Dohe Firaq Gorakhpuri | फ़िराक़ गोरखपुरी दोहे

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Dohe Firaq Gorakhpuri
फ़िराक़ गोरखपुरी दोहे

दोहे - Firaq Gorakhpuri

नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात
होनहार बिरवान के चिकने-चिकने पात

यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

जो न मिटे ऐसा नहीं कोई भी संजोग
होता आया है सदा मिलन के बाद वियोग

जग के आँसू बन गए निज नयनों के नीर
अब तो अपनी पीर भी जैसे पराई पीर

कहाँ कमर सीधी करे, कहाँ ठिकाना पाय
तेरा घर जो छोड़ दे, दर-दर ठोकर खाय
dohe-firaq-gorakhpuri


जगत-धुदलके में वही चित्रकार कहलाय
कोहरे को जो काट कर अनुपम चित्र बनाय

बन के पंछी जिस तरह भूल जाय निज नीड़
हम बालक सम खो गए, थी वो जीवन-भीड़

याद तेरी एकान्त में यूँ छूती है विचार
जैसे लहर समीर की छुए गात सुकुमार

मैंने छेड़ा था कहीं दुखते दिल का साज़
गूँज रही है आज तक दर्द भरी आवाज़

दूर तीरथों में बसे, वो है कैसा राम
मन-मन्दिर की यात्रा,मूरख चारों धाम

वेद, पुराण और शास्त्रों को मिली न उसकी थाह
मुझसे जो कुछ कह गई , इक बच्चे की निगाह


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