सीहरफ़ियां बाबा बुल्ले शाह Siharfian Baba Bullhe Shah in Hindi

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सीहरफ़ियां बाबा बुल्ले शाह
Siharfian Baba Bullhe Shah in Hindi


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    पहली सीहरफ़ी

    लागी रे लागी बल बल जावे।
    इस लागी को कौन बुझावे।

    अलफ़-

    अल्ल्हा जिस दिल पर होवे, मूंह ज़रदी अक्खीं लहू भर रोवे,
    जीवन आपने तों हत्थ धोवे, जिस नूं बिरहों अग्ग लगावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    बे-

    बालन मैं तेरा होई, इशक नज़ारे आण वगोई,
    रोंदे नैन ना लैंदे ढोई, लून फट्टां ते कीकर लावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ते-

    तेरे संग प्रीत लगाई, जीऊ जामे दी कीती साई,
    मैं बकरी तुध कोल कसाई, कट कट मास हड्डां नूं खावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    से-

    साबत नेहुं लायआ मैनूं, दूजा कूक सुणावां कीहनूं,
    रात अद्धी उट्ठ ठिलदी नैं नूं, कूंजां वांग पई कुरलावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    जीम-

    जहानों होयी सां न्यारी, लगा नेहुं तां होए भिखारी,
    नाल सर्हों दे बने पसारी, दूजा दे मेहने जग्ग तावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    हे-

    हैरत विच शांत नाहीं, ज़ाहर बातन मारन ढाईं,
    झात घत्तन नूं लावन वाहीं, सीने सूल प्रेम दे धावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ख़े-

    ख़ूबी हुन उह ना रहिया, जब की सांग कलेजे सहिया,
    आईं नाल पुकारां कहियां, तुध बिन कौन जो आण बुझावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    दाल-

    दूरों दुक्ख दूर ना होवे, फक्कर फ़राकों बहुता रोवे,
    तन भट्ठी दिल खिल्लां धनोवे, इशक अक्खां विच मिरचां लावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ज़ाल-

    ज़ौक दुनियां ते इतना करना, ख़ौफ़ हशर दे थीं ड्रना,
    चलना नबी साहब दे सरना, ओड़क जा हिसाब करावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    रे-

    रोज़ हशर कोयी रहे ना ख़ाली, लै हिसाब दो जग्ग दा वाली,
    ज़ेर ज़बर सभ भुल्लन आली, तिस दिन हज़रत आप छुडावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ज़े-

    ज़ुहद कमायी चंगी करीए, जेकर मरन तों अग्गे मरीए,
    फिर मोए भी उस तों ड्रीए, मत मोयां नूं पकड़ मंगावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    सीन-

    साईं बिना जा ना कोई, जित वल वेखां ओही ओही,
    होर किते वल मिले ना ढोई, मुरशद मेरा पार लंघावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    शीन-

    शाह इनायत मुरशद मेरा, जिस ने कीता मैं वल फेरा,
    रुक्क ग्या सभ झगड़ा झेड़ा, हुन मैनूं भरमावे तावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    सुआद-

    सबर ना आवे मैनूं खल्ल्ही वसत बाज़ार,
    कासद लै के विद्या होया जा वड़्या दरबार,
    अग्गों मिल्या आइ के उहनूं सोहना शेर सवार,
    रसते विच अंगुशतरी आही इह वी दिल बहलावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ज़ुआद-

    ज़रूरी याद अल्ल्हा दी करे सवाल रसूल,
    नव्वे हज़ार कलाम सुणायी पई दरगाह कबूल,
    इह मजाज़ी ज़ात हकीकी वासल वसल वसूल,
    फ़ारग़ हो के हज़रत ओथे आवे खाना खावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    तोए-

    तलब दीदार दी आही कीता करम सत्तार,
    जलवा फेर इलाही दित्ता हज़रत नूं गफ़्फ़ार,
    हत्थ नूरानी ग़ैबों आवे मुन्दरी दा चमकार,
    बुल्ल्हा खलक मुहंमदी कीतो तां इह की कहावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ज़ोए-

    ज़ाहर मालूम ना कीता होया दीदार बलावे,
    रल के सईआं खाना खाधा ज़रा अंत ना आवे,
    उह अंगूठी आप पछाती आपनी आप जतावे,
    बुल्ल्हा हज़रत रुख़सत हो के आपने यार सुहावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ऐन-

    अनायत उलफ़त होयी सुनो सहाबों यारों,
    जेहड़ा जप ना करसी हज़रत झूठा रहे सरकारों,
    फेर शफ़ाअत असां है करनी साहब दे दरबारों,
    बुल्ल्हा किबर ना कर दुनियां ते इक्का नज़री आवे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    ग़ैन-

    ग़ुलाम ग़रीब तुसाडा ख़ैर मंगे दरबारों,
    रोज़ हशर दे ख़ौफ़ सुणेंदा सद्द होसी सरकारों,
    कुल ख़लायक तलख़ी अन्दर सूरज दे चमकारों,
    बुल्ल्हा असां भी ओथे जाना जित्थे ग्या ना भावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?
    फ़े-
    फ़कीरां फ़िकर जो कीता विच दरगाह इलाही,
    शफ़िय मुहंमद जा खलोते जित्थे बेपरवाही,
    नेड़े नेड़े आ हबीबा इह मुहब्बत चाही,
    खिरका पहन रसूल अल्ल्हा दा सिर ते ताज लगावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    कुआफ़-

    कलम ना मिटे रब्बानी जो असां पर आई,
    जो कुझ भाग असाडे आहे उह तां मुड़दे नाहीं,
    बाझ नसीबों दाअवे केडे बन्न्हे कुल ख़ुदाई,
    बुल्ल्हा लोह महफूज़ ते लिख्या ओथे कौन मिटावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    काफ़-

    कलाम नबी दी सच्ची सिर नबियां दे साईं,
    सूरत पाक नबी दी जेहा चन्द सूरज भी नाहीं,
    हीरे मोती लाल जवेहर पहुंचे ओथे नाहीं,
    मजलस ओस नबी दी बह के भुल्ला कौन कहावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    लाम-

    ला इल्ल्हा दा ज़िकर बतायो, इलइला इसबात कराओ,
    मुहंमद रसूल-अल्ल्हा मेल करायो, बुल्ल्हा इह तोहफा आदम नूं आवे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    मीम-

    मुहंमदी जिसम बणायो, दाख़ल विच बहशत कराओ,
    आपे मगर शैतान पुचायो, फेर ओथों निकल आदम आवे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    नून-

    निमाना हो मुजरम आया, कढ्ढ बहशतों ज़मीं रुलायआ,
    आदम हव्वा जुदा करायआ, बुल्ल्हा आप विछोड़ा पावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?
    वा-
    वाह वाह आप मुहंमद आपनी आदम शकल बणावे,
    आपे रोज़ अज़ल दा मालिक आपे शफीह हो आवे,
    आपे रोज़ हशर दा काज़ी आपे हुकम सुणावे,
    आपे चा शिफायत करदा आप दीदार करावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?
    हे-
    हौली बोलीं एथे भायी मत कोयी सुने सुणावे,
    वड्डा अज़ाब कबर दा दिस्से जे कोयी चा छुडावे,
    पुलसरात दी औखी घाटी उह वी ख़ौफ़ ड्रावे,
    रख उमैद फ़ज़ल दी बुल्ल्हआ अल्ल्हा आप बचावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    लाम-

    लाहम ना कोयी दिस्से कित वल कूक सुणावां,
    जित वल्ल वेखां नज़र ना आवे किस नूं हाल विखावां,
    बाझ पिया नहीं कोयी हामी, होर नहीं कोयी थांवां,
    बुल्ल्हा मल दरवाज़ा हज़रत वाला उह ई तैं छुडावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    अलफ-

    इकल्ला जावें एथों वेखन आवन ढेर,
    साहां तेर्यां दी गिणती एथे आई होयी नेड़,
    चल शताबी चल वड़ बुल्ल्हआ मत लग्ग जावे डेर,
    पकड़ीं वाग रसूल अल्ल्हा दी कुझ जित्थों हत्थ आवे।
    इस लागी को कौन बुझावे?
    ये-
    यारी हुन मैं लाई, अगली उमरा खेड वंजाई,
    बुल्ल्हा शौह दी ज़ात ई आही, कलमा पड़्हद्यां जिन्द लिजावे,
    लागी रे लागी बल बल जावे।
    इस लागी को कौन बुझावे?

    दूजी सीहरफ़ी

    अलफ़-

    आपने आप नूं समझ पहले,
    की वसत है तेरड़ा रूप प्यारे।
    बाहझ आपने आप दे सही कीते,
    रेहों विच्च दसउरी दे दुक्ख भारे।
    होर लक्ख उपाउ ना सुक्ख होवे,
    पुच्छे वेख स्याने ने जग्ग सारे।
    सुक्ख रूप अखंड हैं तूं,
    बुल्ल्हा शाह पुकारदा वेद चारे।
    बे-
    बन्न्ह अक्खीं अते कन्न दोवें,
    गोशे बैठ के बात विचारीए जी।
    छड्ड खाहशां जग जहान कूड़ा,
    केहा आरफ़ां दा हिरदे धारीए जी।
    पैरीं पहन ज़ंजीर बेखाहशी दे,
    एस नफ़स नूं कैद कर डारीए जी।
    जान जान दोवें जान रूप तेरा,
    बुल्ल्हा शाह इह ख़ुशी गुज़ारीए जी।
    ते-
    तंग छिदर नहीं विच तेरे,
    जित्थे कक्ख ना इक समांवदा ए।
    डूंढ वेख जहान दी ठौर कित्थे,
    अनहुन्दड़ा नज़रीं आवदा ए।
    जिवें ख़वाब दा ख़्याल होवे सुत्त्यां नूं,
    तर्हां तर्हां दे रूप वखांवदा ए।
    बुल्ल्हा शाह ना तुझ थीं कुझ बाहर,
    तेरा भरम तैनूं भरमांवदा ए।
    से-
    समझ हिसाब कर बैठ अन्दर,
    तूहीं आसरा कुल जहान दा एं।
    तेरे डिट्ठ्यां दिसदा सभ कोई,
    नहीं कोयी ना किसे पछाणदा ए।
    तेरा ख़्याल ई हो हर तर्हां दिस्से,
    जिवें बताल बताल कर जाणदा ए।
    बुल्ल्हा शाह फाहे कौन उडावरे नूं,
    फसे आप आपे फाही ताणदा एं।

    जीम-

    ज्यूना भला कर मन्न्यां तैं,
    डरे मरन थीं इह ग्यान भारा।
    इक तूं एं तूं जिन्द जहान दी हैं,
    घटा कास जो मिले सभ माहें न्यारा।
    तेरा ख़्याल ई होए हर तर्हां दिस्से,
    आदि अंत बाझों लग्गे सदा प्यारा।
    बुल्ल्हा शाह संभाल तूं आप ताईं,
    तूं तां अमर हैं सदा नहीं मरन हारा।
    चे-
    चानना कुल जहान दा तूं,
    तेरे आसरे होया ब्युहार सारा।
    तूईं सभ की आंखों में वेखना एं,
    तुझे सुझ्झदा चानना और अंधारा।
    नित्त जागना सोवना ख़वाब एथे,
    इह ते होए अग्गे तेरे कई वारा।
    बुल्ल्हा शाह प्रकास सरूप तेरा,
    घट वध ना हो तूं एक-सारा।
    हे-
    हरस हैरान कर सुट्या एं,
    तैनूं आपना आप भुलायआ सू।
    बादशाहीउं सुट्ट कंगाल कीते,
    कर लक्ख तों कक्ख विखायआ सू।
    मद मच्चड़े शेर नूं तन्द कच्ची,
    पैरीं पा के बन्न्ह बहायआ सू।
    बुल्ल्हा शाह तमाशड़े होर वेखो,
    लै समुन्दर नूं कुज्जड़ी पायआ सू।
    ख़े-
    ख़बर ना आपनी रखना एं,
    लग्ग ख़्याल दे नाल तूं ख़्याल होया।
    ज़रा ख़्याल नूं स्ट्ट के बेख़्याल हो तूं,
    जिवें होया ओही ग्या नहीं सोया।
    तदों वेख खां अन्दरों कौन जागे,
    नहीं घास में छपे हाथी खलोया।
    बुल्ल्हा शौह जो गले दे विच गहणा,
    फिरें ढूंडदा तिवें तैं आप खोहआ।

    दाल-

    दिलों दिलगीर ना होइउं मूले,
    दीगर चीज़ नापैद तहकीक कीजे।
    अव्वल जा मुहब्बत करो आरफ़ां दी,
    सुख़न तिनहां दे आबे-हयात पीजे।
    चशम जिगर दे मिलन हो रहे तेरे,
    नहीं सूझता तिन्हां कर साफ़ कीजे।
    बुल्ल्हा शाह संभाल तूं आप ताईं,
    तूं एं आप अनन्द में सदा जीजे।

    ज़ाल-

    ज़रा ना शक्क तूं रख दिल ते,
    हो बेशक तूंहें ख़ुद खसम जाईं।
    जिवें सिंघ भुल्लदे बल आपने नूं,
    चरे घास मिल आ जान न्याईं।
    पिछों समझ बल गरज वाजा मारे,
    भ्या सिंघ का सिंघ कुझ भेत नाहीं।
    तैसी तूं भी तर्हां कुछ अबर(ख़बर) धारे,
    बुल्ल्हे शाह संभाल तूं आप ताईं।
    रे-
    रंग जहान दे वेखदा हैं,
    सोहने बाझ विचार दे दिसदे नी।
    जिवें होत हबाब बहु रंग दे जी,
    अन्दर आब दे ज़रा विच दिसदे नी।
    आब ख़ाक आतश बाद बहे कट्ठे,
    वेख अज्ज कि कल विच खिसकदे नी।
    बुल्ल्हा शाह संभाल के वेख खां तूं,
    सुक्ख दुक्ख सभ्भो इस किस दे नी।

    जीम-

    जावना आवना नहीं ओथे,
    कोह वांग हमेश अडोल है जी।
    जिवें बदलां दे तले चन्न चलदा,
    लग्गा बालकां नूं बड्डा भोल है जी।
    चले मन इन्दरी प्रान देह आदिक,
    वोह वेखणेहार अडोल है जी।
    बुल्ल्हा शाह संभाल खुशहाल है जी,
    ऐन आरफ़ां दा इहो बोल है जी।

    सीन-

    सितम करना है जान आपनी ते,
    भुल्ल आप थीं होर कुझ होवना जी।
    सोईयो लिख्या शेर चितरियां ने,
    सच्च जान के बालकां रोवना जी।
    ज़रा मौल नाहीं वेख भुल्ल नाहीं,
    लग्गा चिकड़ों जान क्युं धोवना जी,
    बुल्ल्हा शाह ज़ंजाल नहीं मूल कोई,
    जान बुझ्झ के भुल्ल खलोवना जी।

    शीन-

    शुबा नहीं कोयी ज़रा इस में,
    सदा आपना आप सरूप है जी।
    नहीं ग्यान अग्यान दी ठौर ओहां,
    कहां सूरमें छाउं और धूप है जी।
    पड़ा सेज है माहीं मैं सही सोया,
    कूड़ा सुख़न का रंग अर भूप है जी।
    बुल्ल्हा शाह संभाल जब मूल वेखां,
    ठौर ठौर में अपने अनूप है जी।

    सुआद-

    सबर करना आया नबी उत्ते,
    वेख रंग ना चित डोलाईए जी।
    सदा तुख़म दी तरफ़ निगाह करनी,
    पात फूल के ओर ना जाईए जी।
    जोयी आए और जाए इक रहे नाहीं,
    तां सो कौन दानश जीउं लाईए जी।
    बुल्ल्हा शाह संभाल ख़ुद खंड नाहीं,
    जिस चहे फूल तिसे क्युं खाईए जी।

    ज़ुआद-

    ज़िकर और फ़िकर को छोड़ दीजे,
    कीजो नहीं कुझ यही पछानना एं।
    जा सौं उठ्या ताहीं के बीच डालों,
    होए अडोल वेखे आप चानना एं।
    सदा चीज़ ना पैद है वेखीए जी,
    मेरे मेरे कर जिया मैं जानना एं।
    बुल्ल्हा शाह संभाल तूं आप ताईं,
    तूं तां सदा अनन्द हैं चानना एं।

    तोए-

    तौर महबूब दा जिन्हां डिट्ठा,
    तिन्हां दूयी तरफों मुक्ख मोड़्या ई।
    कोयी लटक प्यारे दी लुट्ट लीती,
    हटे नहीं ऐसा जी जोड़्या ई।
    अट्ठे पहर मसतान दीवान फिरदे,
    उन्हां पैर आलूद ना बोड़्या ई।
    बुल्ल्हा शाह उह आप महबूब होए,
    शौंक यार दे कुफ़र सभ तोड़्या ई।

    ज़ोए-

    जुदा नाहीं तेरा यार तैं थीं,
    फिरें ढूंडदा किस नूं दस्स मैनूं।
    पहलों ढूंडनेहार नूं ढूंड खां जी,
    पिच्छे पिच्छे परतच्छ गहरे रस तैनूं।
    मत तूं ईं होवें आप यार सभ दा,
    फिरें ढूंडदा जंगलां विच जीहनूं।
    बुल्ल्हा शाह तूं आप महबूब प्यारा,
    भुल्ल आप थीं ढूंडदा फिरें कीहनूं।

    ऐन-

    ऐन है आप बिनां नुकते,
    सदा चैन महबूब वल वार मेरा।
    इक वार महबूब नूं जिन्हां वेखा,
    उह वेखन यार है सभ केहड़ा।
    उस तों लक्ख बहशत कुरबान कीते,
    पहुंचा होए बेग़म चुकाए जेहड़ा।
    बुल्ल्हा शौह हर हाल विच मसत फिरदे,
    हाथी मसतड़े तोड़ ज़ंजीर केहड़ा।

    ग़ैन-

    ग़म ने मार हैरान कीता,
    अट्ठे पहर मैं प्यारे नूं लोड़दी सां।
    मैनूं खावना पीवना भुल्ल ग्या,
    रब्बा मेल जानी हत्थ जोड़दी सां।
    सईआं छड्ड गईआं मैं इकल्लड़ी नूं,
    अंग साक नालों नाता तोड़दी सां।
    बुल्ल्हा शाह जद आप नूं सही कीता,
    तां मैं सुत्तड़े अंग ना मोड़दी सां।
    फ़े-
    फ़िकर कीता सईयो मेरीयो नी,
    मैं तां आपने आप नूं सही कीता।
    कउड़ी वेह से मूंह चुकायआ मैं,
    ख़ाक छान के लाल नूं फूल कीता।
    देख धूएं दे धउलरे जग्ग सारा,
    सट्ट पायआ है जिया ते हार जीता।
    बुल्ल्हा शाह अनन्द अखंड सदा लिख(लक्ख),
    आप ने आब-ए-हयात पीता।

    काफ़-

    कौन जाने जानी जान दे नूं,
    आप जाणनहार इह कुल्ल दा ए।
    पर तुच्छ दे ऊपर मान जेते,
    सिद्ध कीते इस दे नहीं भुल्लदा ए।
    नेयति नेयति कर बेद पुकारदे नी,
    नहीं दूसरा एस दे तुल्ल दा है।
    बुल्ल्हा शाह संभाल जब आप देखा,
    सदा सुहंग प्रकाश होए झुल्लदा ए।

    गाफ़-

    गुज़र गुमान ते समझ बह के,
    हंकार दा आसरा कोयी नाहीं।
    बुद्ध आप संघात चड़्ह वेखीए जी,
    पड़ा काठ पक्खां जिवें भूम माहीं।
    आप आतमा ग्यान सरूप सुत्ता,
    सदा नहीं फिरदा केहड़ा एक जाहीं।
    बुल्ल्हा शाह बबेक बिचार सेती,
    खुदी छोड खुद होए खसम साईं।

    लाम-

    लग्ग आखे जाग खां सोया,
    जान बुझ्झ के दुक्ख क्युं पावना एं।
    ज़रा आप ना हटें बुराईआं तों,
    कढ मसले लोक सुणावणां एं।
    काग विशट जीवन जान तुझे,
    संतां वक्खी मोड़ क्युं चित लुभावना एं।
    बुल्ल्हा शौह उह जानणेहार दिल दा,
    करें चोरियां साध सदावना एं।

    मीम-

    मौजूद हर जा मौला,
    तैसे वेख केहा भेख बणायआ सू।
    जिवें इक ही तुख़म बहु तर्हां दिस्से,
    तूं मैं आपना आप फुलाया सू।
    साह आपने आपने ख्याल करदा,
    नर नार होए चित मिलाया सू।
    बुल्ल्हा शौह ना मूल थीं कुझ होया,
    सो जाणदा जिसे जणायआ सू।

    नून-

    नाम अरूप उठा दीजे,
    पिच्छे असत अरबहानित पर्या सांच है जी।
    सोयी चित्त कि चितवनी विच आवे,
    सोयी जान तहकीक कर कांच है जी।
    तैं बुद्ध की बरत तूं हैं साखी,
    तूं जान निज रूप मैं राच है जी।
    बुल्ल्हा शौह जे भूप अटल्ल बैठा,
    तेरे अग्गे प्रक्रित का नाच है जी।

    वाओ-

    वकत इह हत्थ ना आवना एं,
    इक पलक दी लक्ख करोड़ देवें।
    जतन करें तां आप अचाह होवें,
    तूं तां फेर अट्ठे वक्खे रस सेवें।
    कूड़ बपार कर धूड़ सिर मेलें,
    चिंता मन देवें जड़्ह काच लेवें,
    बुल्ल्हा शौह संभाल तूं आप ताईं,
    तूं तां अनंत लग देह में कहां मेवें।
    हे-
    हर तर्हां होवे दिलदार प्यारा,
    रंग रंग दा रूप बणायआ ई।
    कहूं आप को भूल रंजूल होया,
    उरवार भरमाए सतायआ ई।
    जदों आपने आप मैं परगट होया,
    नज़ाय नन्द के माहीं समाया ई।
    बुल्ल्हा शाह जो आदि थां अंत सोई,
    जिवें नीर में नीर मिलायआ ई।

    अलफ़-

    अज बण्या सभ्भो चज्ज मेरा,
    शादी ग़मी थीं पार खलोया नी।
    भया दूआ भरम मरम पायआ मैं,
    डर काल का जिय ते खोया नी।
    साध संगत की दया भया निरमल,
    घट घट विच तन सुक्ख सोया नी।
    बुल्ल्हा शाह जद आप नूं सही कीता,
    जोयी आदि दा अंत फिर होया नी।
    ये-
    यार पाया सईयो मेरीयो मैं,
    आपना आप गवाए के नी।
    रही सुद्ध ना बुद्ध जहान की री,
    थक्के बरत अनन्द मैं जाए के नी।
    उलटे जाम बिसराम ना काम कोई,
    धूनी ग्यान की भा जलाए के नी।
    बुल्ल्हा शौह मुबारकां लक्ख द्यो,
    बहे जान जानी गल लाए के नी।

    तीजी सीहरफ़ी

    अलफ़-

    आवद्यां तों मैं सदकड़े हां,
    जीम जांद्यां तों सिर वारनी हां।
    मिट्ठी प्रीत अनोखड़ी लग्ग रही,
    घड़ी पल ना यार विसारनी हां।
    केहे हड्ड तकादड़े पए मैंनूं,
    औंसियां पांवदी काग उडारनी हां।
    बुल्ल्हा शौह ते कमली मैं होई,
    सुत्ती बैठी मैं यार पुकारनी हां।
    बे-
    बाज़ ना आंवदियां अक्खियां नी,
    किसे औझड़े बैठ समझावनी हां।
    होईआं लाल अनार दे गुलां वांङू,
    किसे दुक्खड़े नाल छपावनी हां।
    मुढ्ढ प्यार दियां जरम दियां तत्तियां नूं,
    लख लख नसीहतां लावनी हां।
    बुल्ल्हा शाह दा शौंक छुपा के ते,
    ज़ाहर दुतियां दा ग़म खावनी हां।
    ते-
    ताय के इशक हैरान कीता,
    सीने विच अलम्बड़ा बाल्या ई,
    मुक्खों कूकद्यां आप नूं फूक लग्गी,
    चुप्प कीत्यां मैं तन जाल्या ई।
    पापी बिरहों दे झक्खड़ झोल्यां ने,
    लुक्क छुप्प मेरा जिय जाल्या ई।
    बुल्ल्हा शहु दी प्रीत दी रीत केही,
    आहीं तत्तियां नाल संभाल्या ई।
    से-
    सबूत जो अक्खियां लग्ग रहियां,
    इक मत प्रेम दी जाननी हां।
    गुंगी डोरी हां ग़ैर दी बात कोलों,
    सद यार दा सही स्याननी हां।
    आहीं ठंडियां नाल प्यार मेरा,
    सीने विच तेरा मान माननी हां।
    बुल्ल्हा शौह तैनुं कोयी सिक्क नाहीं,
    तैनूं भावनी हां कि ना भावनी हां।

    जीम-

    जान जानी मेरे कोल होवे,
    किवें वस्स ना जान विसारनी हां।
    दिने रात असह मिलन तेरियां,
    मैं तेरे देखने नाल गुज़ारनी हां।
    घोल घोल हस्स करदा प्रिये,
    येह थीं मैं लिख लिख सारनी हां।
    बुल्ल्हा शौह तैथों कुरबानियां मैं,
    होर सभ कबीलड़ा वारनी हां।
    हे-
    हाल बेहाल दा कौन जाणे,
    औखा इशक हंढावना यार दा ई।
    नित्त ज़ारियां नाल गुज़ारियां मैं,
    मूंह जोड़ गल्लां जग्ग सारदा ई।
    हाय हाय मुट्ठी किवें नेहुं छुपे,
    मूंह पीलड़ा रंग वसारदा ई।
    बुल्ल्हा शौह दे कामना ज़ोर पायआ,
    मजज़ूब वांगर कर मारदा ई।
    ख़े-
    ख़ुआब ख़्याल जहान होया,
    एस बिरहों दीवानी दे वत्तनी हां।
    मत नहीं उठावन दी मंतरां दी,
    नागां काल्यां नूं हत्थ घत्तनी हां।
    तानी गंढनी हां अनुलहक्क वाली,
    महबूब दा कत्तना कत्तनी हां।
    बुल्ल्हा शौह दे अम्ब निसंग लाहे,
    पक्के बेर बबूलां दे पट्टनी हां।
    दाल-
    दे दिलासड़ा दोसती दा,
    तेरी दोसती नाल विकावनी हां।
    झब आ अलक्ख क्युं लक्ख्या ई,
    अंगरा बम्बने थीं शरमावनी हां।
    बाबा पट्टियां छोटियां मोटियां नूं,
    हत्थ दे के ज़ोर हटावनी हां।
    बुल्ल्हा शौह तेरे गल लावने नूं,
    लक्ख लक्ख मैं शगन मनावनी हां।
    ज़ाल-
    ज़ौक दित्तो ज़ात आपनी दा,
    रही कंम निकंमड़े साड़नी हां।
    लक्ख चैन घोले तेरे दुक्खड़े तों,
    सेजे सुत्त्यां सूल लताड़नी हां।
    लज्ज चुक्क्यां मत सुरत गई आ,
    लग्गा भिबूत चोला गल पाड़नी हां।
    बुल्ल्हा शौह तेरे गल लावने नूं,
    लक्ख लक्ख शरीणियां धारनी हां।
    रे-
    रावला हुन रुला नाहीं,
    बुरे नैन बैरागड़े हो रहे।
    मुल्लां लक्ख तावीज़ पिला थक्के,
    चंगी कौन आखे मापे रो रहे।
    टूणेहारियां कामनां वालियां ने,
    हत्थ वस्स जहान नथो रहे।
    बुल्ल्हा शौह दे नाल हयात होणा,
    जेहड़ा जांवद्यां दे हत्थ खो रहे।
    ज़े-
    ज़ोर ना हाबता होर कोई,
    ज़ारो ज़ार मैं आंसू परोवनी हां।
    मैथों चुक्क्यां ग़ैर हाज़री ए,
    मूली कौन से बाग़ दी होवनी हां।
    भोरा हस्स के आण बुलांवदा ए,
    मैं तां रात सारी सुक्ख सोवनी हां।
    बुल्ल्हा शौह उते मर जाउना एं,
    तेरे दुक्खां दे धोवने धोवनी हां।

    सीन-

    सभ्भे ही नाम है यार तेरी साहबे दी,
    बैठी गीत वांङू गुन गावनी हां।
    सजन सभ सहेलियां दिल दियां नूं,
    मैं होर ख़्याल सुणावनी हां।
    जेही लगन सी इथे लग्ग गई,
    कक्खां विच ना भाह छुपावनी हां।
    बुल्ल्हा शाह अग्गे तेरे पंधीं पवां,
    नाहीं दवार अजे बह सुक्ख न्हावनी हां।

    शीन-

    शुकर करो शबो-रोज़ रहणा,
    जिनहां शौंक तेरा नित्त तांवदा ए।
    भंगी वांङ उदास हैरान होई,
    गाज़ी लक्ख पिच्छे दुक्ख लांवदा ए।
    तेरी ज़ात बिनां है सच्ची बात केहड़ी,
    हत्थ लंमड़े वहन लुड़्हांवदा ए।
    बुल्ल्हा शाह जो तेरे दा अंख्याई,
    उह हुन प्यारे दा मोड़ जलांवदा ए।

    सुआद-

    सबर ना सुक्ख सहेलियां नूं,
    भेत यार दा नहीं पुछांवदे नी।
    ख़बर नहीं उन्हां दी आशक हैन रब्ब दे,
    ग़ुल पाए कि धूम मचांवदे नी।
    जित्थे भाह लग्गी उत्थे ठंढ केही,
    उत्तों तेल मुवातड़े पांवदे नी।
    बुल्ल्हा शाह तों सदा कुरबान होवां,
    ऐवें आशकां नूं लूतियां लांवदे नी।

    ज़ुआद-

    ज़रब लग्गी सांग कलेजड़े विच,
    केही लग्गी अग्ग मैं खड़ी रोवनी हां।
    तेरे दरश शराब अज़ाब होया,
    फ़ानी हो के ते खड़ी जीवनी हां।
    ज़रा शौंक दा जाम पिला मैनूं,
    बैठी बेख़ुद हार परोवनी हां।
    बुल्ल्हा शाह वेखां घर दे विच खली,
    सजदा करदी ते हत्थ जोड़नी हां।
    फ़े-
    फ़हम ना होर ख़्याल मैनूं,
    डिट्ठे यार दे तत्तड़े जीवनी हां।
    कदे सीख़ ते कहर खलो के ते,
    जाम वसल दा बैठी पीवनी हां।
    मैं की जाणदी इशक अखाड़्यां नूं,
    सस्सी वांङ शुतरीं कुरलावनी हां।
    बुल्ल्हा शाह थीं दूर दराज़ होया,
    जे कर मिले महबूब तां भी जीवनी हां।

    कुआफ़-

    कबूल ज़रूर जां इशक कीता,
    आहे होर ते हुन कायी होर होए।
    हुन समझ लै पहलां की आखनी हां,
    मैं सुन्दर थीं तख़त लाहौर होए।
    सभ्भे लोक पए हत्थ जोड़दे ने,
    साडे कामनां दे गिले ज़ोर होए।
    बुल्ल्हा शाह दा भेत ना दस्सनी हां,
    हम तों अन्न्हे वांग मनसूर होए।

    काफ-

    केहियां कानियां लग्गियां नी,
    गईआं सहल कलेजे नूं डस्स गईआं।
    पट्ट पट्ट कढ्ढां होर लग्गे,
    बन्द बन्द थौं पट्ट के स्ट्ट गईआं।
    जिवें साहबां साथ लुटा दित्ता,
    तिवें कूंज वांगर कुरलावनी हां।
    बुल्ल्हा शाह दे इशक हैरान कीती,
    अउसियां पांवदी ते पछोतावनी हां।

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