Shayari/Kavita Firaq Gorakhpuri | फ़िराक़ गोरखपुरी शायरी/कविता

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Poetry Firaq Gorakhpuri
फ़िराक़ गोरखपुरी शायरी/कविता(toc)

1. उमीदे-मर्ग कब तक - Firaq Gorakhpuri

उमीदे-मर्ग कब तक ज़ि‍न्दगी का दर्दे-सर कब तक

ये माना सब्र करते हैं महब्बत में मगर कब तक


दयारे-दोस्त हद होती है यूँ भी दिल बहलने की

न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक


यह तदबीरें भी तक़दीरे-महब्बबत बन नहीं सकतीं

किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक


इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़ि‍र कोई हद है

कोई करता रहेगा चारा-ए-जख्‍़मे-ज़िगर कब तक


किसी का हुस्न रूसवा हो गया पर्दे ही पर्दे में

न लाये रंग आख़िरकार ता‍सीरे-नज़र कब तक


(दयार=बाग़, इनायत=कृपा, चारा-ए-जख्‍़मे-ज़िगर=

जिगर के घाव का उपचार)

firaq-gorakhpuri-shayari

2. कभी पाबन्दियों से छुट के भी Firaq Gorakhpuri

कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है

दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता


हमारा ये तजुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में

कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसाँ नहीं होता


बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले

दबाने के लिये हर दर्द ऐ नादाँ ! नहीं होता


यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें

कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्काँ नहीं होता


3. कुछ ग़में-जानां,कुछ ग़में-दौरां Firaq Gorakhpuri

तेरे आने की महफ़िल ने जो कुछ आहट-सी पाई है,

हर इक ने साफ़ देखा शमअ की लौ थरथराई है


तपाक और मुस्कराहट में भी आँसू थरथराते हैं,

निशाते-दीद भी चमका हुआ दर्दे-जुदाई है


बहुत चंचल है अरबाबे-हवस की उँगलियाँ लेकिन,

उरूसे-ज़िन्दगी की भी नक़ाबे-रूख उठाई है


ये मौजों के थपेड़े,ये उभरना बहरे-हस्ती में,

हुबाबे-ज़िन्दगी ये क्या हवा सर में समाई है?


सुकूते-बहरे-बर की खलवतों में खो गया हूँ जब,

उन्हीं मौकों पे कानों में तेरी आवाज़ आई है


बहुत-कुछ यूँ तो था दिल में,मगर लब सी लिए मैंने,

अगर सुन लो तो आज इक बात मेरे दिल में आई है


मोहब्बत दुश्मनी में क़ायम है रश्क का जज्बा,

अजब रुसवाइयाँ हैं ये अजब ये जग-हँसाई है


मुझे बीमो-रज़ा की बहसे-लाहासिल में उलझाकर,

हयाते-बेकराँ दर-पर्दा क्या-क्या मुस्कराई है


हमीं ने मौत को आँखों में आँखे डालकर देखा,

ये बेबाकी नज़र की ये मोहब्बत की ढिठाई है


मेरे अशआर के मफहूम भी हैं पूछते मुझसे

बताता हूँ तो कह देते हैं ये तो खुद-सताई है


हमारा झूठ इक चूमकार है बेदर्द दुनिया को,

हमारे झूठ से बदतर जमाने की सचाई है

(निशाते-दीद=देखने की खुशी, हवस=लालच,

उरूसे-ज़िन्दगी=जीवन रूपी दुल्हन, नक़ाबे-रूख=

घूँघट, बहरे-हस्ती=जीवन-सागर, हुबाब=बुलबुला,

सुकूते-बहरे-बर=धरती का मौन, खलवत=एकांत,

रश्क=ईर्ष्या, बीमो-रज़ा=भय और ईश्वरेच्छा,

बहसे-लाहासिल=व्यर्थ की बहस, हयाते-बेकराँ=

अथाह जीवन, मफहूम=अर्थ, खुद-सताई=खुद

की प्रशंसा)


4. कोई नयी ज़मीं हो Firaq Gorakhpuri

कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो

ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो


अफ़सुर्दगी- ए- इश्क़ में सोज़- ए- निहाँ भी हो

यानी बुझे दिलों से कुछ उठता धुआँ भी हो


इस दरजा इख़्तिलात और इतनी मुगैरत

तू मेरे और अपने कभी दरमियाँ भी हो


हम अपने ग़म-गुसार-ए-मोहब्बत न हो सके

तुम तो हमारे हाल पे कुछ मेहरबाँ भी हो


बज़्मे-तस्व्वुरात में ऐ दोस्त याद आ

इस महफ़िले-निशात में ग़म का समाँ भी हो


महबूब वो कि सर से क़दम तक ख़ुलूस हो

आशिक़ वही जो इश्क़ से कुछ बदगुमाँ भी हो


(सोज़- ए- निहाँ=छिपा दर्द, इख़्तिलात=विरोध,

मुगैरत=बेगानापन, बज़्मे-तस्व्वुरात=ख़्यालों की

महफ़िल, निशात=ख़ुशी)


5. गैर क्या जानिये क्यों Firaq Gorakhpuri

गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं

आप कहते हैं जो ऐसा तो बज़ा कहते हैं


वाकई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं

ना वफ़ा कहते हैं जिस को ना ज़फ़ा कहते हैं


हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश

हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं


तेरी सूरत नजर आई तेरी सूरत से अलग

हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्न नुमां कहते हैं


शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से

हम खुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं


तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयान नामुमकिन

फायदा क्या है मगर यूं जो जरा कहते हैं


लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकोशी को

हम तो इन बातों अच्छा ना बुरा कहते हैं


औरों का तजुरबा जो कुछ हो मगर हम तो फ़िराक़

तल्खी-ए-ज़ीस्त को जीने का मजा कहते हैं

(ज़ीस्त=ज़िन्दगी)


6. ज़िन्दगी क्या है Firaq Gorakhpuri

ज़िन्दगी क्या है, ये मुझसे पूछते हो दोस्तो

एक पैमाँ है जो पूरा होके भी न पूरा हो


बेबसी ये है कि सब कुछ कर गुजरना इश्क़ में

सोचना दिल में ये, हमने क्या किया फिर बाद को


रश्क़ जिस पर है ज़माने भर को वो भी तो इश्क़

कोसते हैं जिसको वो भी इश्क़ ही है, हो न हो


आदमियत का तक़ाज़ा था मेरा इज़हारे-इश्क़

भूल भी होती है इक इंसान से, जाने भी दो


मैं तुम्हीं में से था कर लेते हैं यादे-रफ्तगां

यूँ किसी को भूलते हैं दोस्तों, ऐ दोस्तों !


यूँ भी देते हैं निशान इस मंज़िले-दुश्वार का

जब चला जाए न राहे-इश्क़ में तो गिर पड़ो


मैकशों ने आज तो सब रंगरलियाँ देख लीं

शैख कुछ इन मुँहफटों को दे-दिलाक चुप करो


आदमी का आदमी होना नहीं आसाँ 'फ़िराक़'

इल्मो-फ़न, इख्लाक़ो-मज़हब जिससे चाहे पूछ लो

(पैमाँ=प्रतिज्ञा, यादे-रफ्तगां=पुरानी यादें, शैख=

धर्मोपदेशक, इल्मो-फ़न=ज्ञान और कला, इख्लाक़ो-

मज़हब=सदाचार और धर्म)


7. डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर देखकर Firaq Gorakhpuri

डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर देखकर

यानी सितमज़रीफ़ी-ए-तकदीर देखकर


कालिब में रूह फूँक दी या ज़हर भर दिया

मैं मर गया ह्यात की तासीर देखकर


हैरां हुए न थे जो तसव्वुर में भी कभी

तसवीर हो गये तेरी तसवीर देखकर


ख्वाबे-अदम से जागते ही जी पे बन गई

ज़हराबा-ए-ह्यात की तासीर देखकर


ये भी हुआ है अपने तसव्वुर में होके मन्ह

मैं रह गया हूँ आपकी तसवीर देखकर


सब मरहले ह्यात के तै करके अब 'फ़िराक़'

बैठा हुआ हूँ मौत में ताखीर देखकर

(तकदीर=भाग्य, सितमज़रीफ़ी=मजाक, कालिब=

शरीर में, ह्यात=जीवन, तासीर=गुण, तसव्वुर=

कल्पना में, ख्वाबे-अदम=अनस्तित्व से, ज़हराबा-

ए-ह्यात=जीवन रुपी विष की, मन्ह=मग्न, ताखीर=

विलम्ब)


8. मुझको मारा है हर इक दर्द-ओ-दवा से पहले Firaq Gorakhpuri

मुझको मारा है हर इक दर्द-ओ-दवा से पहले

दी सज़ा इश्क ने हर ज़ुर्म-ओ-खता से पहले


आतिश-ए-इश्क भडकती है हवा से पहले

होंठ जलते हैं मोहब्बत में दुआ से पहले


अब कमी क्या है तेरे बेसर-ओ-सामानों को

कुछ ना था तेरी कसम तर्क-ओ-फ़ना से पहले


इश्क-ए-बेबाक को दावे थे बहुत खलवत में

खो दिया सारा भरम, शर्म-ओ-हया से पहले


मौत के नाम से डरते थे हम ऐ शौक-ए-हयात

तूने तो मार ही डाला था, कज़ा से पहले


हम उन्हे पा कर फ़िराक़, कुछ और भी खोये गये

ये तकल्लुफ़ तो ना थे अहद-ए-वफ़ा से पहले

(आतिश=आग, हयात=ज़िंदगी, कज़ा=मौत)


9. मौत इक गीत रात गाती थी Firaq Gorakhpuri

मौत इक गीत रात गाती थी

ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी


कभी दीवाने रो भी पडते थे

कभी तेरी भी याद आती थी


किसके मातम में चांद तारों से

रात बज़्मे-अज़ा सजाती थी


रोते जाते थे तेरे हिज़्र नसीब

रात फ़ुरकत की ढलती जाती थी


खोई खोई सी रहती थी वो आंख

दिल का हर भेद पा भी जाती थी


ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में

तेरी तस्वीर उतरती जाती थी


हुस्न में थी इन आंसूओं की चमक

ज़िन्दगी जिनमें मुस्कुराती थी


दर्द-ए-हस्ती चमक उठा जिसमें

वो हम अहले-वफ़ा की छाती थी


तेरे उन आंसूओं की याद आयी

ज़िन्दगी जिनमें मुस्कुराती थी


था सूकूते-फ़ज़ा तरन्नुम रेज़

बू-ए-गेसू-ए-यार गाती थी


गमे-जानां हो या गमें-दौरां

लौ सी कुछ दिल में झिलमिलाती थी


ज़िन्दगी को वफ़ा की राहों में

मौत खुद रोशनी दिखाती थी


बात क्या थी कि देखते ही तुझे

उल्फ़ते-ज़ीस्त भूल जाती थी


थे ना अफ़लाके-गोश बर-आवाज

बेखुदी दास्तां सुनाती थी


करवटें ले उफ़क पे जैसे सुबह

कोई दोसीज़ा रस-मसाती थी


ज़िन्दगी ज़िन्दगी को वक्ते-सफ़र

कारवां कारवां छुपाती थी


सामने तेरे जैसे कोई बात

याद आ आ के भूल जाती थी


वो तेरा गम हो या गमे-दुनिया

शमा सी दिल में झिलमिलाती थी


गम की वो दास्ताने-नीम-शबी

आसमानों की नीन्द आती थी


मौत भी गोश भर सदा थी 'फ़िराक़'

ज़िन्दगी कोई गीत गाती थी


10. यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की Firaq Gorakhpuri

यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की

बहुत होते हैं यारो चार दिन भी


ख़ुदा को पा गया वायज़ मगर है

ज़रूरत आदमी को आदमी की


बसा-औक्रात दिल से कह गयी है

बहुत कुछ वो निगाहे-मुख़्तसर भी


मिला हूँ मुस्कुरा कर उससे हर बार

मगर आँखों में भी थी कुछ नमी-सी


महब्बत में करें क्या हाल दिल का

ख़ुशी ही काम आती है न ग़म की


भरी महफ़ि‍ल में हर इक से बचा कर

तेरी आँखों ने मुझसे बात कर ली


लड़कपन की अदा है जानलेवा

गज़ब ये छोकरी है हाथ-भर की


है कितनी शोख़, तेज़ अय्यामे-गुल पर

चमन में मुस्कुहराहट कर कली की


रक़ीबे-ग़मज़दा अब सब्र कर ले

कभी इससे मेरी भी दोस्ती थी

(बसा-औक्रात=कभी-कभी, अय्यामे-गुल=

बहार के दिन, रक़ीबे-ग़मज़दा=दुखी प्रतिद्वन्द्वी)


11. थरथरी सी है आसमानों में Firaq Gorakhpuri

थरथरी सी है आसमानों में

जोर कुछ तो है नातवानों में


कितना खामोश है जहां लेकिन

इक सदा आ रही है कानों में


कोई सोचे तो फ़र्क कितना है

हुस्न और इश्क के फ़सानों में


मौत के भी उडे हैं अक्सर होश

ज़िन्दगी के शराबखानों में


जिन की तामीर इश्क करता है

कौन रहता है उन मकानों में


इन्ही तिनकों में देख ऐ बुलबुल

बिजलियां भी हैं आशियानों में

(नातवान=कमजोर, तामीर=उसारी,

आशियाना=घर)


12. दयारे-गै़र में सोज़े-वतन की आँच न पूछ Firaq Gorakhpuri

दयारे-गै़र में सोज़े-वतन की आँच न पूछ

ख़जाँ में सुब्हे-बहारे-चमन की आँच न पूछ


फ़ज़ा है दहकी हुई रक्‍़स में है शोला-ए-गुल

जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ


क़बा में जिस्म है या शोला जेरे-परद-ए-साज़

बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ


हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है

नक़ाब में भी रुखे-शोला-ज़न की आँच न पूछ


लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं

न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ


‍ फ़िराक़ आइना-दर-आइना है हुस्ने -निगार

सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ

(दयारे-गै़र=दूसरों की गली, जेरे-परद-

ए-साज़=साज़ के परदे के पीछे, पैरहन=

कपड़ा, हिजाब=शर्म)


13. देखा हर एक शाख पे गुंचो को सरनिगूँ Firaq Gorakhpuri

देखा हर एक शाख पे गुंचो को सरनिगूँ

जब आ गई चमन पे तेरे बांकपन की बात


जाँबाज़ियाँ तो जी के भी मुमकिन है दोस्ती

क्यों बार-बार करते हो दारो-दसन की बात


बस इक ज़रा सी बात का विस्तार हो गया

आदम ने मान ली थी कोई अहरमन की बात


पड़ता शुआ माह पे उसकी निगाह का

कुछ जैसे कट रही हो किरन-से-किरन की बात


खुशबू चहार सम्त उसी गुफ्तगू की है

जुल्फ़ो आज खूब हुई है पवन की बात

(सरनिगूँ=सिर झुकाए हुए, दारो-दसन=

सूली के तख्ते और फंदे, अहरमन=शैतान,

शुआ=किरण, माह=चाँद, चहार सम्त=चारों

ओर)


14. न जाने अश्क से आँखों में क्यों है आये हुए Firaq Gorakhpuri

न जाने अश्क से आँखों में क्यों है आये हुए

गुज़र गया ज़माना तुझे भुलाये हुए


जो मन्ज़िलें हैं तो बस रहरवान-ए-इश्क़ की हैं

वो साँस उखड़ी हुई पाँव डगमगाये हुए


न रहज़नों से रुके रास्ते मोहब्बत के

वो काफ़िले नज़र आये लुटे लुटाये हुए


अब इस के बाद मुझे कुछ ख़बर नहीं उन की

ग़म आशना हुए अपने हुए पराये हुए


ये इज़्तिराब सा क्या है कि मुद्दतें गुज़री

तुझे भुलाये हुए तेरी याद आये हुए


15. जो बात है हद से बढ़ गयी है Firaq Gorakhpuri

जो बात है हद से बढ़ गयी है

वाएज़ के भी कितनी चढ़ गयी है


हम तो ये कहेंगे तेरी शोख़ी

दबने से कुछ और बढ़ गई है


हर शय ब-नसीमे-लम्से-नाज़ुक

बर्गे-गुले-तर से बढ़ गयी है


जब-जब वो नज़र उठी मेरे सर

लाखों इल्ज़ाम मढ़ गयी है


तुझ पर जो पड़ी है इत्तफ़ाक़न

हर आँख दुरूद पढ़ गयी है


सुनते हैं कि पेंचो-ख़म निकल कर

उस ज़ुल्फ़ की रात बढ़ गयी है


जब-जब आया है नाम मेरा

उसकी तेवरी-सी चढ़ गयी है


अब मुफ़्त न देंगे दिल हम अपना

हर चीज़ की क़द्र बढ़ गयी है


जब मुझसे मिली 'फ़िराक़' वो आँख

हर बार इक बात गढ़ गयी है

(वाएज़=उपदेशक, ब-नसीमे-लम्से-नाज़ुक=

कोमल हवा के स्पर्श से, दुरूद=दुआ का

मन्त्र, पेंचो-ख़म=टेढ़ापन)


16. सकूत-ए-शाम मिटाओ बहुत अंधेरा है Firaq Gorakhpuri

सकूत-ए-शाम मिटाओ बहुत अंधेरा है

सुख़न की शमा जलाओ बहुत अंधेरा है


दयार-ए-ग़म में दिल-ए-बेक़रार छूट गया

सम्भल के ढूढने जाओ बहुत अंधेरा है


ये रात वो के सूझे जहाँ न हाथ को हाथ

ख़यालो दूर न जाओ बहुत अंधेरा है


लटों को चेहरे पे डाले वो सो रहा है कहीं

ज़या-ए-रुख़ को चुराओ बहुत अंधेरा है


हवाए नीम शबी हों कि चादर-ए-अंजुम

नक़ आब रुख़ से उठाओ बहुत अंधेरा है


शब-ए-सियाह में गुम हो गई है राह-ए-हयात

क़दम सम्भल के उठाओ बहुत अंधेरा है


गुज़श्ता अह्द की यादों को फिर करो ताज़ा

बुझे चिराग़ जलाओ बहुत अंधेरा है


थी एक उचकती हुई नींद ज़िंदगी उसकी

'फ़िराख़' को न जगाओ बहुत अंधेरा है


17. सर में सौदा भी नहीं Firaq Gorakhpuri

सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं

लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं


यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क

मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं


मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें

और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं


ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर

ये भी सच है कि तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं


दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में

लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं


बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे

ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं


शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो

साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं


मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त

आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं


बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम

कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं


मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि "फ़िराक़"

है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं


18. सितारों से उलझता जा रहा हूँ Firaq Gorakhpuri

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ


तेरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ

जहाँ को भी समझा रहा हूँ


यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है

गुमाँ ये है कि धोखे खा रहा हूँ


अगर मुमकिन हो ले ले अपनी आहट

ख़बर दो हुस्न को मैं आ रहा हूँ


हदें हुस्न-ओ-इश्क़ की मिलाकर

क़यामत पर क़यामत ढा रहा हूँ


ख़बर है तुझको ऐ ज़ब्त-ए-मुहब्बत

तेरे हाथों में लुटाता जा रहा हूँ


असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का

तुझे कायल भी कराता जा रहा हूँ


भरम तेरे सितम का खुल चुका है

मैं तुझसे आज क्यों शर्मा रहा हूँ


तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस

कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ


जो उलझी थी कभी आदम के हाथों

वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ


मुहब्बत अब मुहब्बत हो चली है

तुझे कुछ भूलता-सा जा रहा हूँ


ये सन्नाटा है मेरे पाँव की चाप

"फ़िराक़" अपनी कुछ आहट पा रहा हूँ


19. हमको तुमको फेर समय का ले आई ये हयात कहाँ Firaq Gorakhpuri

हमको तुमको फेर समय का ले आई ये हयात कहाँ ?

हम भी वही हैं तुम भी वही हो लेकिन अब वो बात कहाँ ?


कितनी उठती हुई जवानी खिलने से पहले मुरझाएँ

मन उदास तन सूखे-सूखे इन रुखों में पात कहाँ ?


ये संयोग-वियोग की दुनिया कल हमको बिछुड़ा देगी

देख लूँ तुमको आँख भर के आएगी अब ये रात कहाँ ?


मोती के दो थाल सजाए आज हमारी आँखों ने

तुम जाने किस देस सिधारे भेंजें ये सौगात कहाँ ?


तेरा देखना सोच रहा हूँ दिल पर खा के गहरे घाव

इतने दिनों छुपा रक्खी थी आँखों ने ये घात कहाँ ?


ऐ दिल कैसे चोट लगी जो आँखों से तारे टूटे

कहाँ टपाटप गिरते आँसू और मर्द की जात कहाँ ?


यूँ तो बाजी जीत चुका था एक चाल थी चलने की

उफ़ वो अचानक राह पड़ जाना इश्क़ ने खाई मात कहाँ ?


झिलमिल-झिलमिल तारों ने भी पायल की झंकार सुनी थी

चली गई कल छमछम करती पिया मिलन की रात कहाँ ?


20. बे-ठिकाने है दिले-ग़मगीं ठिकाने की कहो Firaq Gorakhpuri

बे-ठिकाने है दिले-ग़मगीं ठिकाने की कहो

शामे-हिज्राँ, दोस्तो, कुछ उसके आने की कहो


हाँ न पूछो इक गिरफ़्तारे-कफ़स की ज़िन्दगी

हमसफ़ीराने-चमन कुछ आशियाने की कहो


उड़ गया है मंजिले-दुशवार से ग़म का समन्द

गेसू-ए-पुर पेचो-ख़म के ताज़याने की कहो


बात बनती और बातों से नज़र आती नहीं

उस निगाहे-नाज़ के बातें बनाने की कहो


दास्ताँ वो थी जिसे दिल बुझते-बुझते कह गया

शम्‍ए - बज़्मे - ज़िन्दगी के झिलमिलाने की कहो


कुछ दिले-मरहूम बातें करो, ऐ अहले-ग़म

जिससे वीराने थे आबाद, उस दिवाने की कहो


दास्ताने - ज़िन्दगी भी किस तरह दिलचस्प है

जो अज़ल से छिड़ गया है उस फ़साने की कहो


ये फ़ुसूने-नीमशब ये ख़्वाब-सामाँ ख़ामुशी

सामरी फ़न आँख के जादू जगाने की कहो


कोई क्या खायेगा यूँ सच्ची क़सम, झूठी क़सम

उस निगाहे-नाज़ के सौगन्द खाने की कहो


शाम से ही गोश-बर आवाज़ है बज़्मे-सुख़न

कुछ फ़िराक़ अपनी सुनाओ कुछ ज़माने की कहो

(शामे-हिज्राँ=विरह की शाम, गिरफ़्तारे-कफ़स=पिंजरे

में क़ैद, हमसफ़ीराने-चमन=चमन के साथी, समन्द=

घोड़ा, ताज़याने=कोड़ा, दिले-मरहूम=मरा हुआ दिल,

अज़ल=सृष्टि के प्रारम्भ से, फ़ुसूने-नीमशब=आधी

रात का जादू, गोश-बर आवाज़=आवाज़ पर कान

लगाए हुए)


21. किसी से छूट के शाद किसे से मिल के ग़मीं Firaq Gorakhpuri

किसी से छूट के शाद किसे से मिल के ग़मीं

फ़िराक़ तेरी मोहब्बत का कोई ठीक नहीं


युं-ही-सा था कोई जिसने मुझे मिटा डाला

न कोई नूर का पुतला न कोई ज़ोहरा-जबीं


जो भूलतीं भी नहीं याद भी नहीं आतीं

तेरी निगाह ने क्यों वो कहानियां न कहीं


लबे-निगार है या नग़्मा-ए-बहार की लौ

सुकूते-याद है या कोई मुतरिबे-रंगीं


शुरू-ए-ज़िन्दगी-ए-इशक का वो पहला ख़्वाब

तुम्हें भी भूल चुका है मुझे भी याद नहीं


हज़ार शुक्र कि मायूस कर दिया तूने

ये और बात कि तुझसे बड़ी उमीदें थीं


अगर बदल न दिया आदमी ने दुनियाँ को,

तो जान लो कि यहाँ आदमी कि खैर नहीं


हर इन्किलाब के बाद आदमी समझता है,

कि इसके बाद न फिर लेगी करवटें ये ज़मीं


बहुत न बेकसी-ए-इश्क़ पर कोई रोये,

कि हुस्न का भी ज़माने में कोई दोस्त नहीं


अगर तलाश करें,क्या नहीं है दुनियाँ में,

जुज़ एक ज़िन्दगी कि तरह ज़िन्दगी कि नहीं


हुनर तो हुनर ऐब से भी जलते हैं

फ़ुग़ाँ कि अहले-ज़माना है किस कदर कमबीं


22. अरे ख्वाबे मोहब्बत की Firaq Gorakhpuri

अरे ख्वाबे-मुहब्बत की भी क्या ता'बीर होती है

खुलें आँखे तो दुनिया दर्द की तस्वीर होती है


उमीदें जाए और फिर जीता रहे कोई

न पूछ ऐ दोस्त!क्या फूटी हुई तक़दीर होती है


सरापा दर्द होकर जो रहा जीता ज़माने में

उसी की खाक़ यारो गैरते-अक्सीर होती है


जला जिस वक्त परवाना,निगाहें फ़ेर ली मुझसे

भरी महफ़िल में डर पर्दा मेरी ताज़ीर होती है


अज़ल आई,बदनामे-मुहब्बत हो के जाता हूँ

वफ़ा से हाथ उठाता हूँ,बड़ी तक़सीर होती है


किसी की ज़िन्दगी ऐ दोस्त जो धड़कों में गुज़री थी

उसी की झिलमिलाती शमअ इक तस्वीर होती है


'फ़िराक़' इक शमअ सर धुनती है पिछली शब जो बालीं पर

मेरी जाती हुई दुनिया की इक तस्वीर होती है


23. आह वो मंजिले-मुराद Firaq Gorakhpuri

आह वो मंज़िले-मुराद, दूर भी है क़रीब भी

देर हुई कि क़ाफ़िले उसकी तरफ़ रवाँ नहीं


दैरो-हरम है गर्दे-राह, नक्शे-क़दम हैं मेहरो-माह

इनमें कोई भी इश्क़ की मंज़िले-कारवाँ नहीं


किसने सदा-ए-दर्द दी, किसकी निगाह उठ गई

अब वो अदम अदम नहीं, अब ये जहाँ जहाँ नहीं


आज कुछ इस तरह खुला, राज़े-सुकूने-दाइमी

इश्क़ को भी खुशी नहीं, हुस्न भी शादमाँ नहीं


24. आ ही जाती है Firaq Gorakhpuri

आ ही जाती है मगर फिर भी मेरे दर्द की याद

गरचे है तर्के-मोहब्बत में भी आराम बहुत


और भी काम है दुनियाँ में ग़में-उल्फत को

उसकी याद अच्छी नहीं ऐ दिले-नाकाम बहुत


ये भी साक़ी बस इक अंदाजे-सियहमस्ती थी

कर चुके तौबा बहुत,तोड़ चुके जाम बहुत


25. इश्क तो दुनियाँ का राजा है Firaq Gorakhpuri

इश्क़ तो दुनिया का राजा है

किस कारन वैराग लिया है


ज़र्रा-ज़र्रा काँप रहा है

किसके दिल में दर्द उठा है


रो कर इश्क़ ख़ामोश हुआ है

वक़्त सुहाना अब आया है


काशी देखा,काबा देखा

नाम बड़ा दरसन छोटा है


यूँ तो भरी दुनियाँ है लेकिन

दुनिया में हरइक तनहा है


इश्क़ अगर सपना है, ऐ दिल

हुस्न तो सपने का सपना है


हम खुद क्या थे,हम खुद क्या हैं ?

कौन ज़माने में किसका है ?


कौन बसा है खाना-ए-दिल में

तू तो नहीं,लेकिन तुझ सा है


रमता जोगी बहता पानी

इश्क़ भी मंज़िल छोड़ रहा है


दबा-दबा सा,रुका-रुका सा

दिल में शायद दर्द तेरा है


यूँ तो हम खुद भी नहीं अपने

यूँ तो जो भी है अपना है


ये भी सोचा रोने वाले!

किस मुश्किल से दर्द उठा है?


एक वो मिलना,एक ये मिलना

क्या तू मुझको छोड़ रहा है ?


हाँ मैं वही हूँ,हाँ मैं वही हूँ

तू ही मुझको भूल रहा है


तू भी'फिराक़'अब आँख लगा ले

सुबह का तारा डूब चला है


26. इश्क-बेबाक को रोके हुए है Firaq Gorakhpuri

इश्क़-बेबाक को रोके हुए है और ही कुछ,

ख़्वाब-आलूदा निगाहें तेरी बेदार सही


तेरी आहिस्ता-खिरामी भी सुकूने-दिल है,

इस रविश में भी तेरी शोखी-ए-रफ़्तार सही


कारवानों को वो गुमराह न होने देगा,

इश्क़ की आखरी मंज़िल रसनो-दार सही


निगाहें-शौक़ में फिर भी हैं तेरे ही जलवे,

न सही दीद ,तेरी हसरते-दीदार सही


मेरे इसरारे-मोहब्बत को अगर आँख नहीं,

तेरे इन्कार से पैदा तेरा इकरार सही


जो सरे-बज़्म छलक जाये वो पैमाना है,

यूँ तो गर्दिश में हरइक सागरे-सरशार सही


आलमे-कुद्स की पड़ती हैं इन्हीं पर छूटें,

हुस्न बदमस्त सही,इश्क़ सियाहकर सही


बेखबर !इश्क़ में जीने के लिए जल्दी कर,

जान देने के लिए फुर्सते-बिस्यार सही


फ़िर भी है क़ाबिले-ताज़ीर कि मुजरिम है'फिराक़',

हमने माना कि मोहब्बत का गुनहगार सही


27. इस सुकूते-फ़िज़ा में खो जाएं Firaq Gorakhpuri

इस सुकूते फ़िज़ा में खो जाएं

आसमानों के राज हो जाएं


हाल सबका जुदा-जुदा ही सही

किस पॅ हँस जाएं किस पॅ रो जाएं


राह में आने वाली नस्लों के

ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं


ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त

सोच लें और उदास हो जाएं


रात आयी फ़िराक़ दोस्तो नहीं

किससे कहिए कि आओ सो जाएं


28. उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी - Firaq Gorakhpuri

उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी

इक नागन-सी लहराने लगी


जब ज़ि‍क्र तेरा महफ़ि‍ल में छिड़ा क्यों आँख तेरी शरमाने लगी

क्या़ मौजे-सबा थी मेरी नज़र क्यों ज़ुल्फ़ तेरी बल खाने लगी

महफ़ि‍ल में तेरी एक-एक अदा कुछ साग़र-सी छलकाने लगी

या रब यॉ चल गयी कैसी हवा क्यों दिल की कली मुरझाने लगी

शामे-वादा कुछ रात गये तारों को तेरी याद आने लगी

साज़ों ने आँखे झपकायीं नग़्मों को मेरे नींद आने लगी

जब राहे-ज़ि‍न्दगी काट चुके हर मंज़ि‍ल की याद आने लगी

क्या उन जु़ल्फ़ों को देख लिया क्यों मौजे-सबा थर्राने लगी

तारे टूटे या आँख कोई अश्कों से गुहर बरसाने लगी

तहज़ीब उड़ी है धुआँ बन कर सदियों की सई ठिकाने लगी

कूचा-कूचा रफ़्ता-रफ़्ता वो चाल क़यामत ढाने लगी

क्या बात हुई ये आँख तेरी क्यों लाखों कसमें खाने लगी

अब मेरी निगाहे-शौक़ तेरे रूख़सारों के फूल खिलाने लगी

फि‍र रात गये बज़्मे-अंजुम रूदाद तेरी दोहराने लगी

फि‍र याद तेरी हर सीने के गुलज़ारों को महकाने लगी

बेगोरो-कफ़न जंगल में ये लाश दीवाने की ख़ाक उड़ाने लगी

वो सुब्ह‍ की देवी ज़ेरे शफ़क़ घूँघट-सी ज़रा सरकाने लगी


उस वक्त फ़िराक़ हुई यॅ ग़ज़ल

जब तारों को नींद आने लगी

(गुहर=मोती, सई=प्रयत्न, रूदाद=कहानी)


29. ऐ जज्बा-ए-निहां और कोई है कि वही है Firaq Gorakhpuri

ऐ ज़ज्बा-ए-निहां और कोई है कि वही है

खिलवत कदा ए दिल में आवाज हुई है


कह दे जरा सर तेरे दामन में छुपा लूं

और यूं तो मुकद्दर में मेरे बेवतनी है


वो रंग हो या बू हो कि बाद ए सहरी हो

ए बाग ए जहां जो भी यहां है, सफ़री है


ये बारिश ए अनवर, ये रंगीनी ए गुफ़्तार

गुल बारी ओ गुल सैरी ओ गुल पैरहानी है


ए ज़िन्दगी ए इश्क में समझा नहीं तझको

जन्नत भी, जहन्नुम भी, ये क्या बूलजबी है


है नुत्क जिसे चूमने के वास्ते बेताब

सौ बात की एक बात तेरी बे-सखुनी है


मौजे हैं मय ए सुर्ख की या खते ए दाहन है

लब है की शोला ए बर्क ए अम्बी है


जागे हैं फ़िराक़ आज गम ए हिज़्रा में ता सुबह

आहिस्ता से आ जाओ अभी आंख लगी है


30. कभी जब तेरी याद आ जाय है Firaq Gorakhpuri

कभी जब तेरी याद आ जाय है दिलों पर घटा बन के छा जाय है

शबे-यास में कौन छुप कर नदीम मेरे हाल पर मुसकुरा जाय है

महब्बत में ऐ मौत ऐ ज़ि‍न्दगी मरा जाय है या जिया जाय है

पलक पर नदीम गाहगाह सितारा कोई झिलमिला जाय है

तेरी याद शबहा-ए-बे-ख्‍़वाब में सितारों की दुनिया बस जाय है

जो बे-ख्‍़वाब रक्खे है ता ज़ि‍न्दगी वही ग़म किसी दिन सुला जाय है

न सुन मुझसे हमदम मेरा हाल-ज़ार दिलो-नातवाँ सनसना जाय है

ग़ज़ल मेरी खींचे है ग़म की शराब पिये है वो जिससे पिया जाय है

मेरी शाइरी जो है जाने-नशात ग़मों के ख़ज़ाने लुटा जाय है

मुझे छोड़ कर जाय है तेरी याद कि जीने का एक आसरा जाय है

मुझे गुमरही का नहीं कोई ख़ौफ़ तेरे घर को हर रास्ता जाय है

सुनायें तुम्हें दास्ताने-‍फ़िराक़ मगर कब किसी से सुना जाय है

(नदीम=साथी, नदीम=दुख के आँसू)


चुनिन्दा शायरी/कवितायें.....(31-60)


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