Do Shabad दो शब्द

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हिंदी कविता

 

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Do Shabad - दो शब्द 
देश-प्रम का कहें "अकेला" प्यार जगाओ,
आंखों में आंसू देश-प्रेम के छलका डालो ।

कोई भी देश सुदृढ़ और प्रगति-पथ पर तभी अग्रसर होता है जब युवा-वर्ग का कन्धा मजबूत हो और उसमें देश को गरिमा बढ़ाने के लिये प्रेम और एकता की समग्र चेतना को खुशबू रोम-रोम में बसी हो।

 
गति के मार्ग में अवरोधों का जाल भी विषद् होता है और इसी पर विजय प्राप्त करने के लिये नव युवकों को संघर्ष का सामना भी करना पड़ता है । अपने विवेक, सहनशीलता, सहिष्णुता के संकल्प सेतु द्वारा हम इस गहन सागर को पार करने के लिये साहित्य के विभिन्न विधाओं का प्रयोग करते हैं । समाज की कुरीतियों, समस्याओं का निराकरण एवं देश के विकास का अवलोकन भी साहित्य द्वारा ही होता है क्योंकि साहित्य समाज एवं देश का दर्पण है । साहित्य की कोई भी विधा हो, युव -माग-दर्शन का अजस्र स्रोत है। 

 

कविता साहित्य की वह विधा है जिसमे  जन-मानस में गहराई तक उतरने की अत्यधिक क्षमता होती है । जहाँ तक भाषा और शैली का सम्बन्ध हैं वह व्यक्ति विशेष के ऊपर ही निर्भर होता है ।

 

भारत में भाषाओं की बहुलता के कारण राष्ट्-भाषा हिन्दी उतनी विकसित न हो सकी जितनी विकसित होनी चाहिये, भाषा के साथ ही साहित्य का विकास भी होता है । सम्प्रेषणीयता के लिये भाषा का सहज होना भी नितांत आवश्यक है जो पढ़ने के साथ ही पाठक सम्प्रेषक के विचारों को अपने आप ही महसूस कर ले, समझ ले । इन्हीं विचारों को ध्यान में रखते हुए "गुलदस्ता" आपके लिये प्रस्तुत है। आशा है कि दिल के ड्राइंग-रूम में इसे सजायंगे और अपने प्रेम रूपी जल से गुलदस्ते के फूलों को सिंचित कर हर-भरा रखेंगे और इसकी खुशबू अपने सीमित न रख अपने प्रियजनों को भी सुवासित कर देश को ए क नया आयाम देगे । आपकी चिर शुभकामनायें देश को समृद्धि की ओर अग्रसर होने में सहायक होंगी। मैं उन सबका आभारी हूँ जिन्होंने देश-हित में श्वांस लिया, श्वांस छोड़ा भी तो देश के लिये। 
 
श्री राधेश्याम 'बंधु' सम्पादक, समग्र चेतना, श्री बी. एन. शुक्ला, खान हकीम व जगदीश प्रसाद यादव का आभारी है जिन्होंने अपने अमूल्य सुझाव एवं प्रकाशन में सहदोग देकर भूके को आप तक पहुंचाने में सफल हए हैं। अन्तत: में अपनी भाभी श्रीमती शुशीला देवी गौड जिन्होने सदैव अपना मातुवत स्नहे प्रदान करते हुए लेखन को भी प्रोत्साहन दिया और मेरे अग्रज श्री  मोतीचन्द गौड़। जिन्होंने यत्र-तत्र  सर्वच मेरे साहस को बढ़ाने में सदैव साथ दिया, का में विशेष आभारी है।

 

इस प्रथम संस्करण में त्रुटियों को अधिक संभावना है। अतः पाठकों से विनम्र निवेदन है कि ये निःसंकोच अपने सुझावो से अवगत करावे।

      बसंत                                                                             भवदीय 

 २६ जनवरी , १९८५                                              अशोक गौड़ 'अकेला '

 

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