तू भी बिखरना सीख ले - वसीम बरेलवी too bhee bikharana seekh le - Wasim Barelvi

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हिंदी कविता

तू भी बिखरना सीख ले - वसीम बरेलवी
too bhee bikharana seekh le - Wasim Barelvi


तू भी बिखरना सीख ले, अपने जिस्म की पागल ख़ुशबू से
मै भी हुआ जाता हू बाहर, अन्देशों के क़ाबू से

मेरा कहलाने का मतलब ये तो नही, तू मेरा हो
तेरा-मेरा रिश्ता, जैसे फ़ूल का रिश्ता ख़ुशबू से

संग उठाओ संग कि देखो पत्थर है पत्थर का जवाब
किलए ढाने िनकले हो और वो भी लरज़ते आसूं से

शाहों ने भी शाही छोड के प्यार किया , तो प्यार मिला
दिल की ज़मीने जीत न पाया कोई भी ज़ोर-ए-बाज़ू से

Wasim-Barelvi

फितरत ही आज़ाद हो जिसकी, उसका ददर्ना नही जाना
मैने तो बस, ये चाहा, अपनी मुट्ठी भर लूं ख़ुशबू से

आंखे ज़ख़्मी है, तो 'वसीम' अब शिकवा और शिकायत क्या
तुमने भी तो देखना चाहा दिनया हो हर पहलू स

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