंठ मिलत हौं, सौंत कान्ह, नहकारे।
कहि 'मोहन' तू मोरि सजनिया, हेरत मोर हिया रे।।                                                         - सुव्रत शुक्ल ' मोहन '

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