Kumar Vishwas-Hindi Ghazle कुमार विश्वास-हिन्दी ग़ज़लें

Hindi Kavita

Hindi Kavita
हिंदी कविता

Hindi Ghazle/Ghazals - Kumar Vishwas
हिन्दी ग़ज़लें - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

1. आबशारों की याद आती है - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

आबशारों की याद आती है
फिर किनारों की याद आती है

जो नहीं हैं मगर उन्हीं से हूँ
उन नज़ारों की याद आती है

ज़ख़्म पहले उभर के आते हैं
फिर हज़ारों की याद आती है

आइने में निहार कर ख़ुद को
कुछ इशारों की याद आती है

और तो मुझ को याद क्या आता
उन पुकारों की याद आती है

आसमाँ की सियाह रातों को
अब सितारों की याद आती है

2. उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती

शायरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती

रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती

लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जहाँ हूँ उधर नहीं मिलती

(कोई दीवाना कहता है)

3. उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे
वो मिरा होने से ज़्यादा मुझे पाना चाहे

मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा
ये मुसाफ़िर तो कोई और ठिकाना चाहे

एक बनफूल था इस शहर में वो भी न रहा
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे

ज़िंदगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे

4. ख़ुद को आसान कर रही हो ना - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

ख़ुद को आसान कर रही हो ना
हम पे एहसान कर रही हो ना

ज़िंदगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना
kumar-vishwas-kavita
नींद सपने सुकून उम्मीदें
कितना नुक़सान कर रही हो ना

हम ने समझा है प्यार पर तुम तो
जान पहचान कर रही हो ना

5. खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना

देखना, चाहना, फिर माँगना, या खो देना
ये सारे खेल हैं, इनमें उदास मत होना

जो भी तुम चाहो, फ़क़त चाहने से मिल जाए
ख़ास तो होना, पर इतने भी ख़ास मत होना

किसी से मिल के नमक आदतों में घुल जाए
वस्ल को दौड़ती दरिया की प्यास मत होना

मेरा वजूद फिर एक बार बिखर जाएगा
ज़रा सुकून से हूँ, आस-पास मत होना

6. तुम लाख चाहे मेरी आफ़त में जान रखना - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

तुम लाख चाहे मेरी आफ़त में जान रखना
पर अपने वास्ते भी कुछ इम्तिहान रखना

वो शख़्स काम का है दो ऐब भी हैं उस में
इक सर उठाना दूजा मुँह में ज़बान रखना

पगली सी एक लड़की से शहर ये ख़फ़ा है
वो चाहती है पलकों पे आसमान रखना

केवल फ़क़ीरों को है ये कामयाबी हासिल
मस्ती से जीना और ख़ुश सारा जहान रखना

7. तुम्हें जीने में आसानी बहुत है - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है

कबूतर इश्क़ का उतरे तो कैसे
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है

इरादा कर लिया गर ख़ुद-कुशी का
तो ख़ुद की आँख का पानी बहुत है

ज़हर सूली ने गाली गोलियों ने
हमारी ज़ात पहचानी बहुत है

तुम्हारे दिल की मन-मानी मिरी जाँ
हमारे दिल ने भी मानी बहुत है

8. दिल तो करता है ख़ैर करता है - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

दिल तो करता है ख़ैर करता है
आप का ज़िक्र ग़ैर करता है

क्यूँ न मैं दिल से दूँ दुआ उस को
जबकि वो मुझ से बैर करता है

आप तो हू-ब-हू वही हैं जो
मेरे सपनों में सैर करता है

इश्क़ क्यूँ आप से ये दिल मेरा
मुझ से पूछे बग़ैर करता है

एक ज़र्रा दुआएँ माँ की ले
आसमानों की सैर करता है

(कोई दीवाना कहता है)

9. फिर मेरी याद आ रही होगी - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी

फिर मिरे फेसबुक पे आ कर वो
ख़ुद को बैनर बना रही होगी

अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझ को टीका लगा रही होगी

फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी

जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी

फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी

10. बात करनी है बात कौन करे - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

बात करनी है बात कौन करे
दर्द से दो दो हाथ कौन करे

हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं
चाँद न हो तो रात कौन करे

अब तुझे रब कहें या बुत समझें
इश्क़ में ज़ात-पात कौन करे

ज़िंदगी भर की थे कमाई तुम
इस से ज़्यादा ज़कात कौन करे

11. मैं जिसे मुद्दत में कहता था वो पल की बात थी - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

मैं जिसे मुद्दत में कहता था वो पल की बात थी,
आपको भी याद होगा आजकल की बात थी ।

रोज मेला जोड़ते थे वे समस्या के लिए,
और उनकी जेब में ही बंद हल की बात थी ।

उस सभा में सभ्यता के नाम पर जो मौन था,
बस उसी के कथ्य में मौजूद तल की बात थी ।

नीतियां झूठी पड़ी घबरा गए सब शास्त्र भी,
झोंपड़ी के सामने जब भी महल की बात थी ।

(कोई दीवाना कहता है)

12. मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा
जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा

हो के क़दमों पर निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुश्बू बचा ले जाऊँगा

कौन-सी शै तुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा

क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊँगा

शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त-दुश्मन हो गए
सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगा

(कोई दीवाना कहता है)

13. ये ख़यालों की बद-हवासी है - Kumar Vishwas Poetry/Gazal- Kumar Vishwas Poetry/Gazal

ये ख़यालों की बद-हवासी है
या तिरे नाम की उदासी है

आइने के लिए तो पतली हैं
एक का'बा है एक काशी है

तुम ने हम को तबाह कर डाला
बात होने को ये ज़रा सी है

14. रंग दुनिया ने दिखाया है निराला देखूँ - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला देखूँ
है अँधेरे में उजाला तो उजाला देखूँ

आइना रख दे मिरे सामने आख़िर मैं भी
कैसा लगता है तिरा चाहने वाला देखूँ

कल तलक वो जो मिरे सर की क़सम खाता था
आज सर उस ने मिरा कैसे उछाला देखूँ

मुझ से माज़ी मिरा कल रात सिमट कर बोला
किस तरह मैं ने यहाँ ख़ुद को सँभाला देखूँ

जिस के आँगन से खुले थे मिरे सारे रस्ते
उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ

(कोई दीवाना कहता है)

15. रात और दिन का फ़ासला हूँ मैं - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

रात और दिन का फ़ासला हूँ मैं
ख़ुद से कब से नहीं मिला हूँ मैं

ख़ुद भी शामिल नहीं सफ़र में पर
लोग कहते हैं क़ाफ़िला हूँ मैं

ऐ मोहब्बत तिरी अदालत में
एक शिकवा हूँ इक गिला हूँ मैं

मिलते रहिए कि मिलते रहने से
मिलते रहने का सिलसिला हूँ मैं

फूल हूँ ज़िंदगी के गुलशन का
मौत की डाल पर खिला हूँ मैं

16. रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है
जीना मरना खोना पाना चलता रहता है

सुख दुख वाली चादर घटती बढ़ती रहती है
मौला तेरा ताना वाना चलता रहता है

इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है
मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है

जिन नजरों ने काम दिलाया गजलें कहने का
आज तलक उनको नजराना चलता रहता है

17. सब तमन्नाएँ हों पूरी कोई ख़्वाहिश भी रहे - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

सब तमन्नाएँ हों पूरी कोई ख़्वाहिश भी रहे
चाहता वो है मोहब्बत में नुमाइश भी रहे

आसमाँ चूमे मिरे पँख तिरी रहमत से
और किसी पेड़ की डाली पे रिहाइश भी रहे

उस ने सौंपा नहीं मुझ को मिरे हिस्से का वजूद
उस की कोशिश है कि मुझ से मिरी रंजिश भी रहे

मुझ को मालूम है मेरा है वो मैं उस का हूँ
उस की चाहत है कि रस्मों की ये बंदिश भी रहे

मौसमों से रहें 'विश्वास' के ऐसे रिश्ते
कुछ अदावत भी रहे थोड़ी नवाज़िश भी रहे

(कोई दीवाना कहता है)

18. हम कहाँ हैं ये पता लो तुम भी - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

हम कहाँ हैं ये पता लो तुम भी
बात आधी तो सँभालो तुम भी

दिल लगाया ही नहीं था तुम ने
दिल-लगी की थी मज़ा लो तुम भी

हम को आँखों में न आँजो लेकिन
ख़ुद को ख़ुद पर तो सजा लो तुम भी

जिस्म की नींद में सोने वालों
रूह में ख़्वाब तो पालो तुम भी

19. हर सदा पैग़ाम देती फिर रही दर-दर - Kumar Vishwas Poetry/Gazal

हर सदा पैग़ाम देती फिर रही दर-दर
चुप्पियों से भी बड़ा है चुप्पियों का डर

रोज़ मौसम की शरारत झेलता कब तक
मैंने खुद में रच लिए कुछ खुशनुमा मंज़र

वक़्त ने मुझ से कहा "कुछ चाहिए तो कह"
मैं बोला शुक्रिया मुझको मुआफ़ कर

मैं भी उस मुश्कि़ल से गुज़रा हूँ जो तुझ पर है
राह निकलेगी कोई तू सामना तो कर

(कोई दीवाना कहता है)

Tags: कुमार विश्वास की कविता कोई पागल समझता है,कुमार विश्वास की कविता 2021,कुमार विश्वास की कविताएं,कुमार विश्वास का पहला प्यार,कुमार विश्वास की शायरी इन हिंदी,कुमार विश्वास के गीत,कुमार विश्वास की गजल,कुमार विश्वास की गजल शायरी


(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Kumar Vishwas) #icon=(link) #color=(#2339bd)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!