असंकलित रचनाएँ - जावेद अख़्तर हिंदी कविता Misc. Poetry Javed Akhtar

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जावेद अख़्तर हिंदी कविता -असंकलित रचनाएँ
Javed Akhtar -Misc. Poetry

1. नया हुकुमनामाकिसी का हुक्म है सारी हवाएं - Javed Akhtar

हमेशा चलने से पहले बताएं,
कि इनकी सम्त क्या है।
हवाओं को बताना ये भी होगा,
चलेंगी जब तो क्या रफ्तार होगी,
कि आंधी की इजाज़त अब नहीं है।

हमारी रेत की सब ये फसीलें,
ये कागज़ के महल जो बन रहे हैं,
हिफाज़त इनकी करना है ज़रूरी।
और आंधी है पुरानी इनकी दुश्मन,
ये सभी जानते हैं।
किसी का हुक्म है दरिया की लहरें,
ज़रा ये सरकशी कम कर लें अपनी,
हद में ठहरें।
उभरना, फिर बिखरना, और बिखरकर फिर उभरना,
गलत है उनका ये हंगामा करना।
ये सब है सिर्फ वहशत की अलामत,
बगावत की अलामत।
बगावत तो नहीं बर्दाश्त होगी,
ये वहशत तो नहीं बर्दाश्त होगी।
अगर लहरों को है दरिया में रहना,
तो उनको होगा अब चुपचाप बहना।
किसी का हुक्म है इस गुलिस्तां में,
बस अब एक रंग के ही फूल होंगे,
कुछ अफसर होंगे जो ये तय करेंगे,
गुलिस्तां किस तरह बनना है कल का।
यकीनन फूल यकरंगी तो होंगे,
मगर ये रंग होगा कितना गहरा कितना हल्का,
ये अफसर तय करेंगे।
किसी को कोई ये कैसे बताए,
गुलिस्तां में कहीं भी फूल यकरंगी नहीं होते।
कभी हो ही नहीं सकते।
कि हर एक रंग में छुपकर बहुत से रंग रहते हैं,
जिन्होंने बाग यकरंगी बनाना चाहे थे, उनको ज़रा देखो।
कि जब यकरंग में सौ रंग ज़ाहिर हो गए हैं तो,
वो अब कितने परेशां हैं, वो कितने तंग रहते हैं।
किसी को ये कोई कैसे बताए,
हवाएं और लहरें कब किसी का हुक्म सुनती हैं।
हवाएं, हाकिमों की मुट्ठियों में, हथकड़ी में, कैदखानों में नहीं रुकतीं।
ये लहरें रोकी जाती हैं, तो दरिया कितना भी हो पुरसुकून, बेताब होता है।
और इस बेताबी का अगला कदम, सैलाब होता है। किसी को कोई ये कैसे बताए।

2. हर ख़ुशी में कोई कमी-सी हैहर ख़ुशी में कोई कमी-सी है - Javed Akhtar

हँसती आँखों में भी नमी-सी है

दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है

किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है

ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है

कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है

हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है

Javed-Akhtar

3. जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गयाजाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया - Javed Akhtar

उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया

उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया

ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया

4. कभी यूँ भी तो हो कभी यूँ भी तो हो - Javed Akhtar

दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें

कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से

कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो

5. मैंने दिल से कहामैंने दिल से कहा - Javed Akhtar

ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला
तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या
है ये क्या सिलसिला
ऐ दीवाने बता

मैंने दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
धड़कनों में छुपी
कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है
कैसा ये साज़ है
कैसी ये बात है
कैसा ये राज़ है
ऐ दीवाने बता

मेरे दिल ने कहा
जब से कोई मिला
चाँद तारे फ़िज़ा
फूल भौंरे हवा
ये हसीं वादियाँ
नीला ये आसमाँ
सब है जैसे नया
मेरे दिल ने कहा

6. तमन्ना फिर मचल जाए - Javed Akhtar

अगर तुम मिलने आ जाओतमन्‍ना 
फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्‍से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

7. आप भी आइए हमको भी बुलाते  - Javed Akhtar

रहिएआप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्तीआ ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।

ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्मप भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।

वक्तम ने लूट लीं लोगों की तमन्नातएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।

शक्ला तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।

8. अब अगर आओ तो जाने के - Javed Akhtar

लिए मत आनाअब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना

प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना

9. क्‍यों डरें ज़िन्‍दगी में क्‍या होगा - Javed Akhtar

क्‍यों डरें ज़िन्‍दगी में क्‍या होगा
कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा

हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा

इन दिनों ना-उम्‍मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा

देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्‍या किसी ने तुम्‍हें छुआ होगा

10. इक पल गमों का दरिया - Javed Akhtar

इक पल खुशी का दरियाइक पल 
गमों का दरिया, इक पल खुशी का दरिया
रूकता नहीं कभी भी, ये ज़िन्द गी का दरिया

आँखें थीं वो किसी की, या ख़्वाब की ज़ंजीरे
आवाज़ थी किसी की, या रागिनी का दरिया

इस दिल की वादियों में, अब खाक उड़ रही है
बहता यहीं था पहले, इक आशिकी का दरिया

किरनों में हैं ये लहरें, या लहरों में हैं किरनें
दरिया की चाँदनी है, या चाँदनी का दरिया

11. कुछ मेरी सुनो - Javed Akhtar

कुछ अपनी कहोकुछ मेरी सुनो, 
कुछ अपनी कहो
हो पास तो ऐसे चुप न रहो
हम पास भी हैं, और दूर भी हैं
आज़ाद भी हैं, मजबूर भी हैं
क्यों प्यार का मौसम बीत गया
क्यों हम से ज़माना जीत गया
हर घड़ी मेरा दिल गम के घेरे में है
जिंदगी दूर तक अब अंधेरे में है
सो गयीं हैं सारी मंज़िलें सो गया है रस्ता

12. ज़रा मौसम तो बदला है मगरज़रा - Javed Akhtar

मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों 
पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे
बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है 
कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे

कभी हम को यक़ीं था ज़ो'म था दुनिया 
हमारी जो मुख़ालिफ़ है तो हो जाए मगर तुम मेहरबाँ हो
हमें ये बात वैसे याद तो अब क्या है 
लेकिन हाँ इसे यकसर भुलाने में अभी कुछ दिन लगेंगे

जहाँ इतने मसाइब हों जहाँ इतनी परेशानी 
किसी का बेवफ़ा होना है कोई सानेहा क्या
बहुत माक़ूल है ये बात लेकिन इस 
हक़ीक़त तक दिल-ए-नादाँ को लाने में अभी कुछ दिन लगेंगे

कोई टूटे हुए शीशे लिए अफ़्सुर्दा-ओ-मग़्मूम 
कब तक यूँ गुज़ारे बे-तलब बे-आरज़ू दिन
तो इन ख़्वाबों की किर्चें हम ने पलकों से 
झटक दीं पर नए अरमाँ सजाने में अभी कुछ दिन लगेंगे

तवहहुम की सियह शब को किरन से 
चाक कर के आगही हर एक आँगन में 
नया सूरज उतारे
मगर अफ़्सोस ये सच है वो शब थी और 
ये सुरज है ये सब को मान जाने में अभी कुछ दिन लगेंगे

पुरानी मंज़िलों का शौक़ तो किस को है 
बाक़ी अब नई हैं मंज़िलें हैं सब के दिल में जिन के अरमाँ
बना लेना नई मंज़िल न था मुश्किल 
मगर ऐ दिल नए रस्ते बनाने में अभी कुछ दिन लगेंगे

अँधेरे ढल गए रौशन हुए मंज़र ज़मीं 
जागी फ़लक जागा तो जैसे जाग उट्ठी ज़िंदगानी
मगर कुछ याद-ए-माज़ी ओढ़ के सोए हुए 
लोगों को लगता है जगाने में अभी कुछ दिन लगेंगे

13. कुछ शेर(1) - Javed Akhtar

पुरसुकूं लगती है कितनी झील के पानी पे बत
पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए।

(2)
जो दुश्मनी बखील से हुई तो इतनी खैर है
कि जहर उस के पास है मगर पिला नहीं रहा।

(3)
बहुत आसान है पहचान इसकी
अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है

(4)
फिर वो शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में

(5)
जो मुंतजिर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में।

(6)
मेरा आँगन कितना कुशादा कितना बड़ा था
जिसमें मेरे सारे खेल समा जाते थे

(बत=बतख, कुशादा=फैला हुआ)


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