लोकगीत सोहर - ब्रज Lok Geet Sohar-Braj

Hindi Kavita

लोकगीत सोहर -ब्रज
Lok Geet Sohar-Braj

रानी देवकी ने जाये नंदलाल - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

रानी देवकी ने जाये नंदलाल बधाई लाई मालिनिया । 

क्या कुछ लाई मालिन तो क्या रे तमोलिनिया

ए जी क्या कुछ लाई महाराजा सुघड़ पटवारिनिया ..2 ॥

बंदनवारे मालिन लाई तो बीड़े तमोलिनिया

ए जी कुरता टोपी लाई सुघड़ पटवारिनिया ..2 ॥ रानी देवकी ने ..

 

क्या कुछ दीना मालिन तो क्या रे तमोलिनिया

ए जी क्या कुछ दीना महाराजा सुघड़ पटवारिनिया ...2 ॥

रुपये दीने मालिन तो मोहरें तमोलिनिया

ए जी सवरस गहना दीना सुघड़ पटवारिनिया ....2 ॥ रानी देवकी ने .....

 

नज़र उतारे मालिन तो टीका लगाए तमोलिनिया

ए जी चिरजीवे तेरा नंदलाला कहत पटवारिनिया

मेरी रानी का अमर सुहाग कहत पटवारिनिया ॥ रानी देवकी ने ...

lokgeet-sohar-brij

दशरथ के चारों लालदशरथ के चारों लाल - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें। 

कौन ने पूजी गंगा जमुना ...2, कौन ने सरयू धार,

सो दिन-दिन नीके सो दिन-दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ........

केकई ने पूजी गंगा जमुना ...2,

सुमित्रा ने सरयू धार, कौशल्या ने सरयू धार

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों .......

 

कौन घड़िन में लक्ष्मन जन्मे ...2, कौन घड़िन भगवान

सो दिन-दिन नीके सो दिन-दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ........

आधी सी रात में लक्ष्मन जन्मे ....2, ब्रह्म घड़िन भगवान

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों .......

 

कौन के जाए चरत भरत हैं .....2, कौन के लक्ष्मन राम

सो दिन-दिन नीके सो दिन-दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ..

केकई के जाए चरत भरत है..2,

सुमित्रा के लक्ष्मन राम, कौशल्या के लक्ष्मन राम

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ..

 

कौन के बज रहे ढोलक नगाड़े ----2, कौन के घुरत निशान

सो दिन-दिन नीके सो दिन-दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों .

केकई के बज रहे ढोलक नगाड़े ----2,

कौशल्या के घुरत निशान, सुमित्रा के घुरत निशान

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ..

 

कौन के बँट रहे बूरे-बताशे ----2, कौन के बँट रहे पान,

सो दिन-दिन नीके सो दिन-दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ...

केकई के बँट रहे बूरे-बताशे ----2,

कौशल्या के बँट रहे, सुमित्रा के बँट रहे पान

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ...

 

कौन के बँट रहीं सुरख चुनरिया ----2, कौन के दखनी चीर,

सो दिन-दिन नीके सो दिन-दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ........

केकई के बँट रहीं सुरख चुनरिया ----2,

कौशल्या के बँट रहीं, सुमित्रा के दखनी चीर

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ........

 

कौन के बँट रहीं दुलरी तिलरी----2, कौन के मोतिन थाल,

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ........

केकई के बँट रहीं दुलरी तिलरी----2,

कौशल्या के बँटत, सुमित्रा के मोतिन थाल

सो दिन-दिन नीके सो सब दिन नीके लगें ॥ दशरथ के चारों ........

जनमे राम हुए री आनन्द में - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

जनमे राम हुए री आनन्द में 

राजा दशरथ ने हाथी बाँटे ....2,

रहा हाथी एक ...2, राजा की हथसाल में ॥ जनमे राम ..........

राजा दशरथ ने घोड़े बाँटे ---- 2,

रहा घोड़ा एक ....2, राजा की घुडसाल में ॥ जनमे राम ..........

राजा दशरथ ने मोहरे बाँटीं ---2,

रहा रुपया एक ...2, कौशल्या जी के कर में ॥ जनमे राम ..........

 

रानी कौशल्या ने गहने बाँटे ---2,

रहा मोती एक ....2, कौशल्या जी की नथ में ॥ जनमे राम ..........

रानी कौशल्या ने कपड़े बाँटे---- 2,

रही साड़ी एक ...2, कौशल्या जी के तन पे ॥ जनमे राम ..........

रानी कौशल्या ने लड्डू बाँटे----2,

रहा लड्डू एक ....2, कौशल्या जी के मुख में ॥ जनमे राम ..........

श्याम झुलें पलना सो सजनी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

श्याम झुलें पलना सो सजनी। 

सासुल आवे चरुआ चढ़ावे, जिठनी आवे कमर दबावे,

देवरानी आवे पंखा डुलावे, देवर आवे बाहर निकाले,

माँगें नेग अपना सो सजनी ॥ श्याम झुलें पलना .......

 

लल्ला ऊपर लल्ला जाऊँ तब लल्ला की छठी कराऊँ

जब लल्ला की आए सगाई तब लल्ला का ब्याह रचाऊँ

बहुवर आवे रुनझुन करती डोले मेरे अँगना

पलका बैठी पान चबावे, मूड़ा बैठी हुकुम चलावे

तब ही देऊँगी सबका नेग सो सजनी ॥

 

ननदी आवे सतिए धरावे, सखियाँ आवें मंगल गावें,

पंडित आवे नाम धरावे, दाई आवे ललन जनावे,

माँगें नेग अपना सो सजनी ॥

 

लल्ला ऊपर लल्ला जाऊँ तब लल्ला की छठी कराऊँ

जब लल्ला की आए सगाई तब लल्ला का ब्याह रचाऊँ

बहुवर आवे रुनझुन करती डोले मेरे अँगना

पलका बैठी पान चबावे, मूड़ा बैठी हुकुम चलावे

तब ही देऊँगी सबका नेग सो सजनी ॥

श्याम झुलें पलना सो सजनी ।

पाँच पान पच बिड़ियाँ - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

पाँच पान पच बिड़ियाँ और 

पाँच सुपारी और पाँच सुपारी न रे

के रामा सो मेरी ननदी को देवो ननदिया को देवो बिरन को बुला लावैँ ।

 

भैया ओ मेरे भैया, के तुम मेरे भैया के तुम मेरे भैया न रे

के भैया तुम्हरे महल कछु शोर भावज तुम्हे बोलै न रे ।

 

एक हाथ लीनी है पगड़िया, और दूजे में मुरलिया और दूजे में मुरलिया न रे

के रामा धमक भए असवार, घुड़लवा को हाँक, धना ढिंग पहुँचे न रे ।

एक पग धरो है देहरिया, और दूजो सिजरिया और दूजो सिजरिया न रे

के रामा लईँ धन कंठ लगाय, कहो धन विरथा कहो धन वेदना ।

 

राजा ओ मेरे राजा, के तुम महाराजा, के तुम महाराजा न रे

के राजा लाज शरम की है बात, तुम्हारे आगे कैसे, तुम्हारे आगे कैसे कहूँ ।

धनिया ओ मेरी धनिया के तुम महारनिया न रे

के धनिया तेरो मेरो अंतर एक कहो धन विरथा कहो धन वेदना ।

 

सिर मेरो दूखम-दूख, कमर मेरी दूखे, नयन जल चूये न रे

के राजा उठी है होरिलवा की पीर, चतुर दाई लाओ सुघड़ दाई लाओ न रे ।

 

छप्पर होय तो छाऊँ, मरद दस लाऊँ मरद दस लाऊँ न रे

के रामा दाई को मैँ कहाँ पाऊँ, कहाँ से ले के आऊँ, कहाँ से ले के आऊँ न रे ।

लाज शरम की है बात, मईल ढिंग जाओ बहन ढिंग जाओ न रे

के रामा यह करतार गठरिया सखिन बीच खोलो, सखिन बीच खोलो न रे ।

 

जो घर होती मेरी मैया, पीर हर लेती दरद हर लेती न रे

के रामा राजा की मैया बेदर्दन होरिल-होरिल करे रे ।

जो घर होती मेरी भैना, पीर हर लेती आप जन लेती न रे

के रामा राजा की भैना बेदर्दन होरिल-होरिल करे रे ।

जो घर होती मेरी भाभी, तो पुड़ियाँ सिकाती और दुध में मिड़ाती न रे

के रामा राजा की भाभी बेदर्दन होरिल-होरिल करे रे ।

 

ओ गिरिराज के बालक वेग जनम लो, तुरत जनम लेओ रे

के रामा तेरी मैया विकल बहुत है, नयन जल बरसे, नयन जल बरसे न रे

मैं कैसे वेग जनम लेऊँ ओ मेरी मैया, अरी निर्मोहिन री

के मैया मिट्टी के कुंड नहलाए, खटोले पे सुलाये, ललन कह बोले न रे

 

हे रजराज के बालक वेग जनम लो, तुरत जनम लो रे

के रामा सोने के कुंड नहलाऊँ, हिंडोले में सुलाऊँ, कन्हैया कह के बोलूँ न रे

भोर हुई पौ फटी और होरिल जन्मे, और होरिल जन्मे न रे

के रामा पड़ गईं नगर बधइयाँ गवन लगे सोहिला।

 

बालक पाँव पैंजनियाँ के रुनझुन बाजैं, के रुनझुन बाजैं न रे

के रामा कमर कौंधनी जड़ाऊ, तो कठुला विराजे, के कठुला विराजे न रे

बालक नैन कजरवा के अति छवि लागे के अति छवि लागे न रे

के रामा दीना है बुआ सुभद्रा तो अति शुभ लागे तो उँगली से सारिए

 

जो इस सोहिल को गाये और गा के सुनाए सभी के मन भाए न रे

के उस के कटेंगे जनम के फंद सकल सुख पाए, सकल सुख पाए न रे।

सौंठ के लड्डू चरपरे हैं - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

सौंठ के लड्डू चरपरे हैं, सौंठ के लड्डू ---- 

अँगना में ठाड़ी सास यों बोलीं, बहू एक हमें भी देना,

सौंठ के लड्डू, सौंठ के लड्डू!!!! चरपरे हैं ॥

ये लड्डू मेरे पीहर से आए, ये लड्डू मेरी माँ ने बनाए

पसेरी भर इनमें घी जो पड़ा है

सेर भर इसमें गौंद पड़ा है

गरी के गोले नौ पड़े हैं

बादाम और पिस्ते नौ सौ पड़े हैं

छुहारे किशमिश भी तो पड़े हैं

सौंठ के लड्डू चरपरे हैं, सौंठ के लड्डू 

आधा तोड़त मेरी उँगली दूखे, -- 2, पूरा दिया न जाय,

सौंठ के लड्डू, सौंठ के लड्डू!!!! चरपरे हैं ॥

(इसी तरह सबके नाम -) 

कमर पीर होए राजा अब ना बचूँगी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

कमर पीर होए राजा अब ना बचूँगी

होरिल पीर होए राजा अब ना बचूँगी ।

 

बुलाओ सासुल को बुलाओ सासुल को

मैं बेटा उनको सौंप दूँगी अब ना बचूँगी ॥ कमर पीर ----

 

बुलाओ जिठ्नी को बुलाओ जिठ्नी को

मैं बच्चे उनको सौंप दूँगी अब ना बचूँगी ॥ कमर पीर ---

 

बुलाओ द्योरानी बुलाओ द्योरानी

मैं चूल्हा-चक्की सौंप दूँगी अब ना बचूँगी ॥ कमर पीर ----

 

बुलाओ ननदी को बुलाओ ननदी को

मैं ताला-चाबी सौंप दूँगी अब ना बचूँगी ॥ कमर पीर -

कमर पीर ठीक हुई अब ना मरूँगी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

ब्रह्म महूरत में जन्मे नन्द्लाला

कमर पीर ठीक हुई अब ना मरूँगी ।

 

बुलाओ सासुल को बुलाओ सासुल को

मैं बेटा उनसे वापस लूँगी अब ना मरूँगी ॥ कमर पीर ठीक -

बुलाओ जिठ्नी को बुलाओ जिठ्नी को

मैं बच्चे उनसे वापस लूँगी अब ना मरूँगी ।

कसम खा जा जिठ्नी, कसम खा जा जिठ्नी

तूने मारा-पीटी ना करी थी अब ना मरूँगी ॥ कमर पीर ठीक -----

 

बुलाओ द्योरानी बुलाओ द्योरानी

मैं चूल्हा-चक्की वापस लूँगी अब ना मरूँगी ।

कसम खा द्योरानी, कसम खा द्योरानी

तूने तोड़ा-ताड़ी ना करी थी अब ना मरूँगी ॥ कमर पीर ठीक ---

 

बुलाओ ननदी को बुलाओ ननदी को

मैं ताला-चाबी वापस लूँगी अब ना मरूँगी ।

कसम खा जा ननदी, कसम खा जा ननदी

तूने चोरी-चाटी ना करी थी अब ना मरूँगी ॥ कमर पीर ठीक --

कोई माँगे कढ़ाई न दे - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

कोई माँगे कढ़ाई न दे, हमारा मन हलुए, हमारा मन हलुए पे । 

जैसे रे तैसे कढ़ाई लाई, द्योरानी, द्योरानी आटा न दे

हमारा मन हलुए, हमारा मन हलुए पे ।

चुनरी दे द्योरानी मनाई, जिठनी बूरा न दे

हमारा मन हलुए, हमारा मन हलुए पे ।

 

लहँगा दे जेठानी मनाई, सासू जी मेवा न दें

हमारा मन हलुए, हमारा मन हलुए पे ।

हाथ पैर दाब सासू जी मनाईं, राजा खाने न दें

हमारा मन हलुए, हमारा मन हलुए पे ।

 

लल्लो-चप्पो कर मैंने राजा मनाए, होरिलवा पचने न दे

हमारा मन हलुए, हमारा मन हलुए पे ।

मेरी जच्चा ने जाये शिरी कृष्ण जी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

मेरी जच्चा ने जाये शिरी कृष्ण जी । 

जच्चा दाई तुम्हारी यहाँ आयेंगी

उनको ललना जनाई-नेग क्या दे दूँ जी

दे दो तुलसी की माला उन्हें हाथ में

कहना भज कृष्ण भज कृष्ण भज कृष्ण जी ॥ मेरी जच्चा ----

 

जच्चा सासुल तुम्हारी यहाँ आयेंगी

उनको चरुआ-चढाई नेग क्या दे दूँ जी

दे दो तुलसी की माला उन्हें हाथ में

कहना भज कृष्ण भज कृष्ण भज कृष्ण जी ॥ मेरी जच्चा --

इसी तरह

जिठनी --पलका-बिछाई

द्योरानी -- पंखा-डुलाई

नंदुल -- सतिया-धराई

देवर -तीर-सजाई

पंडित - नाम-धराई

सखियाँ --मंगल-गवाई

ब्रज में कान्ह हुए री अवतारीब्रज में कान्ह हुए री अवतारी, हुए री अवतारी,

अरे ब्रज में कान्ह।

 

ब्रज में कान्ह हुए री अवतारी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

घिरी रैन अँधियारी रामा,

घिरी रैन अँधियारी।

भादों रैन अँधेरी कहिए, आठे तो कहिए कान्हा, तेरी बुधवारी,

कन्हैया की बुधवारी, अरे ब्रज में कान्ह।

 

सोय गई दाई, सोय गई माई, सोय गए पहर-पहरुआ रामा,

सोय गए पहर-पहरुआ।

सारी मथुरा सोय गई है, जाग रही है एक लाला की महतारी,

कन्हैया की महतारी, अरे ब्रज में कान्ह।

 

देवकी वसुदेव जगावें, उठो कन्त भर्तारी रामा

उठो कन्त भर्तारी।

अपने लाल का मुखड़ा देखो, जैसे खिली हो चन्दा की उजियारी,

चन्दा की उजियारी, अरे ब्रज में कान्ह।

 

धरे सूप गोकुल पहुँचाने, आगे जमुना गहरी रामा,

आगे जमुना गहरी।

आगे जमुना गहरी कहिए, पीछे से सिंघ भरे रे किलकारी,

भरे रे किलकारी, अरे ब्रज में कान्ह।

 

ज्यों ही चरण दिए जमुना में, चढ़ ऊपर को आईं रामा,

चढ़ ऊपर को आईं।

चरण छुअत जमुना भईं ठाडी, शेषनाग पै छाया रे कराई,

और छाया रे कराई, अरे ब्रज में कान्ह।

 

कंसा ने एक दूती भेजी, अंचल विष लपटाए रामा,

अंचल विष लपटाए।

दूध पियत प्रभु प्राण निकारे, मर पूतना बैकुंठ सिधारी

बैकुंठ सिधारी, अरे ब्रज में कान्ह।

नन्द घर बाजे बधइया - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

नन्द घर बाजे बधइया, नन्द घर... 

कहाँ रे कन्हैया ने, कहाँ रे कन्हैया ने, जनम लियो है,

कहाँ तो, हय कहाँ तो बाजे बधइया, नन्द घर।

मथुरा कन्हैया ने, मथुरा कन्हैया ने, जनम लियो है,

गोकुल, हय गोकुल बाजे बधइया, नन्द घर।

सोलह जोड़ी, सोलह जोड़ी, नगाड़े बाजें,

बारह जोड़ी, हय बारह जोड़ी शहनइया, नन्द घर।

रानी यशोदा, रानी यशोदा, मगन भई हैं,

अन्न धन, हय अन्न धन देत लुटइया, नन्द घर।

जच्चा तो मेरी भोली-भाली है रे - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

जच्चा तो मेरी भोली-भाली है रे। 

मन भर तो लड्डू खा जावे, दो मन पक्के पेड़े,

जच्चा तो मेरी, खाना न जाने रे ॥ जच्चा तो मेरी --

सास ननद की चुनरी फाड़े, द्यौर जिठानी का लंहगा

जच्चा तो मेरी, लड़ना न जाने रे ॥ जच्चा तो मेरी --

साँप मार सिरहाने रक्खे, बिच्छू मार बगल में

जच्चा तो मेरी, मच्छर से डर जावे रे॥ जच्चा तो मेरी ---

हमको तो पीर आवे, ननदी हँसती डोले - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

हमको तो पीर आवे, ननदी हँसती डोले।

बाहर से राजा आए अरज सुनो मेरी

ननदी बिदा करो, अब ही बिदा करो ॥ हमको तो ---

 

झूमर घड़न गया, टीका घड़न गया

गंगा उफान पे है, कैसे बिदा करौं।

झूमर मैं अपना दूँगी, टीका जिठानी देंगी

गंगा में नाव उतारो, ऐसे बिदा करो ॥ हमको तो -------

 

हरवा घड़न गया, झाले घड़न गए

गंगा उफान पे है, कैसे बिदा करौं।

हरवा मैं अपना दूँगी, झाले द्योरानी देगी

मल्लाह को हाल बुलाओ, ऐसे बिदा करो ॥ हमको तो -

पलँग पर अब ना चढ़ूँगी महाराजा - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

पलँग पर अब ना चढ़ूँगी महाराजा। 

सो राजा मेरे पहली पीर जब आई,

सास मैंने जाय जगाई महाराजा।

सो राजा मेरे सुन के भी करवट बदल गई,

सास बेदर्दिन हुई जी महाराजा ॥ पलँग पर --------

 

सो राजा मेरे दूजी पीर जब आई,

जिठानी मैंने जाय जगाई महाराजा।

सो राजा मेरे सुन के भी करवट बदल गई,

जिठानी बेदर्दिन हुई जी महाराजा ॥ पलँग पर --------

 

सो राजा मेरे तीजी पीर जब आई,

द्योरानी मैंने जाय जगाई महाराजा।

सो राजा मेरे सुन के भी करवट बदल गई,

द्योरानी बेदर्दिन हुई जी महाराजा ॥ पलँग पर -- 

सो राजा मेरे दूजी पीर जब आई,

ननद मैंने जाय जगाई महाराजा।

सो राजा मेरे सुन के भी करवट बदल गई,

ननद बेदर्दिन हुई जी महाराजा ॥ पलँग पर --

 

सो राजा मेरे पँचई पीर जब आई,

आप मैंने जाय जगाए महाराजा।

सो राजा मेरे सुनते ही ठाड़े हो गए,

दाई को झट लेने गए जी महाराजा ॥ पलँग पर --

 

सो राजा मेरे भोर भई पौ फाटी,

होरिल हम उर धरे जी महाराजा।

सो राजा मेरे भूल गई सारी बतियाँ

पलँग पर फिर से चढ़ूँगी महाराजा।

मगन मन पूजन चली मोरी जच्चा - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

मगन मन पूजन चली मोरी जच्चा। 

सो मेरी जच्चा, हाथों में पूजा का थाल

सो मेरी जच्चा, गोदी में लिए नंदलाल,

ससुर कुल पूजन चली मोरी जच्चा,

सास कहे जुग जुग जिए तेरा बच्चा।

मगन मन पूजन चली मोरी जच्चा। 

(इसी प्रकार अन्य रिश्तेदारों के नाम)

गोंद सौंठ के लड्डू मेरे बाबुल के - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

गोंद सौंठ के लड्डू मेरे बाबुल के से आए जी।

उनमें से दो लड्डू मेरी, सासुल ने चुराए जी

सासुल जी का हाथ पकड़ कर मेरे आगे लाओ जी।

ससुरा जी तोरे पइयाँ लागूँ, मेरा न्याय चुकाओ जी

गोंद सौंठ के मेरे लड्डू सासुल ने क्यों खाए जी ॥ गोंद सौंठ के लड्डू -----

 

उनमें से दो लड्डू मेरी, ननदी ने चुराए जी

ननदी जी का हाथ पकड़ कर मेरे आगे लाओ जी।

नंदोई जी बिनती सुन लो, मेरा न्याय चुकाओ जी

गोंद सौंठ के मेरे लड्डू बीबी ने क्यों खाए जी ॥ गोंद सौंठ के लड्डू -----

 

उनमें से दो लड्डू मेरी, सौतन ने चुराए जी

सौतिनिया का हाथ पकड़ कर मेरे आगे लाओ जी।

राजा जी तुम अभी के अभी, मेरा न्याय चुकाओ जी

गोंद सौंठ के मेरे लड्डू सौतन ने क्यों खाए जी ॥ गोंद सौंठ के लड्डू --

राजा ओ मेरे राजा के तुम महाराजा - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

राजा ओ मेरे राजा के तुम महाराजा

के तुम महाराजा न रे, के राजा हमको तिलरिया की साध,

तिलर गढ़वाओ, चुनर रँगवाओ न रे।

 

धनिया ओ मेरी धनिया के तुम महारनियाँ

के तुम महारनियाँ न रे, के धनिया तुम्हरो है साँवल सरीर,

तिलर नहीं सोहे, चुनर नहीं सोहे न रे।

 

इतनों वचन सुन, धनिया रिसा गईं,

धनिया रिसा गईं, बहुत गुस्सा भईं, जड़ लईं झँझन किवरियाँ,

अहोलो ले के पड़ गईं न रे।

 

बोलो गाम के सुनरा, तुरत चले आवें

तुरत चले आवें न रे, के सुनरा तिलरी अनोखी गढ़ लावो,

धना हमसे रूठीं, धना को मनावें न रे।

 

बोलो गाम के छीपी, तुरत चले आवें

तुरत चले आवें न रे, के छीपी सतरंग चुनर रँगावो,

धना हमसे रूठीं, धना को मनावें न रे।

 

इक हाथ लई है तिलरिया, और दूजे में चुनरिया

और दूजे में चुनरिया न रे, के धनिया खोल देओ झँझन किवरियाँ,

पहन लेओ तिलरी, ओढ़ लेओ चुनरी न रे।

 तिलरी तो पहरे तुमरी मइया, और तुमरी बहनिया

और तुमरी बहनिया न रे, के राजा चुनरी तो ओढ़े भौजइया,

रे ओढ़े भौजइया, जहाँ तुम रीझे न रे।

 

इतनों वचन सुन, राजा रिसा गए, बहुत गुस्सा भए

बहुत गुस्सा भए रे, के धनिया जाऊँ बरेली की पैंठ,

सौत लै के आऊँ, जनम दुःख पाओ न रे।

 

भोर भई पौ फाटी, और होरिल उर धरे

होरिल उर धरे रे, के रामा पड़ गईं नगर बधइयाँ,

बाजन लागे थार, गवन लगे सोहिला न रे। 

बोलो गाम के मलिया, बेगि चले आवें

बेगि चले आवें न रे, के मलिया फूलन के हार लै आवो,

पिया हमसे रूठे, पिया को मनावें न रे।

 

बोलो गाम पनवरिया, बेगि चले आवें

बेगि चले आवें न रे, के रामा मीठे मीठे पान लगावें,

पिया हमसे रूठे, पिया को मनावें न रे।

 

इक हाथ लीने हैं बीड़ा, और दूजे हाथ हरवा

और दूजे हाथ हरवा न रे, के रामा गोद में लीने हैं लालन,

पिया हमसे रूठे, पिया को मनावें न रे। 

खोलो पिय झँझन किवरियाँ, पहन लेओ हरवा

पहन लेओ हरवा न रे, के राजा चाब लेओ पान के बीड़ा,

ललन गोदी लेओ, बहुत सुख पाओ न रे।

 

हरवा तो पहरे तोहरी मइया, चबावे बीड़ा भइया

चबावे बीड़ा भइया न रे, के धनिया ललना खिलावै तोहरा जीजा,

खिलावै तोहरा जीजा, जहाँ तुम रीझीं न रे। 

जो जाय सोहर गावै, और गाय सुनावै

और गाय सुनावै न रे, के रामा कटें हैं जनम के फंद,

जनम के फंद, अमिट सुख पावै न रे।

कहाँ गँवाए मेरी रानी, गगरिया के मोती - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

कहाँ गँवाए मेरी रानी, गगरिया के मोती रे। 

थाल भर मोती मैंने दाई को दीने,

जिन मोरे होरिल जनाए, गगरिया के मोती रे।

थाल भर मोती मैंने सासुल को दीने,

जिन मोरे चरुआ चढ़ाए, गगरिया के मोती रे।

थाल भर मोती मैंने जिठनी को दीने,

जिन मोरे पलँग बिछाए, गगरिया के मोती रे।

थाल भर मोती मैंने छोटी को दीने,

जिन मोहे बिजुन ड़ुराए, गगरिया के मोती रे।

थाल भर मोती मैंने ननदी को दीने,

जिन मोरे सतिया धराए, गगरिया के मोती रे।

थाल भर मोती मैंने देवर को दीने,

जिन मोरे तीर सजाए, गगरिया के मोती रे।

थाल भर मोती मैंने सखियो को दीने,

जिन मोरे मंगल गाए, गगरिया के मोती रे।

बोले न चाले मिज़ाज करे - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

बोले न चाले मिज़ाज करे, 

ऐसी जच्चा से को प्यार करे।

 

टीका लै के आऊँ तो सिर न धरे

झुमका लै के आऊँ तो कान न धरे

नथनी को पूँछू तो इनकार करे, ऐसी जच्चा से को प्यार करे।

बोले न चाले -

 

लहँगा लै के आऊँ तो अंग न धरे

चोली लै के आऊँ तो अंग न धरे

चुनरी को पूँछू तो इनकार करे, ऐसी जच्चा से को प्यार करे।

बोले न चाले -

 

रबड़ी लै के आऊँ तो परे कर दे

लैमन लै के आऊँ तो परे कर दे

हरीरा को जो को पूँछू तो इनकार करे, ऐसी जच्चा से को प्यार करे।

बोले न चाले -

उठी मेरे राजा कमर में पीर उठी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

उठी मेरे राजा कमर में पीर उठी। 

कहो तो रानी तेरी सासू को बुला दूँ

नहीं मेरे राजा, सासू का काम नहीं।

कहो तो रानी तेरी अम्मा को बुला दूँ

कही मेरे राजा, मन की सी बात कही ॥ उठी मेरे राजा - 

(इसी प्रकार जिठानी-भाभी, ननद-बहन, देवर-भाई के लिए)

द्वारे पे डाल लीनी खटिया, हाय रामा - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

द्वारे पे डाल लीनी खटिया, हाय रामा।

 

लड़की हुई की सुनी जब ससुर ने,

हाथ में से छूट गई लठिया, हाय रामा ॥ द्वारे पे ----

लड़की हुई की सुनी जब जेठ ने,

हाथ में से छूट गई गठिया, हाय रामा ॥ द्वारे पे ----

लड़की हुई की सुनी जब देवर ने,

हाथ में से छूट गई बंसिया, हाय रामा ॥ द्वारे पे ----

लड़की हुई की सुनी जब ननद ने,

हाथ में से छूट गई गुड़िया, हाय रामा ॥ द्वारे पे ----

लड़की हुई की सुनी जब बलम ने,

हेठ से टूट गई खटिया, हाय रामा ॥ द्वारे पे --

मचल रही आज महलों में दाई - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

मचल रही आज महलों में दाई,

अकड़ रही आज महलों में दाई।

 

थाल भर मोती कौशल्या ने मँगाए,

दाई ने दिए ठुकराय, मचल रही आज ----

पिटरा भर जेवर कैकेयी ने मँगाए,

दाई ने दिए ठुकराय, मचल रही आज ----

थैली भर रतन सुमित्रा ने मँगाए,

दाई ने दिए ठुकराय, मचल रही आज ----

हाथ जोड़ राजा दशरथ ठाड़े,

छेओ कुँवरों की नार, मचल रही आज ----

कुँवरों की नार तभी छेऊँगी,

लूँ आधा अयोध्या का राज, मचल रही आज --

अकड़ रही आज महलों में दाई।

माँगे ननद रानी कँगना - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

माँगे ननद रानी कँगना, 

ललन के होने का।

 

जब लालन की छठी कराऊँ,

दूँगी ननद रानी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन की छठी कराई,

फिर माँगे ननदी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का होगा जनेऊ,

दूँगी ननद रानी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का हुआ जनेऊ,

फिर माँगे ननदी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन की आवे सगाई,

दूँगी ननद रानी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का आई सगाई,

फिर माँगे ननदी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का ब्याह रचाऊँ,

दूँगी ननद रानी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का ब्याह हो गया,

फिर माँगे ननदी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का गौना आवे,

दूँगी ननद रानी कँगना, ललन के होने का।

जब लालन का गौना आया,

फिर माँगे ननदी कँगना, ललन के होने का।

क्या तुम बीबी पागल हो गई,

मैंने दिया था तुम्हें चकमा, कंगन को देने का।

माँगे ननद रानी कँगना, ललन के होने का।

सास तो दुबली हो गई - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

सास तो दुबली हो गई, बहुओं के आने से। 

सास तूने क्या खाया था, जेठा के होने में,

बहू री मैंने गन्ने खाये, लाला के होने में,

तभी तो वो लंबे हो गए, गन्नों के खाने से ॥ सास तो दुबली --

 

सास तूने क्या खाया था, दिवरा के होने में,

बहू री मैंने जामुन खाये, लाला के होने में,

तभी तो वो लंबे हो गए, जामुन के खाने से ॥ सास तो दुबली ----

 

सास तूने क्या खाया था, ननदी के होने में,

बहू री मैंने मिर्चें खाईं, लाली के होने में,

तभी तो वो ततैया हो गई, मिरची के खाने से ॥ सास तो दुबली ----

 

सास तूने क्या खाया था, राजा के होने में,

बहू री मैंने गोले खाये, लाला के होने में,

तभी तो वो भोले हो गए, गोलों के खाने से ॥ सास तो दुबली --

लाल के बधाए जड़ाऊ बेंदा लेऊँगी - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

लाल के बधाए जड़ाऊ बेंदा लेऊँगी,

जो भए लाल, मैं बेंदा बेसर लेऊँगी।

 

साँझ बेहाल गई, आधी रात लाल हुए,

शोर न मचाओ राजा ननदी सुन लेवेंगीं,

बेंदा ले लेवेगी, वो बेसर ले लेवेंगी ॥ लाल के बधाए ----

 

ननदी ने खबर पाई, नाचत कूदत आय गईं,

लाल की बधाई भौजी पूरी मेरी आस भई,

अब तो बेंदा लेऊँगी मैं अब तो बेसर लेऊँगी ॥ लाल के बधाए ----

 

अँचरा की ओट भाभी लालन छिपाय लियो,

मेरे तो बेटी भई बेंदा कैसे लेओगी,

मेरे तो बेटी भई बेंदा कैसे लेओगी ॥ लाल के बधाए ----

 

भैया ने आँख दई बहना ने समझ लई,

बेंदा नहीं लेऊँ भाभी बिटिया देख लेऊँगी,

बेसर नहीं लेऊँ भाभी बिटिया गोद लेऊँगी ॥ लाल के बधाए ----

 

अँगना में ठाड़ी ठाड़ी सास समझावें,

दे दे बहू बेंदा मैं और बनवाऊँगी,

दे दे बहू बेसर मैं और बनवाऊँगी ॥ लाल के बधाए ----

 

बेंदा उतार जच्चा अँगना में फेंक दियो,

बेसर उतार जच्चा अँगना में फेंक दियो,

ले जा मेरी सौत तुझे फिर न बुलाऊँगी ॥ लाल के बधाए ----

 

बेंदा उठाय ननदी भाभी को पहराय दियो,

भाभी को सुहाग और लाल अमर रहियो,

अपने से आऊँगी मैं बिना बुलाई आऊँगी ॥ लाल के बधाए -

बहू कौन कौन फल खाए - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

बहू कौन कौन फल खाए, ललन बड़े सुंदर हैं। 

बाहिर से आईं सास रानी पूछें,

बहू कौन से व्रत तुम कीन्हे, ललन बड़े सुंदर हैं।

गंगा नहाई न जमुना नहाई,

इतवार का व्रत मैं कीन्हा, मैं जानूँ यही फल रे।

बाहिर से आईं जिठानी रानी पूछें,

बहू कौन से फल तुम खाए, ललन बड़े सुंदर हैं।

गंगा नहाई न जमुना नहाई,

इतवार का व्रत मैं कीन्हा, मैं जानूँ यही फल रे।

बाहिर से आईं ननद रानी पूछें,

भाभी कौन की पड़ी परछाँई, ललन बड़े सुंदर हैं।

न्हाय धोय मैं झरोखे पे आई,

नंदोई की पड़ी परछाँई, मैं जानूँ यही फल रे।

बाहिर से आए देवर राजा पूछें,

भाभी कौन सेज तुम सोईं, ललन बड़े सुंदर हैं।

सेज तो सोई मैं अपने साजन की,

सपने में संग तुम्हारे, मैं जानूँ यही फल रे।

बहू कौन कौन फल खाए, ललन बड़े सुंदर हैं।

भए देवकी के लालभए देवकी के लाल - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

भए देवकी के लाल, यशोदा जच्चा बनीं। 

वो तो महलन में शोर सुन के, सासुल आईं,

वो तो आते ही चरुआ चढ़ावन लगीं ॥ भए देवकी के --

वो तो महलन में शोर सुन के, जिठनी आईं,

वो तो आते ही पाग जमावन लगीं ॥ भए देवकी के --

वो तो महलन में शोर सुन के, छोटी आईं,

वो तो आते ही पलका बिछावन लगीं ॥ भए देवकी के --

वो तो महलन में शोर सुन के, ननदी आईं,

वो तो आते ही सतिए धरावन लगीं ॥ भए देवकी के --

वो तो महलन में शोर सुन के, नाइन आईं,

वो तो घर घर बुलावा देवन लगीं ॥ भए देवकी के --

वो तो महलन में शोर सुन के, सखियाँ आईं,

वो तो आते ही मंगल गाने लगीं ॥ भए देवकी के --

वो तो महलन में शोर सुन के, पण्डित आए,

वो तो आते ही पत्री बनाने लगे ॥ भए देवकी के --

जच्चा मेरी ने ज़ुलम किया - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

जच्चा मेरी ने ज़ुलम किया, 

अङ्ग्रेज़ी जापा शुरू किया। 

सासू को बुलाना छोड़ दिया, मइया को बुलाना शुरू किया।

जिठनी को बुलाना छोड़ दिया, भाभी को बुलाना शुरू किया।

जच्चा मेरी ने -

 (इसी प्रकार ननद-बहन, देवर-भाई आदि के लिए)

ब्रज में बजत बधाई - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

ब्रज में बजत बधाई, मैं सुन के आई। 

नन्द दुआरे नौबत बाजे,

और बजे शहनाई, मैं सुन के आई।

रतन जड़े चन्दन पलने में,

सोवे किशन कन्हाई, मैं सुन के आई।

भर भर थाल मोगरा बेला,

मालिनिया लै आई, मैं सुन के आई।

बंदनवार बना फूलन से,

ड्योढ़ी दई सजाई, मैं सुन के आई।

उबटन काजल तेल महावर,

नाइनिया लै आई, मैं सुन के आई।

न्हवा धुवा लाला को कारो,

टीका दियो लगाई, मैं सुन के आई।

नन्द लुटावें अन्न धान गुड,

माखन और मलाई, मैं सुन के आई।

हरख हरख खावें सब पुरजन,

जै जैकार लगाई, मैं सुन के आई।

ब्रज में बजत बधाई, मैं सुन के आई।

जन्म लियो रघुरइया - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

जन्म लियो रघुरइया, अवधपुर बाजे बधइया। 

राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन,

जनमे चारो भइया, अवधपुर बाजे बधइया।

गलिन गलिन में बाजें नगारे,

नाचें लोग लुगइया, अवधपुर बाजे बधइया।

महलन मंगल चौक पुर रहे,

जगर मगर सब थइयाँ, अवधपुर बाजे बधइया।

राजा दशरथ की बात न पूछो,

मोहरें रहे लुटइया, अवधपुर बाजे बधइया।

पंडित आवें नाम धरावें,

हरखें तीनों मइया, अवधपुर बाजे बधइया।

ऋषि मुनि आ आशिष देवें,

जय जय राम रमइया, अवधपुर बाजे बधइया।

खड़ी-खड़ी ठेंगा दिखाऊँ - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

खड़ी-खड़ी ठेंगा दिखाऊँ, ननद कँगना माँगे जी

हमने तो जाए नंदलाला, ननद कँगना माँगे जी

बाहर से आए ससुर तो बहू भीतर को चलीं

दे दो बहूरानी कँगना मैं और गढ़वाय दूँ जी ॥

 

बाहर से आए बलम तो धना पलका पे पड़ीं

दे दो धना रानी कँगना मैं चार गढ़वाय दूँ जी ॥

नौ महीने हमने कोख पाली और प्रसव की पीड़ा सही,

कँगना माँगे ननदिया, कहो जी कोई बात हुई ॥

कँगना दोगी ननद को तो वह खुश हो के कहे

भाभी चिर जीवे तेरा नंदलाला और अमर सुहाग रहे ॥

 

पेच खोल कँगना जो फेंका आँगन झनकार उठा

अरे ले जा बिजुलिया कँगना के अब मत आना रे ॥

अब की गई मैं छठिन में आऊँगी फिर आऊँ लल्ला के मुंडन में

फिर आऊँ लल्ला के ब्याह में फिर नहीं आऊँ रे ॥

देखो ननद भवज कोठे चढ़ गईं - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

देखो ननद भवज कोठे चढ़ गईं और आपस में रहीं बतलाय

अहो जी मन अपना।

भाभी जो तेरे होंय नंदलाला ---2 तो हमे भला क्या देओ, अहो जी ----

बीबी जो मेरे होय नंदलाला --2 तुम्हें दूँगी गले का हार,…. अहो जी --

तुम्हें दूँगी तिलड़ गढ़वाय ,अहो जी ---

देखो ननद गई घर अपने,--2 यहाँ धमक जने नंदलाल, अहो जी --

साहूकारों के हुए नंदलाल, अहो जी -

 

राजा हौले-हौले बंसरी बजाना, राजा धीरे-धीरे बंसरी बजाना

और सुनकर आवे ननदिया, अहो जी ------

वो तो इतने में आ गई ननदिया, और माँगे अपना नेग, अहो जी ------

बीबी कैसी होती है तिलड़ी और कैसा गले का हार, अहो जी ------

देखो ललन झूल रहे पलना, ---2 वो तो ले गई ननदिया उठाय, अहो जी ------राजा हल्की गढ़ा लाओ तिलडी और हल्का गले का हार, अहो जी --

मुझे घर अँगना न सुहाय, अहो जी --

बीबी देजा भतीजा देजा और लेजा अपना नेग, अहो जी --

वह तो पहन नेग हुई ठाड़ी, और मुड़-मुड़ देत आशीष, अहो जी --

भाभी चीर जीवे तेरा नंदलाला, मेरी भाभी का अचल सुहाग, अहो जी --

पाँव छूते में तोड़ ली तिलड़ी,---

2 गले मिलते में तोड़ लिया हार, अहो जी -- 

घर सास-ननद पूछे बतियाँ, तेरी भाभी ने जाए नंदलाला, अहो जी ---

बहू क्या कुछ लाई नेग, अहो जी -

पाँव छूते में तोड़ ली तिलड़ी,---2 

गले मिलते में तोड़ लिया हार, अहो जी --

वो तो ओछे घरों की है नार, अहो जी --

मैं तो धोती छुड़ाय घर आई, अहो जी -

साहूकारों के हुए नंदलाल, अहो जी --

जो मन में आए सोई ले ले ननदिया - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

जो मन में आए सोई ले ले ननदिया

तेरा जिया चाहे सोई ले ले ननदिया---2

 

बरतन नहीं दूँगी मेरे चौके का सिंगार हैं

बरतन में से चम्मच दूँगी ----2, डंडी लूँगी तोड़ ननदिया ॥ तेरा------

कपड़े नहीं दूँगी मेरे बक्सों का सिंगार हैं

कपडों में से अँगिया दूँगी---- 2, बंद लूँगी तोड़ ननदिया ॥ तेरा -----

गहने नहीं दूँगी मेरे तन का सिंगार हैं

गहनों में से आरसी दूँगी --

2, छल्ला लूँगी तोड़ ननदिया ॥ तेरा -

तुझे चंदा कहूँ या लाल - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

तुझे चंदा कहूँ या लाल 

तुझे चंदा कहूँ या लाल, मेरे साँवरिया ।

दूर खेलन मत जाना मेरे लाला ---

तेरे सिर पर जड़ूले बाल, मेरे साँवरिया ।

या तो खेलो बाबा के द्वारे

या दादी की गोद, मेरे साँवरिया ।

 (इसी तरह सबके नाम )

का घर मौरे हैं अम्ब - सोहर -ब्रज लोक गीत Braj ke Lok Geet

का घर मौरे हैं अम्ब, कवन घर, नरियल कवन घर, नरियल न रे,

के रामा, का घर चुए है, गुलाल, तो चुए है, गुलाल, तौ चुनरी रँगाइए।

 

बाप घर मौरे हैं अम्ब, ससुर घर, नरियल ससुर घर, नरियल न रे,

के रामा, पी घर चुए है, गुलाल, तो चुनरी रँगाइए।

 

बोलो नगर के पंडित बेगि चले आवें, तुरत चले आवें न रे,

के रामा, बालक को नाम धरावें, तो पतरी बनावें और बाँच, सुनावें न रे।

 

बाबा याके बाजत राजा, तो दादी महारानी, तो दादी महारानी न रे,

के रामा, बालक अति शुभ लागै, तो नाम कमावै, सभी के मन भावै न रे।

 

नानी याकी नटनी की जाई, तो नटनी कहाई, के नटनी कहाई न रे

के रामा, माँ याकी डोम के जनमी, तो डोमनी कहाई, के डोमनी कहाई न रे।

 

इतनों सुनत रिसा गईं, बहुत खफा भईं, बहुत गुस्सा भईं रे,

के रामा जड़ लईं झँझन किवड़ियाँ, ललन लै के पौंडीं, ललन लै के पौंडीं न रे।

 

बाहिर से आए रजराज, धना को पुकारें, धना को मनावें न रे,

के धनिया ! खोल देओ चँदन किवार, ललन मुख देखौं, नयन सुख पाऔं न रे।

 

मैं हौं डोम की जाई, डोमिनिया कहाई, डोमिनिया कहाई न रे,

कै रामा, मोर डोमिनिया के लाल, नटिनिया के लाल, तौ केहु न दिखाइए।

 

जो तुम डोम की जाईं, डोमिनिया कहाईं, नटिनिया कहाईं न रे,

कै धनिया, मो रजबंसी के लाल तौ कुँवर कहावै, तौ सवन दिखाइए।

 

जो जाय सोहिल गावै, और गाय, सुनावै और गाय सुनावै न रे,

के रामा, कटैं हैं जनम के फंद, बहुत सुख पावै, अमित सुख पावै न रे। 

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