इल्जाम - सुव्रत शुक्ल | Ilzaam - Suvrat Shukla

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Suvrat-Shukla

इल्जाम - सुव्रत शुक्ल | Ilzaam - Suvrat Shukla

मंदिर गया ,
पूजा करने, 
भगवान के चरणों में शीश झुकाने,
जो उसने दिया उसका धन्यवाद करने,
मगर,
स्वार्थी कह दिया गया ,
कि मन्नते मांगने आ गए।
और दिया गया तो बस,
"इल्जाम, इल्जाम और सिर्फ इल्जाम।"

फिर सोचा बुजुर्ग हैं वो,
उनके चरण दबा दूं ,
उनकी सेवा करूं,
उनका सहारा बनूं, 
तो खुदगर्ज कह दिया गया,
कि जरूरतें पूरी कराने के लिए आ गया हूं।
और दिया गया तो बस,
"इल्जाम, इल्जाम और सिर्फ इल्जाम।"


किसी के चोट पर मरहम लगाने गया,
दुःखते ज़ख्म का इलाज करने गया,
बहते हुए घावों को रोकने गया,
तो प्रसिद्धि का मोहताज कहा गया,
कि लोकप्रियता हासिल करने के लिए आ गया हूं।
और दिया गया तो बस,
"इल्जाम, इल्जाम और सिर्फ इल्जाम।"

चाहत थी की उनके,
हाथों को छूकर,
माथे को चूमकर,
सीने से लगाकर,
बताकर अपने भावों को,
जता कर अपना प्यार,
खुद को अर्पित कर दूं,
तो इसे चोचलापन कहा और
दीवानगी का भूत चढ़ा कहकर मजाक उड़ाया गया।
और दिया गया तो बस,
"इल्जाम, इल्जाम और सिर्फ इल्जाम।"

देना चाहा वंचितों को कुछ,
शायद कपड़े, भोजन और बहुत कुछ,
पर उन्होंने बस वोट मांगने वाला समझा।

जब जब भी कुछ करना चाहा ,
तो अकेला ही कर दिया गया मुझे।
और दिया गया तो बस,
"इल्जाम, इल्जाम और सिर्फ इल्जाम।"

   - सुव्रत शुक्ल


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