Kumar Vishwas-Muktak कुमार विश्वास- मुक्तक

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Muktak - Kumar Vishwas
मुक्तक - Kumar Vishwas Poetry

अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं - Kumar Vishwas Poetry

अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं,
समन्दर में सभी माफिक हवायें काम आती हैं
मुझे आराम है ये दोस्तों की मेहरवानी है,
दुआयें साथ हों तो सब दवायें काम आतीं है।

इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है - Kumar Vishwas Poetry

इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा, में भी हूँ और तू भी है
छुट गयी रस्ते में, जीने मरने की सारी कसमें
अपने-अपने हाल में जिंदा, में भी हूँ और तू भी है

एक दो दिन में वो इकरार कहाँ आएगा - Kumar Vishwas Poetry

एक दो दिन में वो इकरार कहाँ आएगा
हर सुबह एक ही अखबार कहाँ आएगा
आज बंधा है जो इन् बातों में तो बहल जायेंगे
रोज इन बाहों का त्यौहार कहाँ आएगा

कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन - Kumar Vishwas Poetry

कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन

किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुजरी है - Kumar Vishwas Poetry

किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुजरी है,
हमारी सारी चालाकी वहीं पे खो के गुजरी है
तुम्हारी और हमारी रात में वस फर्क इतना है,
तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुजरी है

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है - Kumar Vishwas Poetry

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है

कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए - Kumar Vishwas Poetry

कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए
ईलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाए
मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश मे पिघले
मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ वो मुझमे घुल के सो जाए

kumar-vishwas

कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ - Kumar Vishwas Poetry

कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो
मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ

खुद से भी न मिल सको इतने पास मत होना - Kumar Vishwas Poetry

खुद से भी न मिल सको इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना मगर देवदास मत होना
देना , चाहना , मांगना या खो देना
ये सारे खेल है इनमें उदास मत होना

खुशहाली में एक बदहाली, में भी हूँ और तू भी है - Kumar Vishwas Poetry

खुशहाली में एक बदहाली, में भी हूँ और तू भी है
हर निगाह पर एक सवाली, में भी हूँ और तू भी है
दुनिया कितना अर्थ लगाए, हम दोनों को मालूम है
भरे-भरे पर खाली-खली, में भी हूँ और तू भी है

गिरेबां चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है - Kumar Vishwas Poetry

गिरेबां चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है,
हर एक पल मुस्काराकर अश्क पीना और मुश्किल है
हमारी बदनसीबी ने हमें इतना सिखाया है,
किसी के इश्क में मरने से जीना और मुश्किल है

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है - Kumar Vishwas Poetry

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है

जिस्म का आखिरी मेहमान बना बैठा हूँ - Kumar Vishwas Poetry

जिस्म का आखिरी मेहमान बना बैठा हूँ
एक उम्मीद का उन्वान बना बैठा हूँ
वो कहाँ है ये हवाओं को भी मालूम है मगर
एक बस में हूँ जो अनजान बना बैठा हूँ

जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है - Kumar Vishwas Poetry

जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है,
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है,
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर,
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है

तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है - Kumar Vishwas Poetry

तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है
हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है
अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़
तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ - Kumar Vishwas Poetry

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता - Kumar Vishwas Poetry

तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है वगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है जमाने से,
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नही करता

नज़र में शोखियाँ लब पर मुहब्बत का तराना है - Kumar Vishwas Poetry

नज़र में शोखियाँ लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझको
सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।

ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है - Kumar Vishwas Poetry

ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है
ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है
अजब सी कशमकश है,रोज़ जीने, रोज़ मरने में
मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या - Kumar Vishwas Poetry

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश में है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या

पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है - Kumar Vishwas Poetry

पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है,
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है,
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है,
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है

फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है - Kumar Vishwas Poetry

फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है,
ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है,
अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में,
कलम में शुक्र-ए-खुदा है कि ‘रौशनाई’ है

बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है - Kumar Vishwas Poetry

बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है,
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन,
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है।

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन - Kumar Vishwas Poetry

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया - Kumar Vishwas Poetry

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पायी कभी मैं कह नहीं पाया

बात ऊँची थी मगर बात जरा कम आंकी - Kumar Vishwas Poetry

बात ऊँची थी मगर बात जरा कम आंकी
उसने जज्बात की औकात जरा कम आंकी
वो फरिश्ता कह कर मुझे जलील करता रहा
मै इंसान हूँ, मेरी जात जरा कम आंकी

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा - Kumar Vishwas Poetry

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

महफिल-महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है - Kumar Vishwas Poetry

महफिल-महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है,
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखों से होकर दिल जाना.
रस्ते में ये मैखाना तो पड़ता है.

मिल गया था जो मुक़द्दर वो खो के निकला हूँ - Kumar Vishwas Poetry

मिल गया था जो मुक़द्दर वो खो के निकला हूँ.
में एक लम्हा हु हर बार रो के निकला हूँ.
राह-ए-दुनिया में मुझे कोई भी दुश्वारी नहीं.
में तेरी ज़ुल्फ़ के पेंचो से हो के निकला हूँ .

मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया - Kumar Vishwas Poetry

मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया

मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं - Kumar Vishwas Poetry

मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब अभी तक गा रहा हूँ मैं
फिराके यार में कैसे जिया जाये बिना तड़पे
जो मैं खुद ही नहीं समझा वही समझा रहा हूँ मैं

मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा - Kumar Vishwas Poetry

मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा
मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा
हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा
अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा

मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करती है - Kumar Vishwas Poetry

मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करता है
भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है

मैं तेरा ख्वाब जी लूँ पर लाचारी है - Kumar Vishwas Poetry

मैं तेरा ख्वाब जी लूँ पर लाचारी है,
मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भारी है,
सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से,
मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है - Kumar Vishwas Poetry

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँखों में पानी है
जो तुम समझो तो मोती है, जो ना समझो तो पानी है

यह चादर सुख की मोल क्यूँ, सदा छोटी बनाता है - Kumar Vishwas Poetry

यह चादर सुख की मोल क्यूँ, सदा छोटी बनाता है
सिरा कोई भी थामो, दूसरा खुद छुट जाता है
तुम्हारे साथ था तो मैं, जमाने भर में रुसवा था
मगर अब तुम नहीं हो तो, ज़माना साथ गाता है

ये दिल बर्बाद करके, इसमें क्यों आबाद रहते हो - Kumar Vishwas Poetry

ये दिल बर्बाद करके, इसमें क्यों आबाद रहते हो
कोई कल कह रहा था तुम अल्लाहाबाद रहते हो.
ये कैसी शोहरतें मुझे अता कर दी मेरे मौला
में सब कुछ भूल जाता हु मगर तुम याद रहते हो

ये वो ही इरादें हैं, ये वो ही तबस्सुम है - Kumar Vishwas Poetry

ये वो ही इरादें हैं, ये वो ही तबस्सुम है
हर एक मोहल्लत में, बस दर्द का आलम है
इतनी उदास बातें, इतना उदास लहजा,
लगता है की तुम को भी, हम सा ही कोई गम है

वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है - Kumar Vishwas Poetry

वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है

वो जो खुद में से कम निकलतें हैं - Kumar Vishwas Poetry

वो जो खुद में से कम निकलतें हैं
उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं
आप में कौन-कौन रहता है ?
हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं

सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता - Kumar Vishwas Poetry

सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।

सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है - Kumar Vishwas Poetry

सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है,
भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है.
बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा,
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुरानी है.

समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता - Kumar Vishwas Poetry

समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता

स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर है हम भी - Kumar Vishwas Poetry

स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी
बहुत मशहुर हो तुम भी, बहुत मशहुर हैं हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर हैं हम भी
अत: मजबूर हो तुम भी, अत: मजबूर हैं हम भी

हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है - Kumar Vishwas Poetry

हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल
भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।

हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है - Kumar Vishwas Poetry

हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है
खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है
किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का
जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है

हमें बेहोश कर साकी, पिला भी कुछ नहीं हमको - Kumar Vishwas Poetry

हमें बेहोश कर साकी, पिला भी कुछ नहीं हमको
कर्म भी कुछ नहीं हमको, सिला भी कुछ नहीं हमको
मोहब्बत ने दे दिआ है सब, मोहब्बत ने ले लिया है सब
मिला कुछ भी नहीं हमको, गिला भी कुछ नहीं हमको

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते - Kumar Vishwas Poetry

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते

हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है - Kumar Vishwas Poetry

हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है
नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है
तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ
समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है

हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है - Kumar Vishwas Poetry

हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है !
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से जमाना है

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