Hindi Kavita
हिंदी कविता
घायल मन
जब घायल हो जाता मन,
अपनों या अपनेपन से।
नदियां दरिया बन जाती,
आंसू बनते हिमकण से।।
वे चाह रहे थे बरसना,
पर ताप न शेष रहा था।
ये कान अब थक चुके थे,
सुनने को कुछ न रहा था।।
जहां शाद पूजने को ही,
वृंदा की समिधा होती।
मिथ्या की ज्वाला में फिर,
श्लाघा हर रोज गरजती।।
उस जगह शुष्क हो जाना,
अति ही उत्तम होता है।
जहां आक, देवतरु से भी
उत्तम माना जाता है।।
जहां तुमको सुना न जाए,
उस जगह मौन हो जाना।
कोई कितना अपना होता,
क्षण क्षण में हमने जाना।।
छोड़ो प्रमाण देना अब,
मिन्नत करना व मनाना।
यह जग ही स्वार्थ साधक है,
अपना फिर किसे बनाना।।
- सुव्रत शुक्ल
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