Tea Set - टी सैट -उषा किरण

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जल्दी-जल्दी चाय बना कर जैसे ही छलनी लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो अचानक से अनन्या का हाथ लगने से गोल-गोल घूम कर चाय का मग लुढ़कता हुआ नीचे फ़र्श पर छन्न से गिर कर टुकड़े -टुकड़े हो गया ।

"क्या तोड़ा... फ्री का माल है न खूब तोड़ो... साला उल्लू का पट्ठा तो है न कमाने को, सुबह से शाम तक पिद कर “भाई साहब ज़ोर से चिल्लाए बरामदे से। अवाक अनन्या दोनों हाथों में मुँह छिपा किचिन के फ़र्श पर बैठ कर सिसकने लगी ।

"अरे तो चिल्ला क्यों रहे हो अनन्या से टूट गया होगा”! भाभी बाथरूम से बोलीं , सब समझ रही थी अनन्या कि मक़सद तो उनका यही बताना था कि क़सूरवार अनन्या है।भाई साहब ने उसको किचिन में जाते देखा था तो उनको पहले ही पता था कि किचिन में वो ही है ,तो ज़ाहिर है इसीलिए ये ताना मारा गया था।

टायफायड होने के कारण तीन महिने पहले ही सौरभ जॉब से रिजाइन करके आगरा से नौएडा आ गये थे। आगरे में खाने- पीने का परहेज़ और देखभाल भी ठीक से नहीं हो पा रही थी। सौरभ को बाहर ही खाना, खाना पड़ रहा था अभी तक। मार्केटिंग की जॉब होने के कारण टूर भी करना पड़ता था ।अनन्या को अभी साथ नहीं भेजा गया था ये कह कर कि अभी इसके बस का नहीं है गृहस्थी संभालना, पहले एक दो साल सीख तो जाए। ऑफिस से छुट्टियाँ भी नहीं मिल पा रही थीं तो रिजाइन करना पड़ा। अब सौरभ घर पर ही आराम के साथ-साथ जॉब के लिए एप्लाई भी कर रहे थे। उसी को लेकर ये ताना सुनाया जा रहा था, ये वो न समझती ऐसी भी नादान नहीं थी।

घबड़ाहट और शर्म के कारण उसने खाना नहीं खाया।जब भी कोई कड़वा बोलता या डाँट देता उसका मन कुम्हला जाता और उसकी भूख और नींद पहले गायब हो जाती । चुपचाप बहुत रात तक मुँह छिपा आँसुओं से तकिया भिगोती रही।अपने घर में कभी किसी ने इस तरह से बात नहीं की थी उससे।दोनों भाइयों की इकलौती स्वाभिमानी लाड़ली बहन थी वो ।ऊपर से कमाई का
ताना... शर्मिन्दगी और बेबसी में उसे रोना ही आता था ऐसे समय में ।
"अरे ऐसा भी क्या कह दिया जो इतना रो रही हो... सो जाओ”! सौरभ झुंझला कर करवट लेकर सो गए लेकिन अनन्या की आँखों से नींद कोसों दूर थी।

ऐसी परिस्थितियों में सौरभ भी कभी उसके पक्ष में कुछ नहीं कहते थे।बड़ों का सामना करना ये उनके संस्कारों में नहीं था। सौरभ बहुत छोटे थे तभी उनके पापा की डैथ हो गई थी अम्माँ ने ही उनको व भैया को बहुत मुश्किलों से पाला था ।उन दिनों को याद कर अम्माँ व भैया को लेकर वे बहुत भावुक हो जाते थे।वो भी समझती थी कि बिना पति के मायके और ससुराल में रह कर औरों के आश्रित होकर बच्चों को पालने और जीवन निर्वाह करने में अम्माँ को कितनी ही बातें सुननी पड़ी होंगी। जाने कितनी घरेलू राजनीति और अभावों को झेला होगा जिससे व्यक्तित्व में ढेरों गुलझने पड़ गई हैं। वो अपनी सेवा और प्रेम से बहुत कोशिश करती कि उनका दिल जीत ले पर भाभी का बनाया विषैला घेरा उनके हृदय तक अनन्या को पहुंचने ही नहीं देता था।

गल्ती उसकी हो या न हो कलह होते ही सौरभ चुपचाप निकल लेते थे। कभी सब्ज़ी में तेल या नमक ज़्यादा हो जाता या कोई चीज़ बनानी नहीं आती,कोई गल्ती हो जाती तो हमेशा सासु माँ या भाई साहब छोटे घर से आई है या छोटे शहर की है का ताना देने से बाज नहीं आते थे।

अनन्या की ममेरी बहन आस्था की शादी में बराती बन कर आए सौरभ ने सहेलियों के साथ जूते चुराती, चुहल करती अनन्या को देख कर पसन्द किया था और दोस्त से रिश्ते की बात चलाने के लिए कहा था। सौरभ के घर में किसी को भी ये रिश्ता मंज़ूर नहीं था। भाभी अपनी चचेरी बहन से सौरभ की शादी कराने की साध बरसों से मन में संजोए बैठी थीं। सासु माँ से और भाई साहब से अच्छा दहेज मिलने के सपने दिखा कर सहमति भी प्राप्त कर ली थी ।

घर में फ्रिज लेने की बात भाभी ने बड़े पुलक से यह कह कर ख़ारिज कर दी थी कि "अरे क्या ज़रूरत है चाचा-चाची शादी में देंगे न गाड़ी, फ्रिज, बड़ा वाला एल. सी. डी. टी. वी. और बीस -तीस तोले सोना तो देंगे ही और कैश भी अच्छा-ख़ासा देंगे... अकेली बेटी है ! अम्माँ जी क्या बताएँ आपको हमारी नीती कितनी गुनी है। सर्वगुण सम्पन्न है बस ज़रा सी हाइट ही कम रह गई लेकिन जँचती बहुत है !”

सबने मन बना लिया था कि नीती ही घर की छोटी बहू बनेगी। लेकिन सौरभ अड़ गए थे, वो किसी भी हाल में नीती से शादी को तैयार नहीं हुए तो हार कर सबको मानना ही पड़ा। बुझे मन से ही शादी सम्पन्न हुई थी। मुँह-दिखाई पर ही सासु माँ लम्बी साँस लेकर हाथ में पाँच सौ का नोट थमा चुपचाप चली गई थीं।

"हुँह... इतनी भी कोई हूर की परी न हैं जिनके पीछे दुनिया पगलाई पड़ी थी!” बरामदे से उसको सुना कर ही ज़ोर से कहा गया वाक्य सुन कर घूँघट में अनन्या की आँखें छलछला आईं ।दूध सा उजला रंग, तीखे नैन-नक़्श और पतली, लम्बी, छरहरी काया के चलते जो उसे देखता मुग्ध हो जाता । उसकी सुन्दरता के कारण घर वालों को कितनी मुसीबतें उठानी पड़ती थीं। गली में चक्कर लगाते,गाने गाते जाने कितने शोहदों की दोनों भैया ठुकाई कर चुके थे। ससुराल में उसका पहला स्वागत इतनी ठंडी तरह से हुआ कि वह सहम कर रह गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी गल्ती क्या थी ?

अपनी हैसियत और विदिशा शहर के हिसाब से जितना हो सकता था पापा व भैया ने बहुत अच्छी व्यवस्था की थी। पापा ने अपनी हैसियत से बढ़ कर दहेज दिया था जो इन लोगों की महत्वाकांक्षाओं के ऊँट के मुँह में मात्र जीरा ही साबित हुई थी। शादी में भी भाई- साहब ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी पापा को नीचा दिखाने में। खाने-पीने की व रहने की व्यवस्था को लेकर भैया और पापा को खूब खरी-खोटी सुनाई गईं।

अपनी फ्रैंड्स से सारी बातें सुन कर अनन्या को बहुत ग़ुस्सा आ रहा था ।मम्मी से उसने कहा कि वो ये शादी नहीं करना चाहती है पापा को बोलो मना कर दें उन लोगों को !
पर मम्मी ने उल्टे उसे ही  डाँट दिया था।

`अरे बिन्नो जे कैसी बातें कर रही हों तुम ? चढ़ी बरात लौटाय देंगे तो बिरादिरी में नाक न कट जाएगी ? अरे जे लड़के वाले तो करते ही हैं नख़रा बा में कौन नई बात भई और तुम काए इन पचड़े में पड़ रहीं वे तुम्हारे भैया और पापा हैं न देख लिएं आपहि ,उनको सर दर्द है ये !’
`पर वो लोग पापा और भैया की इतनी बेइज़्ज़ती कर रहे हैं हमसे नहीं सहन होता...! ‘वो रोने लगी। पापा ने बरामदे से सारी बातचीत सुन ली थी ।अन्दर आकर अनन्या के सिर पर हाथ रख मुस्कुरा कर बोले` अरे बेटा ठीक है, करते ही हैं लड़के वाले। लेकिन बेटा सौरभ बहुत संस्कारी बच्चा है हमसे अलग ले जाकर माफ़ी माँगी और अपने भैया और बाक़ी रिश्तेदारों को भी मना किया है कि वे ऐसा न करें ! तुम चिन्ता न करो... मन छोटा मत करो, अब सब ठीक है!”

कई दिनों से कामवाली काकी नहीं आ रही थीं।अम्माँ जी का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था रोज कहती थीं "आने दो मरी को पैसे काटूँगी ! फ़ोन भी बन्द कर रखा है मक्कार ने ... ये न कि फ़ोन करके ही बता देती पूरे दस दिन हो गए... दूसरी मिलते ही निकालूँगी इस हरामखोर को ...!” लेकिन जब वो आई तो सिर और हाथ पर पट्टी बंधी देख कर उनका ग़ुस्सा कपूर सा उड़ गया ।

"अरे रामकली क्या हो गया चोट कैसे लगी ... फिर मारा तेरे आदमी ने क्या ? अरे एक फ़ोन तो कर देती हमें !” अनन्या को लगा अब हमेशा की तरह काकी पल्ले से मुँह ढँक कर रोने लगेगी पर वो आराम से बैठ गई।
“बताती हूँ अम्माँ जी ज़रा दम भर लूँ...”!
“अम्माँ जी अब मैं न काम करूँगी, आपके वास्ते इसे लाई हूँ सुसमा को। ये भोत अच्छा काम करेगी मन लगा के !” साथ लाई औरत की तरफ़ इशारा करके बोली ।
“अरे पर हुआ क्या, काम क्यों छोड़ रही है ? दस साल से काम कर रही है अब क्या हुआ ...ये तो बता पहले ?”
"अरे अम्माँ जी का बताएं आप तो जानती ही हो, छोटी बेटी और बेटा के साथ आधी रात तक मर-खप कर चाट बनाती तो वो मरदूद ठेला लगाता और एक पैसा नहीं देता घर में ,सब खाने-पीने में उड़ा देता । ऊपर से नशे में हमसे मार पिटाई सो अलग। मैं सारे दिन घरों में बर्तन घिसूँ हूँ और मेरी फूल सी बच्ची कोठी में बच्चे खिलाने का काम करे है तब जाकर चार पैसे आवे हैं मरा उसमें से भी हड़प लेवे हा मार-पीट के !”
"अरे मेरी बहुरानी ज़रा पानी तो पिला दो !” पल्लू से आँखें पोंछ कर बोली।अनन्या ने पानी लाकर दिया तो एक साँस में पानी पी गई," जीती रहो बहू ,सुहाग बना रहे!”
"पर अम्माँ जी दस दिन हुए बदजात,कमीने ने हद्द ही कर दी ! “ फिर इधर- उधर देख कर आवाज़ धीमे कर फुसफुसा कर बोली-" कुत्ता नशे में बिटिया की रज़ाई में घुस गया । बस अम्माँ जी मुझसे न रहा गया मैंने डंडा उठा कर अच्छी तरह ठुकाई लगा दी। उस कमीने ने इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि मेरा भी सिर फट गया हाथ पैर में भी चोटें आईं ! बिटिया ने पुलिस को फ़ोन कर दिया ! अब मरा हवालात में बन्द है ! हमने सोच लिया है अम्माँ जी चाहें जो हो बस अब घर में न घुसने देंगे ! मैं और अमित अब खुद ठेला लगाएँगे ! बस दो-चार दिन में जरा जान आ जाए ! आपके पास मेरा फ़ोन नं० है न अम्माँ जी कोई पार्टी हो तो हमें बुलाना हम पार्टी का भी आडर लेंगे, अपने जानने वालों को भी बताना वो किटी पार्टी का भी ऑडर दिलाना.. बहू रानी तुम भी कहना अपनी सबसे ...अब हम चाऊमीन भी बनाएंगे ...!”
"राम-राम कैसा वक्त आ गया है कलजुग ही है, तूने ठीक किया अब जमानत मत करवाना सड़ने दे जेल में !” कह कर अम्माँ जी ने नई कामवाली का इंटरव्यू लेना शुरु कर दिया ।

जब वो अपना हिसाब करके जाने लगी तो अनन्या पीछे से दरवाज़ा बन्द करने गई और चुपके से उसके हाथ में पाँच सौ का नोट थमा दिया ! " काकी मिलने आती रहना और अपना ध्यान रखना !” कहते-कहते उसका गला भर आया | काकी की बहुत ममता थी उस पर खूब आशीष देती थीं ।
" हाँ बहू रानी अब अकल आ गई अब कुछ न बिगाड़ पाएगा मुआ मेरा !”
इधर- उधर देख धीरे से कान पर झुक कर फुसफुसा कर बोलीं," बहूरानी यही रीत है जग की, दबे को ही दबाए जाए है दुनिया ...सीना तान के खड़े हो जाओ एक बेरी तो सेर भी पूँछ दबा ले है ,बस बेटा जब जागो तभी सवेरा!”
"खुस रहो... साल भर में गोद में चाँद सा बेटा खेले !” आशीष देती वो चली गई और उसके शब्दों को बहुत देर कर अनन्या मन ही मन मथती रही।कभी- कभी जैसे ईश्वर ही अँधियारे में किसी माध्यम से कोई राह सुझा देते हैं ।

कई दिनों से लगातार मम्मी बुला रही थीं," बिन्नो चक्कर लगाय जाओ अब कई महिना होय गए और देखो बगीचा में सीताफल भी पक रहे हैं, अबकी खूब फल आओ है। तुमारे पापा भी कल याद कर रए थे कि बिन्नो बहुत दिनन से आई नईं...!”

सौरभ को मना कर उसके साथ वो कुछ दिन के लिए चली गई थी ।सुबह ही बगीचे में चिडि़यों की चहचहाहट और पापा के रामायण-पाठ की मन्द गुनगुनाहट से उसकी आँखें खुल गईं। पूजा घर से अगरबत्ती की सुगन्ध आ रही थी।सौरभ गहरी नींद सो रहे थे।

अनन्या चाय का कप लेकर बगीचे में ही चली गई ।पापा ने चश्मे से उसे देख कर पाठ करते- करते ही झूले पर पास आकर बैठने का इशारा किया।सुबह की शीतल, सुगन्धित बयार, तरह-तरह की चिड़िएं आम, जामुन, बेर, नीबू, सीताफल, आंवले, अमरूद के पेड़ों पर फुदक-फुदक कर चहचहा रही थीं। खूब सारे गुलाब, चम्पा, मोंगरे, कुन्द, रात की रानी, हरसिंगार के फूलों की सुवास और रामायण की चौपाइयों से बगीचे में अलौकिक प्रभाव छाया हुआ था ।

उसका मन पुलकित हो गया। वो ही घर-आंगन जिसमें बेटी जन्म लेती है, पलती-बढ़ती है शादी के बाद उसके लिए मन्दिर सा पावन हो जाता है ।उसकी ममतामयी शीतल बयार मायके आई बेटी का सारा ताप-पीड़ा हर, नव-जीवन का संचार कर देती है। इसी बगीचे में जाने कितने पेड़ उसके हाथों लगाए हुए थे। पापा जब भी कोई पौधा लाते तो अनन्या के हाथों से ही लगवाते थे।बचपन से ही पापा के साथ इस झूले पर बैठ जाने कितनी कहानिएं सुनी हैं,जाने कितनी बार रामायण का पाठ किया है, पापा की गोद में बैठ रो-रोकर मम्मी और भाइयों की शिकायतें की है, सहेलियों के साथ मस्ती की है, सावन की मल्हारें गाई हैं।

जमीन पर बिछे हरसिंगार के फूलों को हथेलियों में सहेज कर वह झूले पर आ बैठी।पापा अयोध्याकान्ड का सस्वर पाठ कर रहे थे साथ में भावार्थ भी पढ़ते जाते थे-
`अस अभिलाषु नगर सब काहू। कैकयसुता हृदयँ अति दाहू।
को न कुसंगति पाइ नसाई। रहइ न नीच मतें चतुराई।’
नगर में सबकी ऐसी ही अभिलाषा है, परन्तु कैकेयी के हृदय में बड़ी जलन हो रही है। कुसंगति पाकर कौन नष्ट नहीं होता। नीच के मत के अनुसार चलने से चतुराई नहीं रह जाती।

पापा ने मोरपंख लगा कर रामायण बन्द कर मम्मी को आवाज लगाई, "सुनो चाय दे जाना जरा दो कप और वो बिस्कुट भी लाना !”

"पापा पता है मैं नौएडा में सबसे ज्यादा ये बगीचा ही मिस करती हूँ ! “अनन्या हाथ में थामे फूलों को सूँघते हुए बोली।
“हाँ बेटा इस बार बहुत दिन बाद आई ... सौरभ बेटा की तबियत कैसी है अब ... घर में सब कैसे हैं ?
"अब बिल्कुल ठीक हैं पापा, घर में भी सब ठीक हैं !”

"पापा एक बात बताओ किसी को बिना हराए कैसे जीता जा सकता है ?” अनन्या कुछ देर बाद सोच कर बोली उसके हर सवाल का जवाब पापा के पास होता था बचपन से ही, तो आज घुमा कर मन की उलझन मुस्कुरा कर पूछ बैठी ।सीधे कह कर दुखी भी नहीं करना चाहती थी। उसके मन में अम्माँ के प्रति बहुत करुणा व ममता थी वो उनका दिल जीतना चाहती है पर उन्होंने अपने हृदय के कपाट बन्द कर रखे थे चाह कर भी कोई खिड़की उसे नज़र नहीं आती थी ।सौरभ भले ही कुछ न कहें पर उनको भी इस बात का दुख रहता ही था।भाभी से भी संबंध मधुर बनाना चाहती है, पर वो हमेशा उसको शतरंजी चालों में लपेटती रहती हैं ।

"बेटा तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर है ।जहाँ हराना नहीं तो वहाँ जीत का भी कोई मतलब रह नहीं जाता। और जहाँ हार- जीत नहीं वहाँ लड़ाई भी कैसी ? फिर कुछ सोच कर बोले "बेटा ऐसे भी कह सकते हैं कि हार पहले ही मान लो तो जीत तो तुम गए ही ।कहते हैं न `हारे को हरिनाम'... हमारा अहंकार ही हमें जीतने नहीं देता! हमें अपमान इसीलिए तो महसूस होता है क्योंकि हम मान चाहते हैं, अगर मान ही न चाहो तो अपमान कैसा ?” फिर कुछ रुक कर बोले "और बेटा अगर लगे कभी कि हमारे बस कुछ नहीं तो दूसरी तरफ भी देखना चाहिए ईश्वर कोई इशारा देते जरूर हैं !”

मम्मी दो कप चाय और आटे के बिस्किट लेकर आ गईं तब तक ,"बिन्नो जे तुमाए आने की खबर पाते ही तुमाए पापा जाकर बनवा कर लाए कनस्तर भरके, तुमको बहुत पसन्द हैं ताई से !”
"अरे वाह मम्मी मेरे साथ भी रख देना थोड़े से !” बिस्किट कुतरते हुए बोली।
“हाँ-हाँ जरूर, अब जे बताओ तुम खाने में का बनाएं ... दामाद जी की पसन्द का कुछ बताओ?”
"अच्छा मम्मी दामाद जी की पसन्द... और हमारी पसन्द का क्या? “अनन्या ने मम्मी को छेड़ा फिर बोली," तुम आज बेसन की सब्जी और लहसुन की चटनी बनाओ, महिनों से नहीं खायी, सौरभ को भी जरूर पसन्द आएगी मम्मी !”
"चलो तो ठीक है... दामाद जी भी उठ गए शायद ,देखें जाकर... बिन्नो तुम भी आ जाओ देखो कछु चाहिए हो तो ?”

खाने में टमाटर और प्याज वाली पतली बेसन की सब्जी, लहसुन की चटनी, पनिया अचार, प्याज देख कर अनन्या की भूख भड़क उठी।
“अरे वाह... सौरभ देखो इसको खाने का तरीका ये है थाली में रोटी बिछा कर ऊपर ये सब्जी उड़ेल दो, और ये चम्मच रख दो उधर अब हाथ से मींड कर इस तरह खाओ साथ में प्याज और ये पनिया अचार कुतरते जाओ “अनन्या मजे लेकर उंगलियाँ चाट कर खाती जा रही थी और सौरभ को भी सिखाती जा रही थी। सौरभ भी हँस-हँस कर अनन्या की तरह मीड कर खाने की कोशिश कर रहे थे !
"अरे वाह मम्मी ये सब्जी मैंने पहली बार खाई है बहुत टेस्टी है वाकई और ये चटनी भी लाजवाब है !” सौरभ प्याज कुतरते हुए बोले ।अनन्या ने देखा पापा-मम्मी के चेहरे खुशी से चमक रहे थे।

अनन्या दिन भर में कई बार बगीचे के झूले पर आकर बैठ जाती और चिड़ियों, फूलों को निहारती, झूलती हुई गुनगुनाती रहती या कुछ न कुछ टूंगती रहती। सुबह ही नहा धोकर वो झूले पर आ बैठी थी। सौरभ भी आकर झूले पर बैठ गये! आन्तरिक उल्लास,बेफिक्री से अनन्या का सौन्दर्य द्विगुणित होकर दमक रहा था। हरसिंगार के फूलों का गजरा बना कर उसने अपने बालों में टाँक लिया था। भीगे सुगन्धित लम्बे बाल पीठ पर पड़े झूले की गति के साथ झूम रहे थे। एक पैर से जमीन पर हल्का सा टेक दे वो हल्के-हल्के झूलती अपनी ही धुन में गुम धीमे-धीमे गुनगुना रही थी पेड़ों से छन कर आती सुबह की सुनहरी धूप उसके चेहरे से अठखेलियाँ कर रही थी ।किसी मुग्ध वनकन्या सी धीरे-धीरे गुनगुनाती,अपने-आप में गुम अनन्या के अलौकिक सौन्दर्य का यह रूप नवीन था सौरभ के लिए। अनन्या की तरफ मुग्ध भाव से देख हाथ पकड़ बहुत कोमल स्वर में बोले, "अनन्या तुम यहाँ कितनी खुश रहती हो वहाँ क्यों नहीं रहतीं ऐसी ही?”
अनन्या ने खामोशी से सौरभ को देखा और कोई जवाब नहीं दिया बस मस्ती से गुनगुनाती रही-
"निमिया तले डोला रख दे मुसाफ़िर ,आई सावन की बहार रे...”

सैटरडे-सन्डे की छुट्टियों में दोनों भाई भी सपरिवार आ गए थे ।घर में खूब रौनक हो गई।अनन्या कभी भाइयों संग बतियाती,कभी भाभियों संग चुहल करती और कभी भतीजे, भतीजियों संग मस्ती करती, खेलती तो कभी कहानी सुनाती ।भाभियों की कढ़ाई भी चढ़ी ही रहती कोई न कोई व्यन्जन बनता ही रहता।सौरभ के खूब लाड़-चाव हो रहे थे। सौरभ भी पापा के संग और भाइयों के संग खूब बातों में व्यस्त थे।

हंसी-खुशी में सबसे बात करते, सहेलियों के साथ शॉपिंग व मस्ती करते, खाते-पीते, गाने-गाते दस दिन कब गुजर गए अनन्या को पता ही नहीं चला। सौरभ का स्वास्थ्य भी जगह चेंज होने से पहले से बेहतर लग रहा था।लौटते समय मम्मी ने अपने हाथ से बना कर खूब सारे गोंद के लड्डू, मठरी, आटे के बिस्किट, अचार, मुरब्बे और घर भर के लिए कपड़े साथ बाँध दिए थे। लौटते समय गेट पर खड़े हाथ हिलाते पापा मम्मी को दूर तक मुड़-मुड़ कर देखती अनन्या का मन भारी हो गया था और आँखें नम।

दो महिने बाद नौएडा में ही सौरभ का नया जॉब लग गया अनन्या ने सुकून की साँस ली।
एक दिन सौरभ की बहन मनीषा को देखने लड़के वाले आए तो मुम्बई वाले चाचा जी का दिया महँगा वाला टी सैट निकाला गया ।कबूतर के पंखों से नाज़ुक, पतले, चौड़े, गुलाबी और सुनहरे बेल-बूटों वाले ख़ूबसूरत कपों और पूरे सैट को धो-पोंछ कर अनन्या ने मेहमानों के जाने के बाद संभाल कर डिब्बे में रख दिया, पर जैसे ही अलमारी में ऊपर रखने के लिए उठाने लगी गत्ते का डिब्बा नीचे से धसकता सा लगा तो उसने संभाल कर वापिस नीचे ही अलमारी में रख दिया।

"बात सुनो टी सैट का डिब्बा टूट सा रहा है तो मुझे कल दूसरा ला देना उसे बदल दूँगी! “उसने कमरे में आते ही सौरभ से कहा ।
"ठीक है कल ला दूँगा याद दिला देना!”

सुबह ही बड़े ज़ोर के शोर से चौंक कर अनन्या व सौरभ की नींद टूटी।सभी ज़ोर- ज़ोर से एक साथ चिल्ला रहे थे। अनन्या और सौरभ हड़बड़ा कर कमरे से बाहर भागे। टी सैट टुकड़े- टुकड़े हुआ फ़र्श पर पड़ा था सभी लोग ग़ुस्से से अनन्या को ही घूरने लगे भाभी, भैया, मनीषा और अम्माँ जी सब उसे ही दोष दे रहे थे कि उसने सैट का डिब्बा उठा कर ऊपर क्यों नहीं रखा? अनन्या एक पल को स्तम्भित सी खड़ी सौरभ को देखने लगी कि शायद वो कुछ कहेंगे पर हमेशा की तरह वे मौन साधे थे।

“अरे! मैंने यूँ ही पड़ा देखा तो कहा लाओ मैं ही रख दूँ ऊपर, बस मरे मेरे बूढ़े हाथों से फिसल गया। छोटी बहू क्यों नहीं रखा तुमने उठा कर ऊपर ... हद्द होती है लापरवाही की भी ! “अम्मा जी ने उसे ज़ोर से ग़ुस्से से डाँटा।

"अरे पर आपने क्यों उठाया ? वो डिब्बा नीचे से टूट रहा था इसी से तो हमने ऊपर नहीं रखा। हमने तो कहा भी था इनसे कि हमें दूसरा डिब्बा ला देना कल बदल देंगे “बहुत इत्मिनान व शान्ति से कह कर अनन्या बाथरूम में घुस गई पर उसके कान बाहर की सरगोशियों पर ही टिके थे।

सब हैरानी से एक दूसरे का मुँह देखते रह गए।हमेशा की तरह गल्ती होने पर, डाँट खाने पर मुँह छिपा कर रोने वाली अनन्या का ये नया ही रूप था।
"अरे! कितने आराम से कह कर चल दीं महारानी जैसे कुछ हुआ ही नहीं! “बड़बड़ाती हुई भाभी झाड़ू लेकर सैट की किर्चें बुहारने लगीं। बाक़ी सब लोग भैया, मनीषा, अम्माँ सैट के ऊपर कुछ देर तक मर्सीहा पढ़ते रहे ।
"हद्द है... बताओ कितना मँहगा था।”
"अब तो मिलेगा भी नहीं इतनी फ़ाइन पेपर जैसी बोन चाइना अब कहाँ आती है?”
"च् च् च् कितनी सुन्दर शेप थी... जे चौड़े -चौड़े कप अब कहाँ मिले हैं मरे!”

वो सैट अनन्या को भी बहुत पसंद था। दुख उसे भी बहुत हो रहा था पर ऊपर से वो एकदम सहज भाव से सबका नाश्ता बनाती रही जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसको ये अच्छी तरह समझ में आ गया था कि वो लड़ नहीं सकती तो हार-जीत से परे कोई और समाधान ढूँढना ही होगा।

अनन्या को सहसा ध्यान आया कि मोनू को पढ़ाने जो दीप्ति आती है उसने एक दिन उससे कहा था "भाभी आपने संस्कृत में एम.ए. और एम.एड. किया है न? यदि आप जॉब करने में इंट्रेस्टेड हों तो मेरे कॉलेज में वैकेन्सी है, उनको संस्कृत में एम.ए., एम.एड. कैंडिडेट चाहिए, पेपर में भी एड दिया था!” उस समय अनन्या ने कह दिया था कि सोच कर बताती हूँ लेकिन उसके बाद घर में ज़िक्र करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी।

कुछ सोच कर उसने दीप्ति को कॉल किया, "दीप्ति तुम कह रही थीं कि तुम्हारे स्कूल में कोई वैकेन्सी है उस पर एपॉइन्टमेन्ट हो गया क्या ?”
"नहीं भाभी उनको कोई क्वालिफ़ाइड कैंडिडेट अभी नहीं मिला है।”
"तुम प्लीज़ कल मेरी एप्लिकेशन ले जाना !”कह कर अनन्या को सुकून सा तो मिला पर जानती थी ये कोई आसान काम नहीं है।

जब अनन्या ने एप्लाई किया तो घर में काफ़ी हलचल मची थी ।
"जो औरतें नौकरी करती हैं उनके बच्चे हाथ से निकल जाते हैं पति भी भटक जाते हैं और ऐसी भी क्या आफ़त है ,लग तो गई है सौरभ भैया की जॉब... इतनी क्या हाय-माया है पैसों की ?”
भाभी ने उपदेश पिलाया तो अम्माँ जी ही कैसे पीछे रहतीं घुटने पर तेल मलती बोलीं -
"बहू हमारे भरोसे तो मत रहना भई तुम्हारे बच्चों के गू-मूत हमसे न होंगे अब इस उम्र में!”
"अरे अम्माँ जी अभी कहाँ हैं बच्चे ? और जब होंगे तब देखा जाएगा ! अभी तो एप्लाई कर रही हूँ देखो लगती भी है या नहीं !”कह कर वो अपने कमरे में चली गई।
"अरे भैया! इनके तो लच्छन अभी से कुछ बदलते लग रहे हमें!” भाभी की फुसफुसाहट पीछे-पीछे उसके कानों तक पहुँच गई थी... अनसुना कर वह बहुत सावधानी से अपना फ़ॉर्म भरने बैठ गई ।

"अच्छा सुनो कल कॉलेज में मेरा इंटरव्यू है तो तुम ऑफिस जाने से पहले मुझे छोड़ देना प्लीज उधर से रिक्शे से आ जाऊँगी ! दीप्ति कह रही थी कि जॉब तो लगी ही है समझो बस इंटरव्यू की फॉरमेल्टी ही है ! उनको कोई क्वालिफाइड कैंडिडेट मिल ही नहीं रहा है !”अनन्या ने सोने से पहले सौरभ से हिम्मत कर कहा ।
"अरे तुम सोच लो, मैं जानता हूँ अम्माँ को अच्छा नहीं लगेगा !”
"हाँ तो अच्छी तो मैं भी नहीं लगती उनको तो क्या करें ,फिर बताओ क्या करें!”
झुँझला पड़ी थी अनन्या। सौरभ में और सभी गुण थे, वो जान छिड़कते थे उस पर लेकिन अब वो यह अच्छी तरह जान गई थी कि अपने लिए उसे खुद ही खड़ा होना होगा और उसके लिए भावुकता छोड़ कर मजबूत और बोल्ड बनना ही होगा और कोई उपाय नहीं है ।

"तुमको याद है न सौरभ मैंने शादी से पहले ही तुमको बता दिया था कि मैं जॉब करूँगी और तुमने कहा था कि तुम कभी ऐतराज़ नहीं करोगे ...तो फिर अब ये क्यों ?”अनन्या ने सायास आवाज को तल्ख बना कर कहा।
"अरे मुझे कोई एतराज़ नहीं पर अम्माँ...!” अनन्या ने घूर कर उसकी तरफ देखा तो सौरभ ने करवट लेकर चादर ऊपर तक खींच ली ।

सुबह ही अनन्या तैयार होकर सौरभ के साथ स्कूटर पर कमर में हाथ डाल कर सट कर बैठ गई ।उसने सिर से पल्लू हटा कर कमर में खोंस लिया । स्कूटर चलाते सौरभ सोच रहे थे बात-बात पर रोने-बिसूरने वाली अनन्या इस एक साल में कितनी बदल गई है ।

ठंडी ताज़ी हवा के झोंके अनन्या के खुले बालों से अठखेलियाँ कर रहे थे पर उसने उनको कान के पीछे नहीं समेटा यूँ ही गालों पर उन्मुक्त अठखेलियाँ करने दिया।

"ज़िंदगी इतनी भी मुश्किल नहीं ! “परम संतुष्टि का भाव जाने कहाँ से आकर चुपके से अनन्या के कान में फुसफुसा गया। आत्मविश्वास से प्रदीप्त उसके चेहरे पर गुनगुनी धूप सी मुस्कान चुपके से पसर गई ...।

-इति

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