दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता - वसीम बरेलवी Dukh Apna Agar Hum Ko - Waseem Barelvi

Hindi Kavita

Hindi Kavita
हिंदी कविता

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता - वसीम बरेलवी
Dukh Apna Agar Hum Ko - Waseem Barelvi


दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तक
क्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता

मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता
Wasim-Barelvi

इस छोटे ज़माने के बड़े कैसे बनोगे
लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता

ढूँढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने
आँसू को मिरी आँख में आना नहीं आता

तारीख़ की आँखों में धुआँ हो गए ख़ुद ही
तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता।

(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Wasim Barelvi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(मेरा क्या - बरेलवी) #icon=(link) #color=(#2339bd)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!