Abdul Hameed Adam-Qita अब्दुल हमीद अदम-क़ितआ

Hindi Kavita

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हिंदी कविता

Qita Abdul Hameed Adam
क़ितआ अब्दुल हमीद अदम

अब भी साज़ों के तार हिलते हैं-अब्दुल हमीद अदम

अब भी साज़ों के तार हिलते हैं
अब भी शाख़ों पे फूल खिलते हैं
तुम ने हम को भुला दिया तो क्या
अब भी राहों में चाँद मिलते हैं

अब मिरी हालत-ए-ग़मनाक पे कुढ़ना कैसा-अब्दुल हमीद अदम

अब मिरी हालत-ए-ग़मनाक पे कुढ़ना कैसा
क्या हुआ मुझ को अगर आप ने नाशाद किया
हादसा है मगर ऐसा तो अलमनाक नहीं
यानी इक दोस्त नय इक दोस्त को बर्बाद किया

आख़िरत का ख़याल भी साक़ी-अब्दुल हमीद अदम

आख़िरत का ख़याल भी साक़ी
बादा-ए-वहम का अयाग़ न हो
इस लिए बंदगी से हूँ बेज़ार
ख़ुल्द भी एक सब्ज़ बाग़ न हो

इक शिकस्ता से मक़बरे के क़रीब-अब्दुल हमीद अदम

इक शिकस्ता से मक़बरे के क़रीब
इक हसीं जूएबार बहती है
मौत कितनी मुदाख़लत भी करे
ज़िंदगी बे-क़रार रहती है

उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई-अब्दुल हमीद अदम

उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
सबा की नरमी-ए-रफ़्तार है सुरूर-अंगेज़
ये वक़्त है कि इबादत का एहतिमाम करें
ख़ुलूस-ए-दिल से उछाल एक साग़र-ए-लबरेज़

एक रेज़ा तिरे तबस्सुम का-अब्दुल हमीद अदम

एक रेज़ा तिरे तबस्सुम का
उड़ गया था शराब-ख़ाने से
हौज़-ए-कौसर बना दिया जिस को
वाइज़ों ने किसी बहाने से

ऐ ख़राबात के ख़ुदावंदो-अब्दुल हमीद अदम

ऐ ख़राबात के ख़ुदावंदो
दस्त-ए-अल्ताफ़ को खुला रक्खो
जो मोहब्बत से चल के आ जाए
उस की उम्मीद को हरा रक्खो

ऐ गदागर ख़ुदा का नाम न ले-अब्दुल हमीद अदम

ऐ गदागर ख़ुदा का नाम न ले
इस से इंसाँ का दिल नहीं हिलता
ये है वो नाम जिस की बरकत से
अक्सर औक़ात कुछ नहीं मिलता
 
Abdul-Hameed-Adam
 

ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले-अब्दुल हमीद अदम

ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले
मैं तुझे बद-दुआ नहीं देता
मैं भी हूँ एक संग-दिल ताजिर
जो हुनर का सिला नहीं देता

और अरमान इक निकल जाता-अब्दुल हमीद अदम

और अरमान इक निकल जाता
इक कली हँस के और खिल जाती
काश इस तंग-दिल ज़माने से
इक हसीं शाम और मिल जाती

काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है-अब्दुल हमीद अदम

काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
काफ़ी तवील मुद्दत-ए-अहद-ए-बहार है
मैं तेरा साथ दूँगा जहाँ तक तू चल सके
ऐ ज़िंदगी तू आप ही बे-ए'तिबार है

कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम-अब्दुल हमीद अदम

कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम
इज्ज़-ए-फ़ितरत पे मुस्कुराती है
जब मशिय्यत की कोई पेश न जाए
मौत का फ़ैसला सुनाती है

कौन है जिस ने मय नहीं चक्खी-अब्दुल हमीद अदम

कौन है जिस ने मय नहीं चक्खी
कौन झूटी क़सम उठाता है
मय-कदे से जो बच निकलता है
तेरी आँखों में डूब जाता है

ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है-अब्दुल हमीद अदम

ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है
वगर्ना हर इक चीज़ ज़ुल्मत-निशाँ है
लब-ए-माह-ओ-अंजुम पे साक़ी अज़ल से
तिरा ज़िक्र है या मिरी दास्ताँ है

खू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है-अब्दुल हमीद अदम

खू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है
तल्ख़ियों की बहार देखी है
ज़िंदगी के ज़रा से साग़र में
गर्दिश-ए-रोज़गार देखी है

गुल्सितानों में घूम लेता हूँ-अब्दुल हमीद अदम

गुल्सितानों में घूम लेता हूँ
बादा-ख़ानों में झूम लेता हूँ
ज़िंदगी जिस जगह भी मिल जाए
उस के क़दमों को चूम लेता हूँ

चलते चलते तमाम रस्तों से-अब्दुल हमीद अदम

चलते चलते तमाम रस्तों से
मस्त ओ मसरूर आ गए हैं हम
अब जबीं से नक़ाब उलट दीजे
शहर से दूर आ गए हैं हम

जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर-अब्दुल हमीद अदम

जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
ख़ुद-ब-ख़ुद कोई रुत नहीं फिरती
वक़्त की तंग-दिल सुराही से
मय की इक बूँद भी नहीं गिरती

जा रहा था हरम को मैं लेकिन-अब्दुल हमीद अदम

जा रहा था हरम को मैं लेकिन
रास्ते में ब-ख़ूबी-ए-तक़दीर
इक मक़ाम ऐसा आ गया जिस ने
डाल दी मेरे पाँव में ज़ंजीर

जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं-अब्दुल हमीद अदम

जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं
उन सफ़ीनों को कौन खेता है
पूछती है ये क़िस्मत-ए-मज़दूर
या ख़ुदा रिज़्क़ कौन देता है

ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है-अब्दुल हमीद अदम

ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है
मुस्कुरा कर फ़रेब खाता जा
रौशनी क़र्ज़ ले के साक़ी से
सर्द रातों को जगमगाता जा

ज़िंदगी की दराज़ पलकों पर-अब्दुल हमीद अदम

ज़िंदगी की दराज़ पलकों पर
रास्ते का ग़ुबार छाया है
आब-ए-कौसर से आँख को धो ले
मै-कदा फिर क़रीब आया है

ज़िंदगी है कि इक हसीन सज़ा-अब्दुल हमीद अदम

ज़िंदगी है कि इक हसीन सज़ा
ज़ीस्त अपनी है ग़म पराए हैं
हम भी किन मुफ़लिसों की दुनिया में
क़र्ज़ की साँस लेने आए हैं

ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है-अब्दुल हमीद अदम

ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है
मौत आँखें चुराए जाती है
थक के बैठा हूँ इक दोराहे पर
दोपहर सर पे आए जाती है

ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने से-अब्दुल हमीद अदम

ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने से
धन की ख़ैरात होती जाती है
साग़रों के बुलंद होने से
चाँदनी रात होती जाती है

ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब-अब्दुल हमीद अदम

ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
हल्क़ा-ए-दाम टूट जाता है
ज़िंदगी की गिरफ़्त में आ कर
मौत का जाम टूट जाता है

तीरगी के घने हिजाबों में-अब्दुल हमीद अदम

तीरगी के घने हिजाबों में
दूर के चाँद झिलमिलाते हैं
ज़िंदगी की उदास रातों में
बेवफ़ा दोस्त याद आते हैं

तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर-अब्दुल हमीद अदम

तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर
कहाँ हो पहले से तब्दील हो गए हो तुम
ख़ुदा करे मिरी आँखों से नूर छिन जाए
निगाह-ए-शौक़ में तहलील हो गए हो तुम

दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे-अब्दुल हमीद अदम

दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
कितनी उजड़ी हुई बहारों के
नाम कुंदा हैं आबगीनों पर
कितने डूबे हुए सितारों के

दिल की हस्ती बिखर गई होती-अब्दुल हमीद अदम

दिल की हस्ती बिखर गई होती
रूह के ज़ख़्म भर गए होते
ज़िंदगी आप की नवाज़िश है
वर्ना हम लोग मर गए होते

न ख़ुदा है न नाख़ुदा साथी-अब्दुल हमीद अदम

न ख़ुदा है न नाख़ुदा साथी
नाव को आप ही चलाना है
या बग़ावत से पार उतरना है
या रऊनत से डूब जाना है

नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है-अब्दुल हमीद अदम

नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है
कश्मकश ऐन कामयाबी है
गर किनारा नहीं मुक़द्दर में
क़स्र-ए-दरिया में क्या ख़राबी है

पर लगा कर उड़ेगा नाम तिरा-अब्दुल हमीद अदम

पर लगा कर उड़ेगा नाम तिरा
ले फ़क़ीरान-ए-मै-कदा की दुआ
ख़ूबसूरत मुग़न्निया! हँस कर
शाइरों को ज़रा शराब पिला

बहर-ए-आलाम बे-किनारा है-अब्दुल हमीद अदम

बहर-ए-आलाम बे-किनारा है
ज़ीस्त की नाव बे-सहारा है
रात अँधेरी है और मता-ए-उम्मीद
एक टूटा हुआ सितारा है

मरमरीं मरक़दों पे वक़्त-ए-सहर-अब्दुल हमीद अदम

मरमरीं मरक़दों पे वक़्त-ए-सहर
मय-कशी की बिसात गर्म करें
मौत के संग-दिल ग़िलाफ़ों को
साग़रों की खनक से नर्म करें

मायूस हो गई है दुआ भी जबीन भी-अब्दुल हमीद अदम

मायूस हो गई है दुआ भी जबीन भी
उठने लगा है दिल से ख़ुदा का यक़ीन भी
तस्कीं की एक साँस हमें बख़्श दीजिए
ये आसमाँ भी आप का और ये ज़मीन भी

माह-ओ-अंजुम के सर्द होंटों पर-अब्दुल हमीद अदम

माह-ओ-अंजुम के सर्द होंटों पर
हम-नशीं तज़्किरा है सदियों का
जाम उठा और दिल को ज़िंदा रख
आसमाँ मक़बरा है सदियों का

मिरे दिल की उदास वादी में-अब्दुल हमीद अदम

मिरे दिल की उदास वादी में
ग़ुंचा-हा-ए-मलूल खिलते हैं
गुल्सितानों पे ही नहीं मौक़ूफ़
जंगलों में भी फूल खिलते हैं

मुफ़लिसों को अमीर कहते हैं-अब्दुल हमीद अदम

मुफ़लिसों को अमीर कहते हैं
आब-ए-सादा को शीर कहते हैं
ऐ ख़ुदा! तेरे बा-ख़िरद बंदे
बुज़-दिली को ज़मीर कहते हैं

मैं रास्ते का बोझ हूँ मेरा न कर ख़याल-अब्दुल हमीद अदम

मैं रास्ते का बोझ हूँ मेरा न कर ख़याल
तू ज़िंदगी की लहर है लहरें उठा के चल
लाज़िम है मय-कदे की शरीअत का एहतिराम
ऐ दौर-ए-रोज़गार ज़रा लड़खड़ा के चल

मौत का सर्द हाथ भी साक़ी-अब्दुल हमीद अदम

मौत का सर्द हाथ भी साक़ी
मुझ को ख़ामोश कर नहीं सकता
साज़ का तार टूट सकता है
तार का सोज़ मर नहीं सकता

ये वो फ़ज़ा है जहाँ फ़र्क़-ए-सुब्ह-ओ-शाम नहीं-अब्दुल हमीद अदम

ये वो फ़ज़ा है जहाँ फ़र्क़-ए-सुब्ह-ओ-शाम नहीं
कि गर्दिशों में यहाँ ज़िंदगी का जाम नहीं
दयार-ए-पाक में मत पढ़ कलाम-ए-रूह-अफ़ज़ा
कि मक़बरों में ख़तीबों का कोई काम नहीं

रूह को एक आह का हक़ है-अब्दुल हमीद अदम

रूह को एक आह का हक़ है
आँख को इक निगाह का हक़ है
एक दिल मैं भी ले के आया हूँ
मुझ को भी इक गुनाह का हक़ है

वस्ल की शब है और सीने में-अब्दुल हमीद अदम

वस्ल की शब है और सीने में
एक मदहोश आग का रस है
आज सारे चराग़ गुल कर दो
आज अंधेरा बड़ा मुक़द्दस है

शाम है और पार नद्दी के-अब्दुल हमीद अदम

शाम है और पार नद्दी के
एक नन्हा सा बे-क़रार दिया
यूँ अँधेरे में टिमटिमाता है
जैसे कश्ती के डूबने की सदा

शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए-अब्दुल हमीद अदम

शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला
सुरूर चीज़ की मिक़दार पर नहीं मौक़ूफ़
शराब कम है तो साक़ी नज़र मिला के पिला

साहिल पे इक थके हुए जोगी की बंसरी-अब्दुल हमीद अदम

साहिल पे इक थके हुए जोगी की बंसरी
तल्क़ीन कर रही है किनारा है ज़िंदगी
तूफ़ान में सफ़ीना-ए-हस्ती को छोड़ कर
मल्लाह गा रहा है कि दरिया है ज़िंदगी

सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख-अब्दुल हमीद अदम

सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख
उल्फ़त की वारदात का हुस्न-ए-मिसाल देख
जब उस का नाम आए किसी की ज़बान पर
उस वक़्त ग़ौर से मिरे चेहरे का हाल देख

सो रही है गुलों के बिस्तर पर-अब्दुल हमीद अदम

सो रही है गुलों के बिस्तर पर
एक तस्वीर-ए-रंग-ओ-निकहत-ओ-नाज़
जिस के माथे की नर्म लहरों पर
चाँदनी रात पढ़ रही है नमाज़

हश्र तक भी अगर सदाएँ दें-अब्दुल हमीद अदम

हश्र तक भी अगर सदाएँ दें
बीत कर वक़्त फिर नहीं मुड़ते
सोच कर तोड़ना इन्हें साक़ी
टूट कर जाम फिर नहीं जुड़ते
 

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