Jaan Nisar Akhtar ki Rubaiyan/Kityat

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जाँ निसार अख़्तर - रुबाइयाँ/क़ितयात(toc) 

रुबाइयाँ

आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है - Jaan Nisar Akhtar

आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है
इक बिजली सी तन-बदन में लहराई है
दौड़ी है हरेक बात की सुध बिसरा के
रोटी जलती तवे पर छोड़ आई है
 

आँचल ही नहीं जिस्म भी लहराया है - Jaan Nisar Akhtar

आँचल ही नहीं जिस्म भी लहराया है
आँखों में क़यामत का नशा छाया है
वो दूर हैं, फिर सखी ये क़िस्सा क्या है ?
“कल शाम वो आ रहे हैं, खत आया है”
 

इक बार गले से उनके लगकर रो ले - Jaan Nisar Akhtar

इक बार गले से उनके लगकर रो ले
जाने को खड़े हैं उनसे क्या बोले
जज़्बात से घुट के रह गई है आवाज़
किस तरह से आँसुओं के फंदे खोले
 

इक रूप नया आप में पाती हूँ सखी - Jaan Nisar Akhtar

इक रूप नया आप में पाती हूँ सखी
अपने को बदलती नज़र आती हूँ सखी
ख़ुद मुझको मेरे हाथ हसीं लगते हैं
बच्चे का जो पालना हिलाती हूँ सखी
 

कपड़ों को समेटे हुए उट्ठी है मगर - Jaan Nisar Akhtar

कपड़ों को समेटे हुए उट्ठी है मगर
डरती है कहीं उनको न हो जाए ख़बर
थक कर अभी सोए हैं कहीं जाग न जाएँ
धीरे से उढ़ा रही है उनको चादर
 

कहती है इतना न करो तुम इसरार - Jaan Nisar Akhtar

कहती है इतना न करो तुम इसरार
गिर जाऊँगी ख़ुद अपनी नज़र से इक बार
ऐसी तुम्हें ज़िद है तो इस प्याले में
मेरे लिए सिर्फ छोड़ देना इक प्यार
 

गाती हुई हाथों में ये सिंगर की मशीन - Jaan Nisar Akhtar

गाती हुई हाथों में ये सिंगर की मशीन
क़तरों से पसीने के सराबोर जबीन
मसरूफ़ किसी काम में देखूँ जो तुझे
तू और भी मुझको नज़र आती है हसीन
 

चाल और भी दिल-नशीन हो जाती है - Jaan Nisar Akhtar

चाल और भी दिल-नशीन हो जाती है
फूलों की तरह ज़मीन हो जाती है
चलती हूँ जो साथ-साथ उनके तो सखी
खुद चाल मेरी हसीन हो जाती है
 

जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे - Jaan Nisar Akhtar

जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे
अल्फ़ाज़ में रस घोल रही हो जैसे
अब शेर जो लिखता हूँ तो यूँ लगता है
तुम पास खड़ी बोल रही हो जैसे
 

जीवन की ये छाई हुई अंधयारी रात - Jaan Nisar Akhtar

जीवन की ये छाई हुई अंधयारी रात
क्या जानिए किस मोड़ पे छूटा तेरा साथ
फिरता हूँ डगर- डगर अकेला लेकिन
शाने पे मेरे आज तलक है तेरा हाथ
 

डाली की तरह चाल लचक उठती है - Jaan Nisar Akhtar

डाली की तरह चाल लचक उठती है
ख़ुशबू से हर इक साँस छलक उठती है
जूड़े में जो वो फूल लगा देते हैं
अंदर से मेरी रूह महक उठती है
 

तू देश के महके हुए आँचल में पली - Jaan Nisar Akhtar

तू देश के महके हुए आँचल में पली
हर सोच है ख़ुश्बुओं के साँचे में ढली
हाथों को जोड़ने का ये दिलकश अंदाज़
डाली पे कंवल के जिस तरह बंद कली
 

तेरे लिये बेताब हैं अरमाँ कैसे - Jaan Nisar Akhtar

तेरे लिये बेताब हैं अरमाँ कैसे
दर आ मेरे सीने में किसी दिन ऐसे
भगवान कृष्ण की सजी मूरत में
चुपचाप समा गई थी मीरा जैसे
 

दुनिया की उन्हें लाज न ग़ैरत है सखी - Jaan Nisar Akhtar

दुनिया की उन्हें लाज न ग़ैरत है सखी
उनका है मज़ाक़ मेरी आफ़त है सखी
छेड़ेंगे मुझे जान के सब के आगे
सच उनकी बहुत बुरी आदत है सखी
 

नज़रों से मेरी खुद को बचाले कैसे - Jaan Nisar Akhtar

नज़रों से मेरी खुद को बचाले कैसे
खुलते हुए सीने को छुपाले कैसे
आटे में सने हुए हैं दोनों ही हाथ
आँचल जो सँभाले तो सँभाले कैसे
 

पानी कभी दे रही है फुलवारी में - Jaan Nisar Akhtar

पानी कभी दे रही है फुलवारी में
कपड़े कभी रख रही है अलमारी में
तू कितनी घरेलू सी नज़र आती है
लिपटी हुई हाथ की धुली सारी में
 

मन था भी तो लगता था पराया है सखी - Jaan Nisar Akhtar

मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सखी
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी
 

रहता है अजब हाल मेरा उनके साथ - Jaan Nisar Akhtar

रहता है अजब हाल मेरा उनके साथ
लड़ते हुए अपने से गुज़र जाती है रात
कहती हूँ इतना न सताओ मुझको
डरती हूँ कहीं मान न जायें मेरी बात
 

वो आयेंगे चादर तो बिछा दूँ कोरी - Jaan Nisar Akhtar

वो आयेंगे चादर तो बिछा दूँ कोरी
पर्दों की ज़रा और भी कस दूँ डोरी
अपने को सँवारने की सुधबुध भूले
घर-बार सजाने में लगी है गोरी
 

वो ज़िद पे उतर आते हैं अक्सर औक़ात - Jaan Nisar Akhtar

वो ज़िद पे उतर आते हैं अक्सर औक़ात
हर चीज पे वह बहस करेंगे मेरे साथ
हरगिज़ वो न मानेंगे जो मैं चाहूँगी
लेकिन जो मैं चाहूँगी करेंगे वही बात
 

वो दूर सफ़र पे जब भी जाएँगे सखी - Jaan Nisar Akhtar

वो दूर सफ़र पे जब भी जाएँगे
साड़ी कोई कीमती सी ले आएँगे
चाहूँगी उसे सैंत के रख लूँ लेकिन
पहनूँ न उसी दिन तो बिगड़ जाएँगे
 

शाम और भी दिलनशीन हो जाती है - Jaan Nisar Akhtar

शाम और भी दिलनशीन हो जाती है
फूलों की तरह ज़मीन हो जाती है
चलती हूँ जो साथ-साथ उनके तो सखी
खुद चाल मेरी हसीन हो जाती है
 

सीने पे पड़ा हुआ ये दोहरा आँचल - Jaan Nisar Akhtar

सीने पे पड़ा हुआ ये दोहरा आँचल
आँखों में ये लाज का लहकता काजल
तहज़ीब की तस्वीर हया की देवी
पर सेज पर कितनी शोख़ कितनी चंचल
 

हर एक घड़ी शाक़ गुज़रती होगी - Jaan Nisar Akhtar

हर एक घड़ी शाक़ गुज़रती होगी
सौ तरह के वहम करके मरती होगी
घर जाने की जल्दी तो नहीं मुझको मगर
वो चाय पर इन्तज़ार करती होगी
 

हर रस्मो-रिवायत को कुचल सकती हूँ - Jaan Nisar Akhtar

हर रस्मो-रिवायत को कुचल सकती हूँ
जिस रंग में ढालें मुझे ढल सकती हूँ
उकताने न दूँगी उनको अपने से कभी
उनके लिये सौ रूप बदल सकती हूँ
 

हर सुबह को गुंचे में बदल जाती है - Jaan Nisar Akhtar

हर सुबह को गुंचे में बदल जाती है
हर शाम को शमा बन के जल जाती है
और रात को जब बंद हों कमरे के किवाड़
छिटकी हुई चाँदनी में ढल जाती है
 

क़ितया जाँ निसार अख़्तर

अच्छी है कभी-कभी की दूरी भी सखी - Jaan Nisar Akhtar

अच्छी है कभी-कभी की दूरी भी सखी
इस तरह मुहब्बत में तड़प आती है
कुछ और भी वो चाहने लगते हैं मुझे
कुछ और भी मेरी प्यास बढ़ जाती है
 

अपने आईना-ए-तमन्ना में - Jaan Nisar Akhtar

अपने आईना-ए-तमन्ना में
अब भी मुझ को सँवारती है तू
मैं बहुत दूर जा चुका लेकिन
मुझ को अब तक पुकारती है तू
 

अब तक वही बचने की सिमटने की अदा - Jaan Nisar Akhtar

अब तक वही बचने की सिमटने की अदा
हर बार मनाता है मेरा प्यार तुझे
समझा था तुझे जीत चुका हूँ लेकिन
लगता है कि जीतना है हर बार तुझे
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
 

अब्र में छुप गया है आधा चाँद - Jaan Nisar Akhtar

चाँदनी छ्न रही है शाखों से
जैसे खिड़की का एक पट खोले
झाँकता हो कोई सलाखों से
 

अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से - Jaan Nisar Akhtar

अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
कैसी ये किरन फ़ज़ा में फूटी
क्यूँ रंग बरस पड़ा चमन में
क्या क़ौस-ए-क़ुज़ह लचक के टूटी
 

आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम - Jaan Nisar Akhtar

आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
भूल जाएँ ग़लत-सलत बातें
आ किसी दिन के इंतिज़ार में दोस्त
काट दें जाग जाग कर रातें
 

आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर - Jaan Nisar Akhtar

आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
एक मुबहम सा गीत आया है
इस को नग़्मा तो कह नहीं सकता
ये तो नग़्मे का एक साया है
 

आती है झिझक सी उनके आगे जाते - Jaan Nisar Akhtar

आती है झिझक सी उनके आगे जाते
वो देखते हैं कभी कभी तो ऐसे
घबरा के मैं बाँहों में सिमट जाती हूँ
लगता है कि मैं कुछ नहीं पहने जैसे
 

आँगन में खिले गुलाब पर जा बैठी - Jaan Nisar Akhtar

आँगन में खिले गुलाब पर जा बैठी
हल्की सी उड़ी थी उनके कदमों से जो धूल
गोरी थी कि अपने बालों में सजाने के लिये
चुपचाप से जाके तोड़ लाई वही फूल
 

इक ज़रा रसमसा के सोते में - Jaan Nisar Akhtar

इक ज़रा रसमसा के सोते में
किस ने रुख़ से उलट दिया आँचल
हुस्न कजला गया सितारों का
बुझ गई माहताब की मशअल
 

इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं - Jaan Nisar Akhtar

इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
अपने जज़बात की हसीं तहरीर
किस मोहब्बत से तक रही है मुझे
दूर रक्खी हुई तेरी तस्वीर
 

इक पल को निगाहों से तो ओझल हो जाऊँ - Jaan Nisar Akhtar

इक पल को निगाहों से तो ओझल हो जाऊँ
इतनी भी कहाँ सखी इजाज़त है मुझे
आवाज़ पे आवाज़ दिये जाएँगे
साड़ी का बदलना भी मुसीबत है मुझे
 

इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा - Jaan Nisar Akhtar

इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
कितने नाज़ुक तख़य्युलात के मोड़
कितने गुल-आफ़रीं लबों का रस
कितने रंगीन आँचलों का निचोड़
 

उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम - Jaan Nisar Akhtar

उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
कौन से दिन मंढे चढ़ेगी बेल
हाए ये इंतिज़ार के लम्हे
जैसे सिगनल पे रुक गई हो रेल
 

एक कमसिन हसीन लड़की का - Jaan Nisar Akhtar

एक कमसिन हसीन लड़की का
इस तरह फ़िक्र से है मुखड़ा माँद
जैसे धुँदली कोहर चमेली पर
जैसे हल्की घटा के अंदर चाँद
 

कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या - Jaan Nisar Akhtar

कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
तेरी बे-ए'तिनाइयों को मुआफ़
अक़्ल ने पूछना बहुत चाहा
कह सका दिल न कुछ भी तेरे ख़िलाफ़
 

क्यों हाथ जला, लाख छुपाए गोरी - Jaan Nisar Akhtar

क्यों हाथ जला, लाख छुपाए गोरी
सखियों ने तो खोल के पहेली रख दी
साजन ने जो पल्लू तेरा खेंचा, तू ने
जलते हुए दीपक पे हथेली रख दी
 

कितनी मासूम हैं तिरी आँखें - Jaan Nisar Akhtar

कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
बैठ जा मेरे रू-ब-रू मिरे पास
एक लम्हे को भूल जाने दे
अपने इक इक गुनाह का एहसास
 

किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा - Jaan Nisar Akhtar

किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
इस क़दर जल्द टूट जाएगा
क्या ख़बर थी कि हाथ लगते ही
फूल का रंग छूट जाएगा
 

ख़ुद हिल के वो क्या मजाल पानी पी लें - Jaan Nisar Akhtar

ख़ुद हिल के वो क्या मजाल पानी पी लें
हर रात बँधा हुआ है ये ही दस्तूर
सिरहाने भी चाहे भर के छागल रख दूँ
सोते से मगर मुझे जगायेंगे ज़रूर
 

चंद लम्हों को तेरे आने से - Jaan Nisar Akhtar

चंद लम्हों को तेरे आने से
तपिश-ए-दिल ने क्या सुकूँ पाया
धूप में गर्म कोहसारों पर
अब्र का जैसे दौड़ता साया
 

चुप रह के हर इक घर की परेशानी को - Jaan Nisar Akhtar

चुप रह के हर इक घर की परेशानी को
किस तरह न जाने तू उठा लेती है
फिर आये-गये से मुस्कुराकर मिलना
तू कैसे हर इक दर्द छुपा लेती है
 

जब जाते हो कुछ भूल के आ जाते हो - Jaan Nisar Akhtar

जब जाते हो कुछ भूल के आ जाते हो
इस बार मेरी शाल ही कर आए गुम
कहतीं हैं कि तुम से तो ये डर लगता है
इक रोज़ कहीं ख़ुद को न खो आओ तुम
 

जब तुम नहीं होते तो जवानी मेरी - Jaan Nisar Akhtar

जब तुम नहीं होते तो जवानी मेरी
सोते की तरह सूख के रह जाती है
तुम आनके बाँहों में जो ले लेते हो
यौवन की नदी फिर से उबल आती है
 

तितली कोई बे-तरह भटक कर - Jaan Nisar Akhtar

तितली कोई बे-तरह भटक कर
फिर फूल की सम्त उड़ रही है
हिर-फिर के मगर तिरी ही जानिब
इस दिल की निगाह मुड़ रही है
 

तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़ - Jaan Nisar Akhtar

तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
तेरे आरिज़ पे ये शगुफ़्ता गुलाब
रंग-ए-जाम-ए-शराब पर मत जा
ये तो शर्मा गई है तुझ से शराब
 

दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर - Jaan Nisar Akhtar

दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
लौटा हूँ कहीं से जब भी पी कर किसी रात
हर बार अँधेरे में लगा है ऐसा
जैसे कोई शमा चल रही है मेरे साथ
 

दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर - Jaan Nisar Akhtar

दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
कितने मीठे सुरों में गाती है
सुब्ह के इस हसीं धुँदलके में
क्या यहीं भैरवीं नहाती है
 

देखेंगे और जी में कुढ़ के रह जाएँगे - Jaan Nisar Akhtar

देखेंगे और जी में कुढ़ के रह जाएँगे
लहराएँगे उनके दिल में कितने आँसू
आँचल की भरी खोंप छुपाने के लिये
साड़ी का उड़सती है कमर में पल्लू
 

दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में - Jaan Nisar Akhtar

दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
इश्क़ की जीत सुन सकेगी तू
दिल-ए-नाज़ुक से पहले पूछ तो ले
क्या मिरे गीत सुन सकेगी तू
 

दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या - Jaan Nisar Akhtar

दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आप से भी तो ख़ुद ख़फ़ा हूँ मैं
आज तक ये न खुल सका मुझ पर
बेवफ़ा हूँ कि बा-वफ़ा हूँ मैं
 

ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी - Jaan Nisar Akhtar

ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
अब है ऐसा सुकून जीने में
जैसे दरिया में हाथ लटकाए
सो गया हो कोई सफ़ीने में
 

नाराज़ अगर हो तो बिगड़ लो मुझ पर - Jaan Nisar Akhtar

नाराज़ अगर हो तो बिगड़ लो मुझ पर
तुम चुप हो तो चैन कैसे आ सकता है
कहती है ये एहसास न छीनो मुझसे
मुझ पर भी कोई ज़ोर चला सकता है
 

बाहर वो जहाँ भी काम करते होंगे - Jaan Nisar Akhtar

बाहर वो जहाँ भी काम करते होंगे
रहते ही तो होंगे वो झुकाए हुए सर
घर में भी न सर उठायेंगे तो सखी
रह जाएगा उनका दम न सचमुच घुटकर
 

मैं ने माना तिरी मोहब्बत में - Jaan Nisar Akhtar

मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
दिल के दिल ही में रह गए अरमान
फिर भी इस बात का यक़ीं है मुझे
ना-मुकम्मल नहीं मिरा रूमान
 

मैं वो ही करूँ जो वो कहें वो चाहें - Jaan Nisar Akhtar

मैं वो ही करूँ जो वो कहें वो चाहें
मुझ को भी तो इस बात में चैन आता है
मनवा भी लूँ उनसे अपनी मर्ज़ी जो कभी
हफ़्तों को मेरा सुकून मर जाता है
 

याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा - Jaan Nisar Akhtar

याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
डाल देता है दिल में इक हलचल
दौड़ते में किसी हसीना का
जैसे आ जाए पाँव में आँचल
 

यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर - Jaan Nisar Akhtar

यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
पलकों के लचक रहे हैं साए
छिटकी हुई चाँदनी में 'अख़्तर'
जैसे कोई आड़ में बुलाए
 

यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं - Jaan Nisar Akhtar

यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
रह रह के उमीद के उजाले
छुप छुप के कोई शरीर लड़की
आईने का अक्स जैसे डाले
 

यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम - Jaan Nisar Akhtar

यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
जगमगाती शफ़क़-फरोज़ किरन
चलते चलते भी आइना देखे
जैसे कोई सजी-सजाई दुल्हन
 

यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़ - Jaan Nisar Akhtar

यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
यूँ ही रूठी हुई सी एक नज़र
उम्र भर मैं ने तुझ पे नाज़ किया
तू किसी दिन तो नाज़ कर मुझ पर
 

ये किसका ढलक गया है आंचल - Jaan Nisar Akhtar

ये किसका ढलक गया है आंचल
तारों की निगाह झुक गई है
ये किस की मचल गई हैं ज़ुल्फ़ें
जाती हुई रात रुक गई है
 

ये मुजस्‍सम सिमटती मेरी रूह - Jaan Nisar Akhtar

ये मुजस्‍सम सिमटती मेरी रूह
और बाक़ी है कुछ नफ़स का खेल
उफ़ मेरे गिर्द ये तेरी बांहें
टूटती शाख पर लिपटती बेल
 

रात जब भीग के लहराती है - Jaan Nisar Akhtar

रात जब भीग के लहराती है
चाँदनी ओस में बस जाती है
अपनी हर साँस से मुझ को 'अख़्तर'
उन के होंटों की महक आती है
 

वो बढ़के जो बाँहों में उठा लेते हैं - Jaan Nisar Akhtar

वो बढ़के जो बाँहों में उठा लेते हैं
हो जाता है मालूम नहीं क्या मुझको
ऐसे में न जाने क्यों सखी लगता है
ख़ुद मेरा बदन फूल से हल्का मुझको
 

वो शाम को घर लौट के आएँगे तो फिर - Jaan Nisar Akhtar

वो शाम को घर लौट के आएँगे तो फिर
चाहेंगे कि सब भूल कर उनमें खो जाऊँ
जब उन्हें जागना है मैं भी जागूँ
जब नींद उन्हें आये तो मैं भी सो जाऊँ
 

सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा - Jaan Nisar Akhtar

सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
कम नहीं शोरिश-ए-जिगर फिर भी
मेरी आँखों के रू-ब-रू है तू
ढूँढती है तुझे नज़र फिर भी
 

हाए ये तेरे हिज्र का आलम - Jaan Nisar Akhtar

हाए ये तेरे हिज्र का आलम
किस क़दर ज़र्द है हसीं महताब
और ये मस्त आबशार की लै
कोई रोता हो जैसे पी के शराब
 

हुस्न का इत्र जिस्म का संदल - Jaan Nisar Akhtar

हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
आरिज़ों के गुलाब ज़ुल्फ़ का ऊद
बाज़ औक़ात सोचता हूँ मैं
एक ख़ुशबू है सिर्फ़ तेरा वजूद

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